छत्तीसगढ़ी कविता
गोकुल जईसे ह़र गाँव,
जिंहाँ ममता के छाँव ।
सुन्दर निर्मल तरिया नरूवा,
सुग्घर राखबो गली खोर ।।
तब्भे आही नवां अंजोर।
जब जम्मो खार मा पानी,
जिंहाँ मेहनत करे जवानी।
लहलहाए जब फसल धान के,
चले किसान तब सीना तान के
हर घर नाचे जब मनमोर,
तब्भे आही नवां अन्जोर।
- अशोक बजाज रायपुर
3 टिप्पणियां:
नमस्ते,
आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।
बने लिखे हस गा
जोहार ले
achchhi koshish hai bhai. badhaai. aap aaye bahaar aayee. yanee ki bheetar kaa dabaa huaa patrakaar aakhir bahar aaa hi gayaa..? achchha hai.
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