26 जून, 2010
24 जून, 2010
नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति समाज के लिए घातक
नई पीढ़ी को नशाखोरी से बचाएं
समाज में बढ़ती नशाखोरी की प्रवृत्ति के अनेक घातक परिणाम सामने आ रहे हैं। इससे समाज में अनुशासनहीनता बढ़ रही है, गांव की न्याय व्यवस्था चरमरा रही है तथा परिवार उजड़ रहे हैं। नशाखोरी के कारण लोगों की मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक हालत बिगड़ रही है । नई पीढ़ी में भी नशाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यदि समय रहते इस प्रवाह को नहीं रोका गया तो इसके घातक परिणाम होंगे । व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, युवा हो या वृद्ध, महिला हो या पुरूष कोई भी वर्ग इस रोग से अछुता नहीं है । आज हमें घर हो या दफ्तर, स्कूल हो या कालेज, गांव हो या ‘शहर सभी स्थानों पर नशाखोर व्यक्ति या व्यक्तियों की जमात दिखाई देती है । नशाखोरी केवल एक रोग नहीं बल्कि यह अनेक रोगों की जननी भी है, इसी प्रवृत्ति के चलते मनुष्य का मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक पतन तेजी से हो रहा है। सामाजिक मर्यादाए भंग हो रही है । नैतिक मूल्यों का तेजी से हृास हो रहा है । समाज में बढ़ रही आपराधिक प्रवृति के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार किसी को माना जा सकता है तो वह नशाखोरी ही है । ‘शराब के नशे मे चूर व्यक्ति असामान्य हालात में क्या क्या हरकतेंं नहीं करता । आये दिनों नशाखोरों की नित्य नई करतबें देखने सुनने व पढ़नेको मिलती है। नशाखोरी से न केवल अपराध बढ़ रहें है बल्कि इससे दुघर्टनाएं भी तेजी से बढ़ रही है । आधे से अधिक सड़क दुर्घटनाओं के लिए नशाखोरी को ही जिम्मेदार माना गया है । कभी यात्री बस पलट जाती है तो कभी बारातियों से भरा वाहन दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है । अनेको लोग इसकी वजह से अकाल मृत्यु के शिकार हो रहें है अथवा निःशक्त हो रहे है । ‘शराब पीना केवल मजबूरी नहीं बल्कि यह ऐश्वर्य प्रदर्शन का एक माध्यम बन गया है । अनेक लोग इसे विलासिता की वस्तु मान कर इस्तेमाल करते है । अपनी तथाकथित प्रतिष्ठा में चार चांद लगाने के लिए महंगी से महंगी शराब पीना आज फैशन हो गया है । यह समझ से परे है कि खुद तमाशबीन बनकर कोई कैसे अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाता होगा । तीज त्योहार हो या मांगलिक कार्य पीनेवालों को तो केवल बहाना ही चाहिए । आज के युग में महफिल सजे बिना कोई जश्न संभव ही नहीं है। यह अलग बात है कि महफिल सजते सजते किसी को लग गई तो पूरे रंग में भंग पड़ जाता है । नशा खोरी के कारण धार्मिक सामाजिक या राजनैतिक आयोजनों का निर्विध्न सम्पन्न हो जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं. नशाखोरी के कारण व्यक्ति सब कुछ खोता जा रहा है। नशे के लिए वह क्या कुछ त्याग नहीं करता । घर परिवार एवं जमीन जायदाद को भी त्याग देता है यह कैसी खतरनाक त्याग की भावना है ? क्या कोई शराबी देश, समाज व प्रकृति के लिए यह सब त्याग कर सकेगा । इन तथाकथित त्यागियों के कारण समाज में अनैतिकता एवं अनुशासनहीनता बढ़ रही है, । सामाजिक व्यवस्थायें चकनाचूर हो रही है । आपस के रिश्तें टुट रहंे है एवं परिवार उजड़ रहे है।मेहनत कश लोग पी-पी कर सूख रहें है और शराब के निर्माता व वितरक हरे हो रहें है । चंद लोगो के जीवन की हरियाली के लिए समूचे समाज को बंजर बनाया जा रहा है । हमें यह भी सोचना होगा कि लाखों - करोड़ों जिन्दगियों को तबाह करने का लाइसेंस क्या मुटृठी़भर लोगों के दे दिया जाय । देश में भौतिक विकास के नाम पर प्रति वर्ष अरबों रूपिये खर्च हो रहे है लेकिन यह विकास किसके लिए ?भौतिक विकास के साथ साथ नैतिक विकास भी जरूरी है। देश में मौजूद मानव संसाधन कितना स्वस्थ, पुष्ट एवं मर्यादित है हमें यह देखना होगा । मानव संसाधन के समुचित दोहन से ही राष्ट्र विकसित हो सकता । देश मे मौजूद मानव संसाधन को रचनात्मक विकास की दिशा मे लगाना होगा । कोई भी देश या समाज अपने मानव संसाधन को निरीह, निःशक्त या निर्बल बनाकर खुद कैसे शक्तिशाली हो सकता है ? यह नशाखोरी का ही दुष्परिणाम है कि मानव कमजोर, आलसी व लापरवाह होता जा रहा है । हमें नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति को रोकना होगा । लोगों के हाथों में दारू की बोतल नहीं बल्कि काम करने वाले औजार होने चाहिए । कौन देगा उन्हें ऐसी प्रेरणा ? इस बुरी लत को सरकार के किसी कानून से खत्म नहीं किया जा सकता । इसके लिए समाज में जागरूकता लानी होगी । नई पीढ़ी को इस दुव्र्यसन के दुष्परिणामों का बोध कराना होगा । समाजसेवियों एवं समाज के कर्णधारों को बिना वक्त गवायें अब इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है क्योकि हमें शांति ,सदभाव व भाईचारे का वातावरण निर्मित कर स्वस्थ समाज का निर्माण करना है । नशाखोरी के खिलाफ “नशा हे खराब :झन पीहू शराब" का नारा खूब चल पड़ा है इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे है । ग्रामीण क्षेत्रों में एक नई चेतना का संचार हुआ है । इस छत्तीसगढ़ी नारे के कारण समाज में नई उर्जा का संचार हुआ है । मैं समझता हूँ कि नशा मुक्ति के क्षेत्र में यह नारा मील का पत्थर सिद्ध होगा ।
नशा हे खराबःझन पीहू शराब
19 जून, 2010
मोदी-नीतिश विवाद
पाणिग्रहण को लगा ग्रहण- अशोक बजाज
ताजा घटनाक्रम के अनुसार बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को बाढ़ पीड़ितों के सहायतार्थ प्रदत्त 5 करोड़ रूपिये लौटा दिये हैं। गुजरात सरकार ने यह राशि कोशी बाढ़ राहत के लिए प्रदान किया था। हमारा देश संघीय गणराज्य वाला देश है। जब किसी प्रांत में प्राकृतिक आपदा से जन-धन की भारी क्षति होती हैं तो दूसरे प्रांत अपनी क्षमता व परिस्थितियों के अनुसार सहायता करते हैं। इतना बड़ा देश है, यदा-कदा प्राकृतिक आपदायें आती ही रहती है। कहीं भूकंप के झटके पड़ते हैं कहीं बाढ़ आ जाती है, किसी राज्य में अनावृष्टि से सूखा संकट उत्पन्न हो जाता है। मानवीय संवदेना के तहत केन्द्र सरकार तथा राज्य की सरकारें मदद करती है। गुजरात सरकार ने कोशी नदी में आई भीषण बाढ़ के मद्देनजर बिहार सरकार को पीड़ितों के सहायतार्थ 5 करोड़ रूपिये आबंटित किये थे। जिसे ताजा घटनाक्रम के चलते बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने लौटा दिये। ऐसी बात नहीं कि बिहार सरकार ने यह कसम खाकर कि चाहे बिहार में कितना भी संकट आये हम किसी से कभी भी सहायता नहीं लेंगे बल्कि निकृष्ट राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते यह राशि लौटाई गई है। बिहार की जनता इसे किस रूप में लेती है, यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन गुजरात व बिहार के मुख्यमंत्रियों का हाथ(पाणि) पकड़ कर जनता को एकता का संदेश देने वाला पोस्टर विवाद का मूल कारण बना है। भारत में पाणिग्रहण पवित्र व अटूट बंधन का परिचायक है लेकिन ताजाघटनाक्रम ने इस भावना को पलट दिया है। बिहार के मुख्यमंत्री को यह नागवार गुजरा कि पोस्टर में नरेन्द्र मोदी के साथ हाथ पकड़कर मंच में खडे़ होकर उन्हेंे अभिवादन करते हुये दिखाया गया है। पाणिग्रहण के इस पोस्टर से हो सकता है बिहार के लाखों लोगों को सुकुन मिला हो, यह भी हो सकता है कि दोनों गठबंधन दलों के लीडरों को सुकुन मिला हो लेकिन इससे नीतिश कुमार का क्या है ? उन्हें तो पाणिग्रहण की पवित्रता से ज्यादा अपनी कुर्सी की चिंता है। उन्हें लगता है कि यह पोस्टर उन्हें कुर्सी से बेदखल कर देगा यही कारण है कि पोस्टर देखते ही उनका गुस्सा फुट पड़ा। अपनी प्रतिक्रिया को वे दबा भी नहीं पाये। सभी मर्यादाओं को ताक में रखकर अतिथियों के सम्मान में आयोजित भोज को रद्द कर दिया। आज उन्होंने आपदा प्रबंधन के लिए प्रदत्त राशि लौटा कर अपने गुस्से का इजहार किया है . श्री नितीश कुमार नें गठबंधन धर्म का पालन भी नहीं किया। उन्हें अपने राजनैतिक हितों के मद्देनजर ऐसा कदम उठाना भले ही जरूरी रहा होगा लेकिन नैतिकता की दृष्टि से उनका यह कदम कितना वाजिब है इसका फैसला बिहार की जनता को ही करना है। हम जैसे लोगों को पाणिग्रहण शब्द का अर्थ बदलने से गहरा आघात लगा है।
ताजा घटनाक्रम के अनुसार बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को बाढ़ पीड़ितों के सहायतार्थ प्रदत्त 5 करोड़ रूपिये लौटा दिये हैं। गुजरात सरकार ने यह राशि कोशी बाढ़ राहत के लिए प्रदान किया था। हमारा देश संघीय गणराज्य वाला देश है। जब किसी प्रांत में प्राकृतिक आपदा से जन-धन की भारी क्षति होती हैं तो दूसरे प्रांत अपनी क्षमता व परिस्थितियों के अनुसार सहायता करते हैं। इतना बड़ा देश है, यदा-कदा प्राकृतिक आपदायें आती ही रहती है। कहीं भूकंप के झटके पड़ते हैं कहीं बाढ़ आ जाती है, किसी राज्य में अनावृष्टि से सूखा संकट उत्पन्न हो जाता है। मानवीय संवदेना के तहत केन्द्र सरकार तथा राज्य की सरकारें मदद करती है। गुजरात सरकार ने कोशी नदी में आई भीषण बाढ़ के मद्देनजर बिहार सरकार को पीड़ितों के सहायतार्थ 5 करोड़ रूपिये आबंटित किये थे। जिसे ताजा घटनाक्रम के चलते बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने लौटा दिये। ऐसी बात नहीं कि बिहार सरकार ने यह कसम खाकर कि चाहे बिहार में कितना भी संकट आये हम किसी से कभी भी सहायता नहीं लेंगे बल्कि निकृष्ट राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते यह राशि लौटाई गई है। बिहार की जनता इसे किस रूप में लेती है, यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन गुजरात व बिहार के मुख्यमंत्रियों का हाथ(पाणि) पकड़ कर जनता को एकता का संदेश देने वाला पोस्टर विवाद का मूल कारण बना है। भारत में पाणिग्रहण पवित्र व अटूट बंधन का परिचायक है लेकिन ताजाघटनाक्रम ने इस भावना को पलट दिया है। बिहार के मुख्यमंत्री को यह नागवार गुजरा कि पोस्टर में नरेन्द्र मोदी के साथ हाथ पकड़कर मंच में खडे़ होकर उन्हेंे अभिवादन करते हुये दिखाया गया है। पाणिग्रहण के इस पोस्टर से हो सकता है बिहार के लाखों लोगों को सुकुन मिला हो, यह भी हो सकता है कि दोनों गठबंधन दलों के लीडरों को सुकुन मिला हो लेकिन इससे नीतिश कुमार का क्या है ? उन्हें तो पाणिग्रहण की पवित्रता से ज्यादा अपनी कुर्सी की चिंता है। उन्हें लगता है कि यह पोस्टर उन्हें कुर्सी से बेदखल कर देगा यही कारण है कि पोस्टर देखते ही उनका गुस्सा फुट पड़ा। अपनी प्रतिक्रिया को वे दबा भी नहीं पाये। सभी मर्यादाओं को ताक में रखकर अतिथियों के सम्मान में आयोजित भोज को रद्द कर दिया। आज उन्होंने आपदा प्रबंधन के लिए प्रदत्त राशि लौटा कर अपने गुस्से का इजहार किया है . श्री नितीश कुमार नें गठबंधन धर्म का पालन भी नहीं किया। उन्हें अपने राजनैतिक हितों के मद्देनजर ऐसा कदम उठाना भले ही जरूरी रहा होगा लेकिन नैतिकता की दृष्टि से उनका यह कदम कितना वाजिब है इसका फैसला बिहार की जनता को ही करना है। हम जैसे लोगों को पाणिग्रहण शब्द का अर्थ बदलने से गहरा आघात लगा है।
14 जून, 2010
=== नवां अंजोर ===
गोकुल जईसे ह़र गाँव,
जिंहाँ ममता के छाँव !
सुन्दर निर्मल तरिया नरूवा,
सुग्घर राखबो गली खोर ,
तब्भे आही नवां अंजोर !
हर खेत खार में पानी ,
जिंहाँ मेहनत करे जवानी !
लहलहाए जब फसल धान के,
चले किसान तब सीना तान के !
घर घर में नाचे चितचोर ,
तब्भे आही नवां अन्जोर !!
(छत्तीसगढ़ी कविता)
- अशोक बजाज रायपुर
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