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12 जुलाई, 2010

भविष्यवक्ता पॉल बाबा


विश्व कप के भविष्यवक्ता पॉल बाबा का भविष्य 

फूटबाल के विश्व कप फाईनल में स्पेन ने नीदरलैण्ड को एक गोल से हराकर विश्वकप हासिल कर लिया। फाईनल मैच के साथ ही विश्व भर के खेलप्रेमियों पर चढ़ा फूटबाल का फीवर तो शायद उतर गया होगा लेकिन स्पेन के लोग तो एक साथ होली-दीवाली मना रहे हैं। वैसे भी आक्टोपस पॉल ने स्पेन के जीतने की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी। यदि स्पेन हार जाता तो आक्टोपस पॉल की विश्वसनीयता भी खत्म हो जाती। पॉल की भविष्यवाणी को कायम रखने के लिए स्पेन का जीतना बहुत जरूरी हो गया था। दरअसल इस फाईनल मैच में स्पेन से ज्यादा आक्टोपस पॉल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। एक तरफ आक्टोपस पॉल ने स्पेन के जीतने की भविष्यवाणी की थी तो दूसरीरीदूसरी  तरफ मणि नाम के भविष्यवक्ता तोते ने नीदरलैण्ड के शहनशॉह बनने की घोषणा की थी। इन भविष्यवाणियों के चलते विश्व कप फाईनल ‘‘स्पेन बनाम नीदरलैण्ड’’ के बजाय ‘‘पॉल बनाम मणि’’ हो गया था। अनेक लोगों की दिलचस्पी केवल इसी में थी कि किसकी भविष्यवाणी सच हो रही है। लगातार सच भविष्यवाणी करने वाले पॉल की भविष्यवाणी इस बार भी सच होगी अथवा नहीं ? यदि पॉल की भविष्यवाणी सच नहीं निकली तो पॉल का भविष्य क्या होगा ?अंततः स्पेन विश्व चैम्पियन बन ही गया। लेकिन जीता कौन स्पेन या पॉल ? इस जीत का श्रेय स्पेन के खिलाड़ियों की मेहनत को दिया जाय या पॉल को ? दुनिया भर की मीडिया ने पॉल को लेकर जो उत्सुकता पैदा की थी उससे तो यही लगता है कि स्पेन ने अपने खिलाड़ियों के दम पर नहीं बल्कि पॉल की भविष्यवाणी के दम पर विश्वकप जीता है।

अब हमें पॉल के भविष्य की चिन्ता करनी चाहिए क्योंकि स्पेन के जीतते ही उसकी मार्केट वैल्यू बढ़ गई है। भविष्य में कोई भी खिलाड़ी मैच के लिए अभ्यास करने के बजाय पॉल बाबा के शरण में जायेगा। खिलाड़ी की ही क्या बात करें अन्य क्षेत्र का प्रतियोगी भी सफलता के लिए शार्टकट रास्ता ही अपनाएगा। चाहे वह विद्यार्थी हो चाहे राजनेता अथवा कोई आई.ए.एस या आई.पी.एस का परीक्षार्थी क्यों न हो सभी मेहनत करने के बजाय पॉल बाबा की शरण में पड़े रहेगें। भले ही परिणाम स्पेन जैसा मिले अथवा नहीं । उधर जर्मनी में पॉल बाबा के नाम पर काफी आक्रोश देखा जा रहा है, कहीं ऐसा न हो कि आक्टोपस पॉल जर्मनी वालों के आक्रोश का शिकार हो जाय, उसने भविष्यवाणी करके बला मोल ले लिया है। यदि भविष्यवाणी झूठी होती तो कोई पूछता भी नहीं, सच हो गई तो मुसीबतों का जंजाल सामने आ गया है। अब आक्टोपस यानि पाल बाबा तेरा भविष्य कौन बतायेगा ?

01 जुलाई, 2010

दिन है सुहाना आज पहली तारीख है

फिल्म पहली तारीख का यह गीत आज भी प्रासंगिक तो है ही साथ ही साथ लोकप्रिय भी है । वर्षो बाद भी आज यह गीत लोगो के जुबान में है। धन्य हो रेडियो सिलोन का जिसने हर महीने की पहली तारीख को सुबह 7:30 बजे इस गीत के प्रसारण की परम्परा डाल रखी है । 40 वर्षो से तो मैं स्वयं सुन रहा हूँ । आधुनिक युग में पहली तारीख का क्या महत्व है उसे इस गीत में बखूबी चित्रण किया गया है । इस गीत में आम आदमी की भावना तथा उसकी दशा का वर्णन किया गया है। विशेष कर निम्न मध्यम आय वर्ग के लोगो के दिल की बात को इस गीत में लिखा गया है । गीत के गायक किशोर कुमार धन्यवाद के पात्र है । दरअसल पुरानी फिल्मो के गीतो मे बोल व लय का पूरा समन्वय होता था । आज के फिल्मी गीतो में वो बात कहां ? पुराने जमाने की फिल्में मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक होती थी उसमे गीतों का बड़ा महत्व था । वर्तमान समय में फिल्मी गीतो का तो बूरा हाल है। आज के फिल्मी गीतों में पाश्चात्य संगीत हावी है , गीतो में न लय है न मिठास । यही कारण है कि कोई भी हिट से हिट गीत 6 माह में लोगों के जेहन से उतर जाता है । जबकि पुराने गीतों के बोल वर्षो बाद भी लोगो के जुबां मे है । आज घड़ी ने जैसे ही पहली तारीख का संकेत दिया बरबस ही इस गीत की याद आ गई । मै पुराना रेडियो श्रोता हूँ इस नाते आल इंडिया ओल्ड लिसनर्स ग्रुप, छत्तीसगढ़ रडियो श्रोता संघ, अहिंसा रेडियो श्रोता संघ तथा आकांक्षा रेडियो श्रोता संघ से जुड़ा हूँ । ये बातें पूर्व पोस्ट में जल्दबाजी के कारण छुट गई थी अतः पोस्ट संपादित कर रहा हूँ .। पढ़ कर आप भी अतीत में खो जायेंगें ।
दिन है सुहाना आज पहली तारीख है


दिन है सुहाना आज पहली तारीख है

खुश है ज़माना आज पहली तारीख है
पहली तारीख अजी पहली तारीख है
बीवी बोली घर ज़रा जल्दी से आना,
जल्दी से आना
शाम को पियाजी हमें सिनेमा दिखाना,
हमें सिनेमा दिखाना
करो ना बहाना हाँ बहाना बहाना करो ना बहाना
आज पहली तारीख है
खुश है ज़माना आज पहली तारीख है
पहली तारीख अजी पहली तारीख ह
किस ने पुकारा रुक गया बाबु
लालाजी की जाँ आज आया है काबू
आया है काबू ओ पैसा ज़रा लाना लाना लाना ओ पैसा ज़रा लाना
आज पहली तारीख है
खुश है ज़माना आज पहली तारीख है
पहली तारीख अजी पहली तारीख ह

बंदा बेकार है क़िसमत की मार है

सब दिन एक है रोज़ ऐतबार है

मुझे ना सुनाना हाँ सुनाना सुनाना

मुझे ना सुनाना आज पहली तारीख है
खुश है ज़माना आज पहली तारीख है
पहली तारीख अजी पहली तारीख है

दफ़्तर के सामने आए मेहमान हैं

बड़े ही शरीफ़ हैं पुराने मेहरबान हैं

अरे जेब को बचाना बचाना बचाना
जेब को बचाना आज पहली तारीख है
खुश है ज़माना आज पहली तारीख है
पहली तारीख अजी पहली तारीख है



26 जून, 2010

माँ

माँ

जो मस्ती आँखों में है,

मदिरालय में नहीं ;

अमीरी दिल की कोई,

महालय में नहीं ;

शीतलता पाने के लिए

कहाँ भटकता है मानव ;

जो माँ की गोद में है
वह हिमालय में नहीं ;

-(अज्ञात)

24 जून, 2010

नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति समाज के लिए घातक


नई पीढ़ी को नशाखोरी से बचाएं

समा में बढ़ती नशाखोरी की प्रवृत्ति के अनेक घातक परिणाम सामने आ रहे हैं। इससे समाज में अनुशासनहीनता बढ़ रही है, गांव की न्याय व्यवस्था चरमरा रही है तथा परिवार उजड़ रहे हैं। नशाखोरी के कारण लोगों की मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक हालत बिगड़ रही है । नई पीढ़ी में भी नशाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यदि समय रहते इस प्रवाह को नहीं रोका गया तो इसके घातक परिणाम होंगे । व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, युवा हो या वृद्ध, महिला हो या पुरूष कोई भी वर्ग इस रोग से अछुता नहीं है । आज हमें घर हो या दफ्तर, स्कूल हो या कालेज, गांव हो या ‘शहर सभी स्थानों पर नशाखोर व्यक्ति या व्यक्तियों की जमात दिखाई देती है । नशाखोरी केवल एक रोग नहीं बल्कि यह अनेक रोगों की जननी भी है, इसी प्रवृत्ति के चलते मनुष्य का मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक पतन तेजी से हो रहा है। सामाजिक मर्यादाए भंग हो रही है । नैतिक मूल्यों का तेजी से हृास हो रहा है । समाज में बढ़ रही आपराधिक प्रवृति के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार किसी को माना जा सकता है तो वह नशाखोरी ही है । ‘शराब के नशे मे चूर व्यक्ति असामान्य हालात में क्या क्या हरकतेंं नहीं करता । आये दिनों नशाखोरों की नित्य नई करतबें देखने सुनने व पढ़नेको मिलती है। नशाखोरी से न केवल अपराध बढ़ रहें है बल्कि इससे दुघर्टनाएं भी तेजी से बढ़ रही है । आधे से अधिक सड़क दुर्घटनाओं के लिए नशाखोरी को ही जिम्मेदार माना गया है । कभी यात्री बस पलट जाती है तो कभी बारातियों से भरा वाहन दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है । अनेको लोग इसकी वजह से अकाल मृत्यु के शिकार हो रहें है अथवा निःशक्त हो रहे है । ‘शराब पीना केवल मजबूरी नहीं बल्कि यह ऐश्वर्य प्रदर्शन का एक माध्यम बन गया है । अनेक लोग इसे विलासिता की वस्तु मान कर इस्तेमाल करते है । अपनी तथाकथित प्रतिष्ठा में चार चांद लगाने के लिए महंगी से महंगी शराब पीना आज फैशन हो गया है । यह समझ से परे है कि खुद तमाशबीन बनकर कोई कैसे अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाता होगा । तीज त्योहार हो या मांगलिक कार्य पीनेवालों को तो केवल बहाना ही चाहिए । आज के युग में महफिल सजे बिना कोई जश्न संभव ही नहीं है। यह अलग बात है कि महफिल सजते सजते किसी को लग गई तो पूरे रंग में भंग पड़ जाता है । नशा खोरी के कारण धार्मिक सामाजिक या राजनैतिक आयोजनों का निर्विध्न सम्पन्न हो जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं. नशाखोरी के कारण व्यक्ति सब कुछ खोता जा रहा है। नशे के लिए वह क्या कुछ त्याग नहीं करता । घर परिवार एवं जमीन जायदाद को भी त्याग देता है यह कैसी खतरनाक त्याग की भावना है ? क्या कोई शराबी देश, समाज व प्रकृति के लिए यह सब त्याग कर सकेगा । इन तथाकथित त्यागियों के कारण समाज में अनैतिकता एवं अनुशासनहीनता बढ़ रही है, । सामाजिक व्यवस्थायें चकनाचूर हो रही है । आपस के रिश्तें टुट रहंे है एवं परिवार उजड़ रहे है।मेहनत कश लोग पी-पी कर सूख रहें है और शराब के निर्माता व वितरक हरे हो रहें है । चंद लोगो के जीवन की हरियाली के लिए समूचे समाज को बंजर बनाया जा रहा है । हमें यह भी सोचना होगा कि लाखों - करोड़ों जिन्दगियों को तबाह करने का लाइसेंस क्या मुटृठी़भर लोगों के दे दिया जाय । देश में भौतिक विकास के नाम पर प्रति वर्ष अरबों रूपिये खर्च हो रहे है लेकिन यह विकास किसके लिए ?भौतिक विकास के साथ साथ नैतिक विकास भी जरूरी है। देश में मौजूद मानव संसाधन कितना स्वस्थ, पुष्ट एवं मर्यादित है हमें यह देखना होगा । मानव संसाधन के समुचित दोहन से ही राष्ट्र विकसित हो सकता । देश मे मौजूद मानव संसाधन को रचनात्मक विकास की दिशा मे लगाना होगा । कोई भी देश या समाज अपने मानव संसाधन को निरीह, निःशक्त या निर्बल बनाकर खुद कैसे शक्तिशाली हो सकता है ? यह नशाखोरी का ही दुष्परिणाम है कि मानव कमजोर, आलसी व लापरवाह होता जा रहा है । हमें नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति को रोकना होगा । लोगों के हाथों में दारू की बोतल नहीं बल्कि काम करने वाले औजार होने चाहिए । कौन देगा उन्हें ऐसी प्रेरणा ? इस बुरी लत को सरकार के किसी कानून से खत्म नहीं किया जा सकता । इसके लिए समाज में जागरूकता लानी होगी । नई पीढ़ी को इस दुव्र्यसन के दुष्परिणामों का बोध कराना होगा । समाजसेवियों एवं समाज के कर्णधारों को बिना वक्त गवायें अब इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है क्योकि हमें शांति ,सदभाव व भाईचारे का वातावरण निर्मित कर स्वस्थ समाज का निर्माण करना है । नशाखोरी के खिलाफ “नशा हे खराब :झन पीहू शराब" का नारा खूब चल पड़ा है इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे है । ग्रामीण क्षेत्रों में एक नई चेतना का संचार हुआ है । इस छत्तीसगढ़ी नारे के कारण समाज में नई उर्जा का संचार हुआ है । मैं समझता हूँ कि नशा मुक्ति के क्षेत्र में यह नारा मील का पत्थर सिद्ध होगा ।

नशा हे खराबःझन पीहू शराब