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14 अगस्त, 2021

भारतीय संस्कृति ही देश की मूल आत्मा

आजादी के अमृत महोत्सव पर विशेष आलेख




भारत की आजादी का 75 वां वर्ष यानी आजादी का अमृत महोत्सव धूमधाम से मनाने के लिए देश की युवा पीढ़ी आतुर है। 15 अगस्त 1947 को वर्षों की गुलामी के बाद भारत की जनता ने आजादी का पहला पर्व मनाया था। तब और अब में काफी अंतर है, आज पूरी पीढ़ी बदल गई है। ऐसे लोग जिंहोने आजादी के लिए संघर्ष किया और नाना प्रकार के जुल्म सहें उनमें से शायद बिरले लोग ही आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिए बचे होंगें, परंतु उन्होने अपनी कुर्बानियों से हमें यह पर्व मनाने का अवसर प्रदान किया है।
कल्पना कीजिये कि वर्षों की गुलामी के बाद जब भारत कि पावन भूमि पर जब सूरज की पहली किरण पड़ी होगी तो वह दृश्य कितना मनमोहक रहा होगा। चारों तरफ ढोल-नगाडे़ बज रहे होंगे, युवकों की टोलियां मस्तानी नृत्य कर रही होगी। महिलाएं गा-गा कर जश्न मना रही होगी। खेत से खलिहान तक किसान मस्ती में डूब गये होंगे। साहित्यकारों एवं कवियों की कलम कुछ लिखने के लिए फड़क रही होगी। नई सूरज की लालिमा के साथ चिड़ियों का झुंड कलरव करते हुये आजादी के तराने गा रहे होंगे। यानी पूरा देश खुशियों से सराबोर हो गया होगा।
गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी, चंबल व महानदी जैसी असंख्य नदियों के जल की लहरों व सूरज की किरणों की जुगलबंदी से तरंगों की बौछार हुई होगी। ताल-तलैयो व झरनों के जल में खुशियों का रंग देखते ही बनता होगा। विंध्य व हिमालय की पर्वतमालाएँ जिन्होंने आजादी के रक्तरंजित दृश्य को अपनी ऊचाइयों से देखा था पूरे देश को नाचते-झूमते देख कर न जाने कितने प्रसन्न हुये होंगे और इन खुशियों को निहारते निहारते आसमान भी झूम उठा होगा।
125 करोड़ की आबादी के देश में आज ऐसे कितने लोग बचे हैं जिन्होंने 15 अगस्त 1947 की उस सुनहरे पल को निहारा होगा। जिनका जन्म 1940 या उससे पहले हुआ है उन्हें ही यह सब याद होगा। लेकिन जिन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सेदारी निभाई, जिन्होंने सीना अड़ाकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया या जिन्होंने अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया ऐसे अधिकांश लोग स्वर्ग सिधार चुके हैं। उस पीढ़़ी के जो लोग आज मौजूद है वे आजादी की लड़ाई के जख्मों के दर्द तथा ढलती उम्र की पीडा को तो झेल रहे हैं लेकिन उससे कहीं ज्यादा उन्हें आजाद भारत की दशा का दर्द हो रहा होगा। देश में बढ़ती अराजकता, आतंकवाद, अलगाववाद, क्षेत्रीयतावाद के साथ-साथ राष्ट्र की संस्कृति की विकृति देखकर उन्हें रोना आ रहा होगा। उनके मन की वेदना को समझने की आज फुर्सत किसे है ? आजादी मिली हम बढ़ते चले गये आज भी बढ़ते जा रहा है। पूराने इतिहास को भूल कर रोज नया इतिहास गढ़ते चले जा रहे हैं। चलते-चलते इन वर्षों में ऐसा कोई पड़ाव नहीं आया जब हम थोड़ा ठहर कर सोचते कि हम कहां जा रहे हैं ? हमारी दिशा क्या है ? हमारी मंजिल क्या है ? हमारी मान्यताएं व प्राथमिकताएं क्या है ?
अंग्रेजी शासन काल में सबका लक्ष्य एक था ”स्वराज” लाना लेकिन स्वराज के बाद हमारी मान्यताएं व प्राथमिकताएं क्या क्या होंगी , हम किस दिशा में आगे बढे़गे ? इस बात पर ज्यादा विचार ही नहीं हुआ। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने 1964 में कहा था कि हमें ”स्व” का विचार करने की आवश्यकता है। बिना उसके ”स्वराज्य” का कोई अर्थ नहीं। स्वतन्त्रता हमारे विकास और सुख का साधन नहीं बन सकती। जब तक हमें अपनी असलियत का पता नहीं तब तक हमें अपनी शक्तियों का ज्ञान नहीं हो सकता और न उनका विकास ही संभव है। परतंत्रता में समाज का ”स्व” दब जाता है। इसीलिए राष्ट्र स्वराज्य की कामना करता हैं जिससे वह अपनी प्रकृति और गुणधर्म के अनुसार प्रयत्न करते हुए सुख की अनुभूति कर सकें। प्रकृति बलवती होती है। उसके प्रतिकूल काम करने से अथवा उसकी ओर दुर्लक्ष्य करने से कष्ट होते हैं। प्रकृति का उन्नयन कर उसे संस्कृति बनाया जा सकता है, पर उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती। आधुनिक मनोविज्ञान बताता है कि किस प्रकार मानव-प्रकृति एवं भावों की अवहेलना से व्यक्ति के जीवन में अनेक रोग पैदा हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति प्रायः उदासीन एवं अनमना रहता है। उसकी कर्म-शक्ति क्षीण हो जाती है अथवा विकृत होकर वि-पथगामिनी बन जाती है। व्यक्ति के समान राष्ट्र भी प्रकृति के प्रतिकूल चलने पर अनेक व्यथाओं का शिकार बनता है। आज भारत की अनेक समस्याओं का यही कारण है। राष्ट्र का मार्गदर्शन करने वाले तथा राजनीतिक के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकांश व्यक्ति इस प्रश्न की ओर उदासीन है। फलतः भारत की राजनीति, अवसरवादी एवं सिद्धान्तहीन व्यक्तियों का अखाड़ा बन गई है। राजनीतिज्ञों तथा राजनीतिक दलो के न कोई सिद्धान्त एवं आदर्श हैं और न कोई आचार-संहिता। एक दल छोड़कर दूसरे दल में जाने में व्यक्ति को कोई संकोच नहीं होता। दलों के विघटन अथवा विभिन्न दलों की युक्ति भी होती है तो वह किसी तात्विक मतभेद अथवा समानता के आधार पर नहीं अपितु उसके मूल में चुनाव और पद ही प्रमुख रूप से रहते हैं।
राष्ट्रीय दृष्टि से तो हमें अपनी संस्कृति का विचार करना ही होगा, क्योंकि वह हमारी अपनी प्रकृति है। स्वराज्य का स्व-संस्कृति से घनिष्ठ सम्बंध रहता है। संस्कृति का विचार न रहा तो स्वराज्य की लड़ाई स्वार्थी, पदलोलुप लोगों की एक राजनीतिक लड़ाई मात्र रह जायेगी। स्वराज्य तभी साकार और सार्थक होगा जब वह अपनी संस्कृति के अभिव्यक्ति का साधन बन सकेगा। इस अभिव्यक्ति में हमारा विकास होगा और हमें आनंद की अनुभूति भी होगी। अतः राष्ट्रीय और मानवीय दृष्टियों से आवश्यक हो गया है कि हम भारतीय संस्कृति के तत्वों का विचार करें।
भारतीय संस्कृति की पहली विशेषता यह है कि वह सम्पूर्ण जीवन का, सम्पूर्ण सृष्टि का, संकलित विचार करती है। उसका दृष्टिकोण एकात्मवादी है। टुकड़ों-टुकड़ों में विचार करना विशेषज्ञ की दृष्टि से ठीक हो सकता है, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से उपयुक्त नहीं। अग्रेजी शासन की दासता से मुक्ति पाने के बाद हमारी प्राथमिकता आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता होनी चाहिए थी। संस्कृति देश की आत्मा है तथा वह सदैव गतिमान रहती है। इसकी सार्थकता तभी है जब देश की जनता को उसकी आत्मानुभूति हो। विकासशील एंव धर्मपरायण भारत की दिशा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही हो सकती है।⁠
आज हम गर्व के साथ महसूस कर रहें है कि वर्तमान समय में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिकल्पना तथा भारतीय संस्कृति यानी देश की मूल आत्मा की पहचान नई पीढ़ी को होने लगी है। हम उम्मीद करें कि आजादी के अमृत महोत्सव में किए जाने वाले प्रयास इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
 वन्दे मातरम !       
               

14.08.2021

                                                                                                      -  अशोक बजाज   

                                                                                               E-mail - ashokbajaj99@gmail.com                                                                                                                                

05 फ़रवरी, 2021

हमारा संविधान गीता, बाइबिल एवं कुरान की तरह पवित्र है - अशोक बजाज

हमारा संविधान गीता, बाइबिल एवं कुरान की तरह पवित्र है - अशोक बजाज 
   गणतंत्र दिवस समारोह 2021
  रायपुर / गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में नगर पंचायत मुख्यालय अभनपुर एवं सरस्वती शिशु मंदिर में जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष अशोक बजाज ने ध्वजारोहण किया. उन्होने नगर पंचायत में नई ट्रैक्टर ट्रालियों की पूजा अर्चना के पश्चात जनता को समर्पित किया. इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए श्री बजाज ने कहा कि हमारा संविधान दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान है, यह गीता, बाइबिल एवं कुरान की तरह पवित्र है. संविधान हमें अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों का बोध कराता है. हमें सदैव संविधान का पालन करना चाहिए. इस अवसर पर नगर पंचायत के अध्यक्ष कुंदन बघेल, उपाध्यक्ष किशन शर्मा, सरस्वती शिशु मंदिर के व्यवस्थापक प्रदीप शर्मा, पूर्व मंडल अध्यक्ष सुनील प्रसाद, राजा राय, शिवनारायण बघेल, कैलाश गुप्ता, चेतना गुप्ता, दिलीप अग्रवाल, श्रीकांत दामले, प्राचार्य रूपचंद साहू, हेमंत तारक, स्वच्छता कमांडर दिनेश फूटान, भुवनलाल निषाद, ताम्रध्वज सेन, के. सी. मिश्रा, रामचरण चक्रधारी एवं श्याम लाल वर्मा आदि उपस्थित थे. 

नगर पंचायत अभनपुर के मुख्यालय में गणतन्त्र दिवस पर ध्वजारोहण करते हुये. 

नगर पंचायत अभनपुर के मुख्यालय में गणतन्त्र दिवस पर ध्वजारोहण करते हुये.

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर नगर पंचायत अभनपुर में नई ट्रैक्टर ट्रालियों की पूजा अर्चना के पश्चात जनता को समर्पित की गई।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर नगर पंचायत अभनपुर में नई ट्रैक्टर ट्रालियों की पूजा अर्चना के पश्चात जनता को समर्पित की गई।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर नगर पंचायत अभनपुर में नई ट्रैक्टर ट्रालियों की पूजा अर्चना के पश्चात जनता को समर्पित की गई।


नगर पंचायत अभनपुर के गणतन्त्र दिवस समारोह में उपस्थित जन प्रतिनिधियों एवं कर्मचारियों के साथ खुशनुमा पल ।

नगर पंचायत अभनपुर के गणतन्त्र दिवस समारोह में उपस्थित जन प्रतिनिधियों एवं कर्मचारियों के साथ खुशनुमा पल ।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में ध्वजारोहण करते हुये।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में ध्वजारोहण करते हुये।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में भारत माता की आरती हुई।

सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में गणतन्त्र दिवस समारोह।

सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में गणतन्त्र दिवस समारोह।

समाचार पत्रों की कतरनें . . .

17 सितंबर, 2020

कोरोना से बच गए तो, जीवन निहाल है

                            सम-सामयिक कविता

यह कोरोना काल है, दुनिया में भूचाल है,
घर से बाहर ना निकलें, जी का जंजाल है।
पर किसने किसकी मानी है, घर में रहने की ठानी है,
जब फैल गया कोरोना तो, हर बस्ती में वीरानी है।
चारों ओर हाहाकार है, मरीजों की चीत्कार है,
दवा नहीं बनेगी, तब तक डॉक्टर भी लाचार हैं।
सूना सूना बाज़ार है, ऑनलाइन व्यापार है,
काम-धंधा कब करें, चिंतित हर परिवार है।
टूट रहे अरमान हैं, बिदक रहे मेहमान हैं,
लग जाये यदि रोग तो, मर कर भी अपमान है।
मंदिर में बंद भगवान हैं, भटक रहे जजमान हैं,
त्योहारों के मौसम में, ना राशन ना पकवान है।
फ़ेस मास्क जरूरी है, रखना दो गज की दूरी है,
कितने भी हों काम पड़े, घर पर रहना मजबूरी है।
जिंदगी बेहाल है, बहुत बुरा हाल है,
कोरोना से बच गए तो जीवन निहाल है।
ऊपर वाले से गुहार है, सुखी रहे संसार है,
हाथ जोड़ विनती करे, बजाज बारम्बार है।

- अशोक बजाज रायपुर

27 अगस्त, 2020

स्वतन्त्रता दिवस 2020 की चित्रमय झांकी

स्वतन्त्रता दिवस 2020 की चित्रमय झांकी 

कोरोना महामारी के चलते इस बार स्वतन्त्रता दिवस समारोह सादगी एवं सावधानी से मनाया गया. लॉकडाउन के कारण विद्यार्थियों की अनुपस्थिति में ध्वजारोहण हुआ.बहरहाल बिना रौनक के सभी जगह कार्यक्रम संपन्न हुये. 

नगर पंचायत मुख्यालय अभनपुर में स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर  
संबोधित करते हुये

स्वतन्त्रता दिवस समारोह में नगर पंचायत अभनपुर के कर्मचारियों को
स्वच्छता कीट वितरण करते हुये.

स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर नगर पंचायत कार्यालय अभनपुर में
सी सी टी व्ही का विधिवत शुभारंभ करते हुये.

सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में 1990 से लगातार 60 वी बार
(दोनों राष्ट्रीय पर्वों को मिलाकर) ध्वजारोहण करने का सुअवसर मिला.

स्वतन्त्रता दिवस 2020 : सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर

स्वतन्त्रता दिवस 2020 : सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर,
कोरोना महामारी के चलते कुछ यूं हुआ संबोधन.

स्वतन्त्रता दिवस 2020 : सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर,
कोरोना महामारी के चलते कुछ यूं हुआ समारोह।

स्वतंत्रता दिवस 2020 : सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर बस्ती