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24 सितंबर, 2010

भूल कर भी कोई भूल हो ना

आज क्षमा याचना पर्व होने के कारण अनेक मित्रों एवं परिचितों के फोन व एस. एम . एस . आये . सभी ने पर्व की परंपरा का निर्वाह करते हुवे तरह तरह के मैसेज भेजे .


एक मित्र का मैसेज है------ जाने में अनजानें में , अपने वचन सुनाने में ; सुख दुःख के दे जाने में , कोई रस्म निभाने में ; हमारी वाणी से आपको पहुंचा हो कोई गम , तो क्षमा चाहते है हम ;

अन्य मैसेज -- कोशिश पूरे दिल से करता हूँ कि कोई भी व्यवहारिक चूक ना हो पर हे श्रीमान मानव से इस भौतिक युग में भूल ना हो ऐसा असंभव सा प्रतीत होता है ; मन से, वचन से, काया से उत्तम क्षमा .


* भूल एक स्वाभाविक प्रक्रिया है इस भौतिक युग में कोई इससे अछूता नहीं है , मेरे शब्दों से ,मेरे व्यवहार से मेरी काया से ,मेरे मन यदि कभी आपको किसी भी प्रकार की ठेस पहुँची हो तो आपसे हाथ जोड़ कर क्षमा चाहता हूँ .


हम तो पहले से ही क्षमा मांग चुकें है,हमारा सदा यही प्रयास रहता है कि भूल कर भी कोई भूल हो ना .

  इतनी शक्ति हमे देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना ,
   हम चले नेक रस्ते पे हमसे , भूल कर भी कोई भूल हो ना ;

 दूर अज्ञान के हो अंधेरे, तू हमे ज्ञान की रोशनी दे,
 हर बुराई से बचकर रहे हम,जितनी भी भले ज़िंदगी दे ;
 बैर हो ना किसी का किसी से, भावना मन मे बदले की हो ना,
 हम चले नेक रास्ते पे हम से, भूलकर भी कोई भूल हो ना ;
 इतनी शक्ति हमे दे ना दाता …...........!!

 हम ना सोचे हमे क्या मिला है, हम यह सोचे किया क्या है अर्पण,
 फूल खुशियों के बाँटे सभी को, सब का जीवन ही बन जाए मधुबन ;
 अपनी ममता का जल तू बहाके, कर दे पावन हरेक मन का कोना ,
 हम चले नेक रास्ते पे हम से, भूलकर भी कोई भूल हो ना ;
 इतनी शक्ति हमे देना दाता … ........!!       
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22 सितंबर, 2010

दुनिया का सबसे बड़ा फोटो मेला

जर्मनी के कोलोन शहर में दुनिया का सबसे बड़ा फोटो मेला 'फोटोकीना' आज से शुरू हो गया है. यह मेला छह दिन तक चलेगा. पिछले साल जर्मनी में करीब 85 लाख कैमरे बिके थे.


छह दिन तक चलने वाले फोटोकीना मेले में 45 देशों के 1,250 विक्रेता अलग अलग तरह के कैमरों का प्रदर्शन करेंगे. मेले के आयोजक उम्मीद जता रहे हैं कि इस सप्ताह करीब डेढ़ लाख लोग यह प्रदर्शनी देखने आएंगे.

सोनी, पैनासॉनिक और फूजी जैसी बड़ी कंपनियां इस मेले में हिस्सा ले रही हैं. कॉम्पैक्ट कैमरा और 3-डी स्क्रीन आकर्षण के केंद्र में हैं.आम जनता के लिए यह मेला रोज़ सुबह दस से शाम छह बजे तक खुलेगा और उसके लिए लोगों को एक दिन के 43 यूरो खर्चने होंगे. हालांकि बच्चों, छात्रों और वृद्ध लोगों को छूट दी जाएगी.


हर किसी की पहुंच में है कैमरा

डिजिटल फोटोग्राफी के आने के बाद से कैमरों की लोकप्रियता में बहुत इजाफा हुआ. मोबाइल फोन में कैमरे होने के कारण अब हर कोई अपना फोटोग्राफी का शौक पूरा कर लेता है. जर्मनी की फोटो इंडस्ट्री संगठन के कोंस्टांस क्लाउस का कहना है, "जहां तक खरीदारी की बात है तो कैमरा पांचवे स्थान पर है. सब से पहले है फ्रिज, फिर टीवी, फोन, मोबाइल और उसके बाद कैमरा."

वक्त के साथ साथ कैमरे की मांग बहुत बढ़ी है. क्लाउस का कहना है कि एक समय हुआ करता था जब परिवार के सबसे बड़े व्यक्ति के पास ही कैमरा हुआ करता था. लेकिन अब परिवार का हर सदस्य अपने पास कैमरा रखना चाहता है. हर कोई अपनी यादों को अपने तरीके से कैमरे में कैद करना चाहता है.



डिजिटल फोटोग्राफी ने सब कुछ बदला. न रहा रील बदलने का झंझट और न ही उस पर पैसे खर्च करने की चिंता. लोग जब चाहें, जहां चाहें तस्वीरे ले सकते हैं. जर्मनी में जब यहां के युवाओं से यह पूछा गया कि वे अपनी प्रियजनों को चिट्ठी, ई-मेल और तस्वीरों में से क्या भेजना पसंद करेंगे, तो 78 फीसदी ने जवाब दिया कि वे तस्वीर भेजना ही ज्यादा पसंद करेंगे. साथ ही क्लाउस का यह भी मानना है कि इंटरनेट में सोशल नेटवर्किंग भी तस्वीरों के ही सहारे इतनी लोकप्रिय हो पाई हैं.

कम हुआ जनता और मीडिया का फासला

डिजिटल फोटोग्राफी के ज़रिये आम जनता और मीडिया के बीच का फासला भी बहुत कम हुआ है. जर्मनी के लोकप्रिय अखबार "बिल्ड" के सम्पादक मिशाएल पाउसटियान का कहना है कि आज के समय में उनके लिए उनके पाठकों द्वारा भेजी गई तस्वीरों की उतनी ही अहमियत है जितनी उनके फोटोग्राफर द्वारा ली गई तस्वीरों की है. पाउसटियान का बताना है कि उन्हें पाठकों द्वारा प्रति दिन 4000 तसवीरें मिलती हैं. वैसे यह भी ध्यान देने लायक बात है कि जर्मन में बिल्ड का मतलब होता है तस्वीर.


जनता द्वारा ली गई इन तस्वीरों से कई बार मीडिया के साथ साथ पुलिस को भी फायदा होता है. कुछ हफ़्तों पहले हुए जर्मनी के डुइसबुर्ग शहर में लव परेड के दौरान हुए हादसे की तहकीकात करने वाले पुलिस के अधिकारी रामौन फान डेअर माट भी इस बात को मानते हैं कि मोबाइल फोन से ली गईं तस्वीरें पुलिस की तहकीकात के लिए बेहद मददगार साबित होती हैं.

यह कैमरों का युग है

आज के ज़माने में कितने छोटे छोटे कैमरे बाज़ार में  आ गएँ है , पता करना मुश्किल है कि किसके हाथ में कैमरा है . मोबाईल  सेट में कैमरा होने से अब क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी के हाथ में कैमरा आ गया है . छोटे छोटे ख़ुफ़िया कैमरे भी आज आसानी से इस्तेमाल किये जा सकते है . 






 एक वो भी जमाना था
एक वो  भी  जमाना था जब  कैमरा  कुछ  खास लोगों एवंरईसजादो तक सीमित था 
फोटोग्राफी का  शौंक महंगा साबित होता था .कैमरे  को आपरेट करना बड़ा कठिन होता था .   

                     

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21 सितंबर, 2010

अधूरी लगी महंगाई डायन


हमें" पिपली  लाइव" फिल्म देखनें का अवसर मिला ,शायद आप भी देख चुके होंगें.मै नहीं जानता  कि यह फिल्म आपको कैसी लगी लेकिन मुझे तो यह अधूरी अधूरी सी लगी .लगता है इस फिल्म पर सेंसर बोर्ड की डबल कैची चली है ,मै यह बात इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इस फिल्म का प्रचलित लोकप्रिय गीत "महंगाई डायन खाय जात है ....... " आधा गायब है . वैसे यह गीत 4.58मिनट का है लेकिन फिल्म में मात्र दो-ढाई मिनट दिखाया गया .इस गीत से पहले महंगाई पर कोई प्रसंग भी नहीं आया,लगता है वह भी सेंसर बोर्ड की बलि चढ़ गया .

बुधिया और नत्था का परिवार

इसी प्रकार फिल्म में यह स्पस्ट नहीं किया गया कि बुधिया और नत्था पर कर्ज का बोझ अकाल के कारण पड़ा या खुद की बदइन्तजामी के कारण .यह भी हो सकता है कि उसके कर्ज के लिए सरकार की कोई नीति जिम्मेदार हो . कृषि उपज के लिए उपयुक्त बाजार नहीं मिलना या उसका सही मूल्य नहीं मिलना भी कारण हो सकता था .उपरोक्त में से किसी  एक या एक से अधिक  कारणों को स्पस्ट करने से शायद फिल्म और जानदार बन सकती थी ,हो सकता है यह प्रसंग फिल्माया ही ना गया हो अथवा सेंसर बोर्ड ने वह अंश काट दिया हो.हाँ एक बार नत्था की पत्नी द्वारा अपनी बूढी सास को यह कहते हुए आपने जरूर  सुना  होगा कि तुम्हारी बीमारी की वजह से ही तो यह कर्ज चढ़ा है . बात इतने से तो बनती नहीं कि भारत के किसानों की दुर्दशा के लिए घर की बुजुर्ग महिला पर सारा दोष मढ़ दिया जाय .फिल्म में नत्था की पत्नी का अपने जेठ के प्रति व्यवहार भी समझ से परे है .फिल्म में इलेक्ट्रानिक मिडिया का खूब उपहास उड़ाया गया है ,  जिसका दर्शकों ने  खूब आनंद लिया .

यह है सरकार द्वारा प्रदत्त  लालबहादूर

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18 सितंबर, 2010