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सम्मेलन में हिस्सा ले रहे विभिन्न देशों के विशेषज्ञों को पिछले साल कोपेनहेगन सम्मेलन के हश्र को देखते हुए इस सम्मेलन से किसी बड़ी उपलब्धि की उम्मीद नहीं है .कोपेनहेगन में हुए सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार विभिन्न देशों में मतभेद उभरने की वजह से किसी बाध्यकारी संधि पर हस्ताक्षर नहीं हो सका था.कोपनहेगन में जलवायु परिवर्तन को लेकर जिन बिन्दुओं पर मतभेद उभरे थे वो अब भी बरकरार हैं.
उत्पादन गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित कर वैश्विक मंदी के दौर से उबर रही अर्थव्यवस्थाओं की पृष्ठभूमि में हो रहे इस सम्मेलन में कार्बन का उत्सर्जन बढ़ने और औसत वैश्विक तापमान में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी को रोकने के उपायों पर चर्चा हो रही है . संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख क्रिस्टीना फिगरेस ने विश्व के बढ़ते तापमान पर गहरी चिंता प्रगट करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान की दिशा में काम करने के लिए एक दूसरे की जरुरतों को समझना होगा.
ऐसी संभावना जताई जा रही है कि वनों की सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने में गरीब देशों की मदद की दिशा में कुछ प्रगति हो सकती है. मुख्य रूप से सम्मेलन का लक्ष्य गरीब देशों की मदद के लिए ग्रीन फंड बनाना, वनों का विनाश रोक कर कार्बन उत्सर्जन को कम करना और विकसित देशों से टेक्नॉलॉजी ट्रांसफर को बढ़ावा देना है. सम्मेलन में गरीब देशों को 2012 तक जलवायु परिवर्तन के लिए तैयार करने के लिए अमेरिका द्वारा दिए 30 बिलियन डॉलर के ‘फास्ट ट्रैक फण्ड’ पर भी विमर्श किया जाएगा .इस सबके बावजूद कानकुन सम्मलेन से कुछ नतीजा निकलेगा इसकी उम्मीद कम ही है .
अप्रत्यक्ष लाभ तो होगा ही और किसी सार्थक निर्णय की जमीन तैयार हो जाय तो वह भी कम हासिल नहीं.
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय ।
जवाब देंहटाएंसुंदर आलेख के ज़रिए दी गयी उपयोगी जानकारी के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद .
जवाब देंहटाएं... kuchh na kuchh sakaaraatmak parinaam milnaa hi chaahiye !!!
जवाब देंहटाएंचर्चाओ के रास्ते चल सार्थक निष्कर्षों पर सम्पन्न हो यह बैठक।
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