अक्तूबर इस साल का सबसे लंबा महीना होगा. इसी महीने दुनिया के बहुत सारे देश अपनी अपनी घड़ियां एक घंटा पीछे करेंगे.हर साल अक्टूबर के आखिरी रविवार को समय पीछे होता है और मार्च में फिर से घड़ियां घंटे भर आगे कर दी जाती हैं.
रूस में स्टेट मेट्रोलॉजी सेंटर के विशेषज्ञ बताते हैं कि साल में दो बार घड़ियों को आगे पीछे किया जाता है. विशेषज्ञों के मुताबिक, "बसंत की शुरुआत में घड़ियां एक घंटा आगे की जाती हैं और पतझड़ में एक घंटा पीछे. आमतौर पर ऐसा मार्च और अक्तूबर के आखिरी रविवार को किया जाता है."
यह तरीका स्कॉटलैंड में पैदा हुए कनाडा के एक इंजीनियर सैनफोर्ड फ्लेमिंग ने ईजाद किया था. फ्लेमिंग ने दुनिया को टाइम जोन में बांटने का प्रस्ताव दिया. 1883 में उनके इस प्रस्ताव को अमेरिका का समर्थन मिला. 1884 में वॉशिंगटन डीसी में एक समझौता हुआ जिसके तहत 26 देशों ने टाइम जोन को मान लिया.
टाइम जोन दरअसल धरती के क्षेत्र हैं जहां एक जैसा वक्त रहता है. फ्लेमिंग के प्रस्तावों को मंजूरी मिलने के बाद हर टाइम जोन का अपना वक्त हो गया. इसे स्थानीय समय कहा जाता है.
मौसम के हिसाब से इन टाइम जोन में बदलाव किया जाता है. दिन में रोशनी के मुताबिक वक्त को एक घंटा आगे या पीछे कर लिया जाता है. इस प्रक्रिया को डे लाइट सेविंग टाइम या समर टाइम जोन कहते हैं. यह प्रस्ताव अमेरिकी विचारक बेंजामिन फ्रैंकलिन ने दिया था.
अब टाइम जोन समझौते के मुताबिक 192 में से 110 देश साल में दो बार अपनी घड़ियां आगे या पीछे करते हैं.DW
ज्ञानवर्धक।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया जानकारी दी…………………आभार।
जवाब देंहटाएंअजी फ़िर हमारा तो भारत के समय मै ४,३० घंटे का फ़र्क हो जायेगा, वेसे शायद जल्द ही यह चक्कर बंद हो जाये, क्योकि इस घडी को आगे पीछे करने से नुकसान ज्यादा ओर लाभ कह होता हे,ओर हम लोग भी बहुत तंग होते हे.
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक जानकारी
जवाब देंहटाएं