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25 जुलाई, 2010

आया सावन : भाया सावन : छाया सावन


आया सावन : भाया सावन : छाया सावन

कल रात से झमाझम बारिश हो रही हैं । पूरी धरती तरबतर हो चुकी  हैं । वैसे तो मानसून को आये एक महीने हो गये हैं लेकिन ऐसी व्यापक व तेज वर्षा पहली बार हो रही हैं । मानसूनी वर्षा भी इस बार खंड खंड हो रही थी । यदि किसी एक इलाके में बारिश होती थी तो दूसरे इलाके में तेज धूप निकली होती थी । यहां तक देखने को मिला कि एक गांव में एक दिशा में बारिश होती तो दूसरी दिशा के लोगो को बाद में पता चलता था क्योंकि वहां धूप निकली होती थी । पिछले 10दिनो से पारा फिर चढ़ने लगा था । गर्मी व उमस से लोग हलाकान थे । किसानो के चेहरे पर चिन्ता की रेखाएं स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी । ईश्वर की कृपा से धान की बोनी तो हो चुकी हैं लेकिन रोपणी का कार्य रूका पड़ा हैं । किसान दिन भर आसमान की ओर टकटकी लगायें रहते थे । बादल बनते थे पर हवा के झोंको से बिखर जाते थे । मौसम विभाग की भविष्यवाणी पर भी लोग चर्चा करते थे , कुछ लोगो को मौसम वैज्ञानिको की भविष्यवाणी पर भरोसा नही रहता , वे कहते हैं कि जब जब मौसम वैज्ञानिक तेज वर्षा की भविष्यवाणी करते हैं तब तब सूखा पड़ता हैं । बहरहाल पिछले एक माह से खंड वर्षा हो रही थी । लोगो को सावन का इंतजार था । सावन लगने में अभी कुछ ही  घंटे शेष हैं, आज गुरूपूर्णिमा है । सभी लोग गुरूओं का आशीर्वाद लेने अथवा इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमो की तैयारी में व्यस्त हैं मौसम ने कल रात से अचानक पलटा मारा ,उमड़ घुमड़ कर बादल आयें और तेज बारिश रात भर होती रही । अभी भी बारिश की संभावना बनी हुई है । सूरज देवता बादलो में ढके हुये हैं । गुरूपुर्णिमा के दिन सूरज देव को भी अपने गुरू के दर्शन की आस होगी , मैं नही जानता कि उनके गुरू कौन है लेकिन आसमान में मंडराते घने काले बादल उनके गुरूदर्शन में अवरोध पैदा कर रहे हैं । पर हम क्या करे ,हमें तो पानी चाहिए ,सो बरसात हो रही हैं । इस बरसात ने धरती की प्यास बुझा दी हैं । जंगलो ,बाग-बगीचो एंव क्यारियो की हरी-भरी पत्तियां खूब इठला रही हैं शायद वो भी सूरज देवता को चिढ़ाना चाहती हैं लेकिन बादल हैं कि छंटने का नाम ही नही ले रहें हैं । इन पंक्तियों के लिखे जाने तक तेज बारिश जारी है.रायपुर के अलावा प्रदेश के विभिन्न हिस्सो दुर्ग, राजनांदगांव, कवर्धा, महासमुंद, धमतरी, बस्तर, दतेंवाडा, बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, कोण्डागांव, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा, कोरबा, रायगढ, जशपुर, कोरिया एवं अंबिकापुर में भी तेज बारिश का सिलसिला जारी है। रायपुर जिले के अभनपुर, फिगेश्वर, छुरा, गरियाबंद, मैनपुर, देवभोग, आरंग, धरसींवा, सिमगा, तिल्दा-नेवरा, भाटापारा, बलौदाबाजार, पलारी,कसडोल एवं बिलाईगढ में भी खूब बारिश के समाचार मिल रहें है। महानदी के अलावा पैरी, सोढुल, खारुन, शिवनाथ, अरपा एवं जोंक आदि नदियों का जल स्तर भी तेजी से बढ रहा है। देश के अन्य प्रातों में भी लगभग यही स्थिति है।

सावन खुशहाली और हरियाली का प्रतीक माना जाता हैं । सावन समृद्धि का प्रतीक हैं तभी तो कहा जाता हैं - “सावन के अंधे को सब हरा ही हरा नजर आता हैं”। बड़ा अनसुलझा सवाल है यह कि सावन के अंधे को सब हरा ही हरा क्यो सूझता हैं । भारत -पाक बटवारे के समय 14-15 अगस्त को सावन का ही महीना रहा होगा , इसलिए तो कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को हरा ही हरा सूझता हैं । वरना 63वर्षो से झंझावात झेल रही कश्मीर की वादियां तो सूख रही है।

छत्तीसगढ में एक मुहावरा प्रचलित है-  “सावन साग न भादो दही. क्वार करेला कार्तिक मही. मरही नही तो पडही सही“  इस मुहावरे के माध्यम से खान पान को लेकर हिदायत दी गई है। इस का अर्थ है कि यदि खान पान में ध्यान नहीं दिया गया तो आदमी मरेगा नहीं तो बीमार जरुर पडेगा। सावन के महिने में खान पान को लेकर विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए।

फिल्मों में सावन के गीतो की भरमार हैं । लता मंगेशकर और मुकेश द्वारा  फिल्म "मिलन"का गाया गीत “सावन का महीना पवन करे शेार जियरा रे झूमें ऐसे , जैसे बन मा नाचे मोर” आज भी तरोताजा है। इसी प्रकार सावन से संबंधित फिल्म "चुपके चुपके", "जुर्माना", "निगाहें", "बहू बेगम", एवं "आया सावन झुम के"  के गीत आज भी हीट है तथा बरसात में लोगो के गुनगुनाने के लिए मजबूर करतें है

सावन भक्ति का महिना है महिने भर शिवजी की आराधना होती है।चारो तरफ ''बोल बम'' के नजारे देखने को मिलते है कांवडियो की टोली रंग बिरंगे कांवर लेकर शिवजी को जल चढाने के लिए लंबी लबीं दौड लगाते है। शिवजी भोले भंडारी है इसलिए तो उन्हे लोग केवल जल चढा कर अपनी मुराद पूरी करतें है। सावन में सोमवार का दिन अतिमहत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन जलाभिषेक करने लोग शिव मंदिरो में उमड पडते है। मंदिरो में ॐ  नमः शिवायः का मंत्र दिनभर गुंजायमान होता है।



अपरम्पार है गुरू की महिमा


ज गुरु पूर्णिमा है , इस अवसर पर सभी गुरुओं को प्रणाम करता हूं जिनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान रुपी प्रकाश से जीवन आलोकित हुआ . गुरु के ज्ञान से ही जीवन की इस लंबी और काँटों भरी डगर में चलना  आसान हुआ है.
  गुरुवाय  नम:

बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि  सुबास  सरस  अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥

 अर्थ --- मैं गुरु के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ जो सुरुचि, सुंदर, स्वाद, सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल संजीवनी जड़ी का सुंदर चूर्ण है जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है. 
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बलिहारी  गुरु  आपकी  घरी घरी सौ बार॥
मानुष तैं देवता किया करत न लागी बार॥


अर्थ --- मैं अपने गुरु पर प्रत्येक क्षण सैकड़ों बार समर्पित हूँ जिन्होने  मुझे बिना विलम्ब के मनुष्य से देवता कर दिया.
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गोस्वामी तुलसीदास नें भी श्री रामचरित मानस की रचना करने के पूर्व अपने गुरु की वंदना करते हुये यह सोरठा लिखा है : --------


बंदउँ  गुरु  पद  कंज  कृपा  सिंधु  नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥


अर्थ --- तुलसी दास जी नें कहा है कि मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूँ जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं.
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पंडित पाढ़ि गुनि पचि मुये गुरु बिना मिलै न ज्ञान ।
ज्ञान  बिना  नहिं  मुक्ति  है  सत्त  शब्द  परनाम॥


अर्थ --- गुरु का स्थान गोविन्द से भी बढ़कर होता है. सद्गुरु के बिना तो परमार्थ की प्राप्ति हो ही नही सकती. माता पिता  तो जन्म देते हैं किन्तु वो गुरु ही है जो हम आपको को मनुष्य बनाते हैं. गुरु के बिना ज्ञान नही मिलता और ज्ञान के बिना मनुष्य पशु से बढ़कर नही. 

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गुरु  गोविन्द  दोउ  खडे ,  काके  लागूं  पाय।
बलिहारी गुरु आपनो गोविन्द दियो मिलाय॥
अर्थ ---  जब हम संशय की स्थिति में होते है तब गुरु ही हमें मार्ग बताते  है .


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श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन   मोह   तम  सो  सप्रकासू। बड़े   भाग  उर   आवइ   जासू॥
 अर्थ ---  श्री गुरु महाराज के चरण नखों  की ज्योति मणियो के प्रकाश के समान है जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है.वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है वह जिसके हृदय में आ जाता है उसके बड़े भाग्य हैं. 
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हरिहर आदिक जगत में पूज्य देव जो कोय ।
सदगुरु  की  पूजा  किये  सबकी  पूजा  होय ॥


अर्थ ---  कितने ही कर्म करो, कितनी ही उपासनाएँ करो, कितने ही व्रत और अनुष्ठान करो, कितना ही धन इकट्ठा कर लो और् कितना ही दुनिया का राज पा लो लेकिन जब तक सदगुरु के दिल का राज तुम्हारे दिल तक नहीं पहुँचता तब तक सदगुरुओं के दिल के खजाने तुम्हारे दिल तक नही उँडेले जायेंगे . इसी प्रकार जब तक तुम्हारा दिल सदगुरुओं के दिल को झेलने के काबिल नहीं बनता तब तक सब कर्म उपासनाएँ पूजाएँ अधुरी रह जाती हैं.यह  अच्छी तरह समझ लो कि  देवी  देवताओं   की पूजा के बाद भी कोई पूजा शेष रह जाती है, किंतु सदगुरु की पूजा के बाद कोई पूजा नहीं बचती.

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सत गहेए सतगुरु को चीन्हे सतनाम विश्वासा॥

कहै कबीर साधन हितकारी हम साधन के दासा॥
 अर्थ ---  प्रत्येक मानव को गुरु भक्ति और साधन का अभ्यास करना चाहिए। इस सत्य की प्राप्ति से सब अवरोध समाप्त हो जाते हैं.

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सदगुरू की महिमा अनंत, अनंत कियो उपकार ॥
अनंत   लोचन   उघडिया   अनंत  दिखावन हार॥
अर्थ --- वास्तव में गुरु की महिमा अनंत है गुरु नें मुझ पर अनेको उपकार किए है उन्होने मेरी बंद आंखो को खोलकर मुझे सत्मार्ग में चलने की प्रेरणा दी.
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गुरु  ब्रम्हा ,  गुरु  विष्णु  ,  गुरु   देवो   महेश्वर:
गुरु साक्षात् पर ब्रम्हा तस्मे श्री गुरुवे नमो नमः
  
 हे गुरुदेव !आपके श्रीचरणों में अनंत कोटि प्रणाम करते हुए परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ  कि आप जिस पद में विश्रांति पा रहे हैं , हम भी उसी पद में विशांति पाने के काबिल हो जायें अब आत्मा-परमात्मा से जुदाई की घड़ियाँ ज्यादा न रहें. ईश्वर करे कि ईश्वर से हमारी प्रीति बढ जायें तथा प्रभु करे कि गुरु-शिष्य का सम्बंध और प्रगाढ हो जायें.

24 जुलाई, 2010

समाचार पत्रों का आभार

समाचार पत्रों का आभार

रेडियो प्रसारण दिवस पर २३ जुलाई को "भारत में रेडियो के बढते कदम" शीर्षक से प्रकाशित पोस्ट को रायपुर के अनेक दैनिक समाचार पत्रों नें प्रकाशित किया है देश के अन्य भागो से भी कुछ मित्रो नें समाचार पत्रों में पढने के बाद मुझे बधाई दी.आप के शहर के किसी अखबार में भी यदि छपा हो तो कृपया मुझे सूचित करने का कष्ट करेंगे .ग्राम चौपाल आभारी है दैनिक नेशनल लुक, दैनिक नई दुनिया, दैनिक प्रतिदिन, दैनिक छत्तीसगढ़ समाचार, दैनिक तरुण छत्तीसगढ़ एंव दैनिक पेज-९ का जिन्होंने इस आलेख को प्रमुखता से प्रकाशित किया.






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23 जुलाई, 2010

रेडियो प्रसारण दिवस

भारत में रेडियो के बढ़ते कदम

आज प्रसारण दिवस है। देश के लिए नई उपलब्धियों का तथा रेडियों श्रोताओं के लिए यह खुशी का दिन है। 83 वर्ष पूर्व 23 जुलाई 1927 को भारत में रेडियो का पहला प्रसारण बम्बई से हुआ। दुनिया में रेडियो प्रसारण का इतिहास काफी पुराना नहीं है। सन 1900 में मारकोनी ने इंग्लैण्ड से अमरीका बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश की शुरूआत की। इसके बाद कनाडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेंसडेन ने 24 दिसम्बर 1906 को रेडियो प्रसारण की शुरूआत की। उन्होंने जब वायलिन बजाया तो अटलांटिक महासागर में विचरण कर रहे जहाजों के रेडियो आपरेटरों ने अपने-अपने रेडियो सेट में सुना। कल्पना कीजिये कितना सुखद क्षण रहा होगा, लोग झूम उठे होंगे। संचार युग में प्रवेश का यह प्रथम पड़ाव था। उसके बाद पिछले 104 वर्षों का इतिहास बड़ा रोचक है। विज्ञान ने खूब प्रगति की। संचार के क्षेत्र में दुनिया अब बहुत आगे बढ़ चुकी है।


भारत में 23 जुलाई 1927 को प्रायोगिक तौर पर प्रसारण शुरू किया गयां उस समय की भारत सरकार एवं इंडियन ब्राडकास्टिंग लिमिटेड के बीच समझौते के तहत रेडियो प्रसारण प्रारंभ हुआ। यह कंपनी 1930में निस्तारण में चली गई तो इसका राष्ट्रीयकरण कर  ”इंडियन ब्राड कास्टिंग कारपोरेशन रखा गया। आजादी के बाद 1956-57 में इसका नाम आल  इंडिया रेडियो या आकाशवाणी रखा गया। जहां तक आकाशवाणी का सवाल है,आजादी के समय 1947 में इसका केवल 6 केन्द्रों एवं 18 ट्रांसमीटरों का नेटवर्क  था तथा उसकी पहुंच केवल 11 प्रतिशत लोगों तक थी। आज आकाशवाणी के 231 केन्द्र तथा 373 ट्रासमीटर है तथा इसकी पहुंच 99 प्रतिशत लोगों तक है। भारत जैसे बहु संस्कृति,बहुभाषी देश में आकाशवाणी से 24भाषाओं में इसकी घरेलू सेवा का  प्रसारण होता है। आकाशवाणी मिडियम वेव, शार्ट वेव एवं एफ.एम के माध्यम से प्रसारण सेवा प्रदान करती है।


तब और अब में आज कितना फर्क हो गया है। एक समय था जब रेडियो ही संचार का प्रमुख साधन था लेकिन आज जमाना बदल गया है। धरती के एक छोर से दूसरे छोर तक बैठा व्यक्ति सतत् एक दूसरे के संपर्क में रहता है। दुनिया के किसी भी कोने में कोई भी घटना हो पलभर में सभी जगह प्रसारित हो जाती है। तेज गति से चल रहे इस कॉलखण्ड में रेडियो की बात बड़ी असहज लगती होगी लेकिन यह सच है कि किसी जमाने में रेडियो की अपनी अलग ही शान थी। रेडियो रखना, रेडियो सुनना और रेडियो के कार्यक्रमों में भाग लेना गौरव की बात होती थी। टेलीविजन के आने के बाद रेडियो श्रोताओं में कमी आई है लेकिन एफ.एम के आने के बाद अब पुनः रेडियो के दिन लौट रहे हैं।


आजादी के बाद रेडियो का इतिहास सरकारी ही रहा है। भारत में रेडियो सरकारी नियंत्रण में ही रहा है। आम आदमी को रेडियो चलाने की अनुमति हेतु अनेक क्षेत्रों से दबाव आया। सन् 1995 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि रेडियो तरंगों पर सरकार का एकाधिकार नहीं है। सन् २००२ में एन.डी.ए.सरकार ने शिक्षण संस्थानों को कैंपस रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति दी। उसके बाद 2006 में शासन ने स्वयंसेवी संस्थाओं को रेडियो स्टेशन चलाने की अनुमति दी। परंतु इन रेडियो स्टेशनों से समाचार या सम-सामयिक विषयों पर चर्चा के प्रसारण पर पाबंदी है। फिर भी यह रेडियो जगत के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है.


बहरहाल आकाशवाणी नें 23जुलाई 1927 से अब तक 83  वर्ष कि यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की है तथा तमाम अवरोधों के बावजूद वह पूरी गति के साथ आगे बढ़ रही है आकाशवाणी परिवार के साथ साथ सभी श्रोताओं को प्रसारण दिवस की हार्दिक बधाई