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स्वयंभूनाथ |
हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की पांचवी किश्त......
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स्वयंभूनाथ |
स्वयंभूनाथ और काठ के राजमहल का दर्शन
नेपाल कृषि प्रधान देश ; यहां 22646 प्राथमिक सहकारी समितियां
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स्वयंभूनाथ |
अब स्वयंभूनाथ के दर्शन की बारी थी , अतः सभी ने होटल पहुँच कर जल्दी जल्दी भोजन किया फिर निकल पड़े स्वयंभू नाथ का दर्शन करने . वैसे तो काठमांडू शहर पहाड़ में बसा है लेकिन स्वयंभूनाथ काठमांडू से और ऊपर पहाडी पर स्थित है . मंदिर से एक फर्लांग पहले बस खड़ी हुई , आगे चढाई थी तथा पैदल ही जा सकते थे सो पैदल चलते चलते पूरा काठमांडू शहर देख रहे थे . मौसम भी हल्की बदली छाये होने के कारण सुहावना हो गया था . एक पहाडी में हम थे सामने अन्य पहाड़िया थी . पहाड़ियों के बीच में पूरा काठमांडू शहर और वहां की हरियाली दृष्टिगोचर हो रही थी . स्वयंभूनाथ परिसर के एक कमरे में भजन कीर्तन की आवाज सुनाई दी , सभी बारी बारी से अन्दर गए वहां अनेक बौद्ध संप्रदाय के भक्तजन कतारबद्ध बैठकर पाठ कर रहे थे , सबको प्रणाम कर तथा मंदिर का दर्शन कर हम सब नीचे उतारे और पुनः बस में बैठ कर पुराने राजमहल में पहुँच गए .
राजमहल का नजारा तो और भी अदभूत था.इसे देखकर मन काफी प्रसन्नचित् हो गया. दीवारों को छोड़कर पूरा राजमहल काठ (लकड़ी) से बना है. अब समझ आया कि इस शहर का नाम काठमांडू क्यों पड़ा . छत के छज्जे के सहयोग (सपोर्ट) के लिए जो लकड़ियॉं लगी है, उसे भी देवी-देवताओं का स्वरूप दिया गया है . वहॉं पर बजरंग बली, गणेश जी की मूर्तियां भी स्थापित है. कृष्ण भगवान का मंदिर अलग से है. सभी ने घूम-घूम कर अपने अपने कैमरे में इस दृश्य को कैद किया . लगभग सभी के हाथ में कैमरा था, जिसके पास कैमरा नही था उन्होने मोबाईल से फोटो खींचा. यहाँ पर फोटो ग्रुपिंग भी हुई.
यहॉं से सबको हैण्डी क्राफ्ट जाना था, बस एक बाजार के पास घूमकर आई. बस का इंतजार करते एक बाजार में रूके जहां फल-सब्जियां बिक रही थी. सब्जियों का प्रकार और भाव जानकर भारत की तुलना करने लगे. ककड़ियों का आकार बहुत ही बड़ा था. कुछ ही देर में अपनी बस आ गई , वहां से बस में बैठ कर हम सब हैंडी क्राफ्ट की बाजार में पहुँच गए एकाध दूकान खुली थी जहाँ कालीन, ऊनी कपड़े तथा महिलाओं के श्रृंगार का सामान बिक रहा था .स्वभाविक रूप से महिला प्रतिनिधियों ने अपने श्रृंगार के सामान खरीदे . हम लोग तो केवल बाजार - भाव की जानकारी लेते रहे . एक कालीन का भाव हमने पूछा तो सेल्समेन ने नेपाली करेंसी में 1 लाख 60 हजार रूपये बताया तो सब आश्चर्यचकित हो गए . कालीन का साईंज मुश्किल से 4‘×4‘ रहा होगा.
वहॉं से वापस होटल एवरेस्ट के कांफ्रेंस हॉल में पहुंचे जहां नेशनल कोआपरेटिव्ह फेडरेशन नेपाल के चेयरमेन और वाईस चेयरमैन ने नेपाल की सहकारिता पर प्रेजेन्टेशन प्रस्तुत किया. सेमीनार में जानकारी दी गई कि नेपाल कृषि प्रधान देश है तथा यहां 22646 प्राथमिक समितियां, 204 सेकेण्डरी यानी जिला स्तर की समितियां , 1 कोआपरेटिव्ह बैंक तथा 1 नेशनल फेडरेशन है. नेपाल में सहकारिता का जन्म 1956 में हुआ तथा 1963 में बैंक अस्तित्व में आया.1967 में एग्रीकल्चर डेवलपमेंट बैंक (ए.डी.बी.) प्रारंभ हुआ. सभा सोसाइटी एक्ट 1984 में बना तथा 1992 में नया एक्ट बना जिसके अन्तर्गत सहकारिता का कामकाज संचालित हो रहा है.नेपाल में सहकारिता विभाग के अलावा राष्ट्रीय सहकारी बोर्ड (National Cooperative Development Board ) भी है. नेशनल को-आपरेटिव्ह फेडरेशन नेपाल भारत के इफको और राष्ट्रीय सहकारी संघ दिल्ली के अलावा जापान, मलेशिया एवं श्रीलंका की अनेक संस्थाओं का भी मेम्बर है.
हमने देखा कि नेपाल की राजधानी काठमांडू में सहकारी बैंकों का जाल बिछा हुआ है. सड़कों पर घूमते हुये जगह जगह हमें सहकारी बचत व ऋण समितियों के सैकड़ों बोर्ड दिखाई दिये.हमारे होटल के ठीक बांयी ओर एक तीन मंजिले भवन में कृषि विकास बैंक स्थित था.राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष ने बताया कि नेपाल के लगभग 3 मिलियन लोग सहकारी क्षेत्र से सीधे जुड़े है. क्रमशः
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पहाड़ से काठमांडू शहर की हरियाली और आसमान पर मंडराते बादल |
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भजन करते बौद्ध धर्मवावंबी |
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विदिशा मध्यप्रदेश के मित्रों के साथ
राजमहल के नज़ारे........
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