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पिछले वर्ष भी लगभग यही स्थिति थी, सावन में नाम मात्र का पानी गिरा था तब सावन की बिदाई में एक छतीसगढ़ी कविता लिखी थी जो 25.08.2010 को ग्राम चौपाल में लगी थी . कविता का शीर्षक था " भादो म बरसबे, सावन असन " . . .
भादो म बरसबे, सावन असन
(छत्तीसगढ़ी कविता)
चल दिस सावन,
पर ते जाबे झन;
सुक्खा हे धरती ,
ते रिसाबे झन;
सुक्खा हे धरती ,
ते रिसाबे झन;
भादो म बरसबे ,
सावन असन;
चुचुवावत हे पसीना,
फीजे हे बदन;
सावन असन;
चुचुवावत हे पसीना,
फीजे हे बदन;
भविष्य के चिंता म,
बूड़े हे मन ;
भादो म बरसबे ,
सावन असन;
सावन असन;
रदरद ले गिरबे ,
गरजबे झन ;
भर जाय तरिया ,
फीज जाय तन;
भादो म बरसबे ,
सावन असन;
आजा ते आजा ,
अगोरत हवन ;
खेत खार ला भरदे ,
करत हन मनन;
भादो म बरसबे,
सावन असन.
गरजबे झन ;
भर जाय तरिया ,
फीज जाय तन;
भादो म बरसबे ,
सावन असन;
आजा ते आजा ,
अगोरत हवन ;
खेत खार ला भरदे ,
करत हन मनन;
भादो म बरसबे,
सावन असन.