रेडियो श्रोता दिवस (20 अगस्त) पर विशेष लेख
संचार क्रांति के इस दौर में रेडियो की महत्ता आज भी बरकरार है । 20वीं सदी में तो यह संचार व मनोरंजन का सबसे सशक्त व प्रभावी माध्यम था । आजादी के आंदोलन के दौरान और बाद में भी अनेक अवसरों पर रेडियो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । 15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने की सूचना रेडियो के माध्यम से ही गांव-गांव तक पहुंची थी। दिल्ली के प्रमुख चैराहों में प्रधानमंत्री का संदेश सुनने के लिए रेडियो सेट लगाये गये थे । जनता को कोई महत्वपूर्ण सूचना व संदेश देना हो, प्राकृतिक आपदा से लोंगों को सावधान करना हो अथवा दंगा फसाद जैसी गतिविधियों से दूर रहने की अपील करना हो, सरकार के लिए रेडियो ही त्वरित सूचना का माध्यम था । रेडियो की कनेक्टिविटी सुदूर जंगलों, दुर्गम पहाड़ी इलाकों में होने के कारण आसानी से अधिकांश लोंगों तक सूचना पहुंच जाती थी । सीमा में तैनात सिपाहियों को देश-दुनिया की खबरों एवं मनोरंजन के लिए रेडियो ही एकमात्र सहारा था। हालांकि दुनिया में रेडियो के प्रसारण का इतिहास काफी पुराना नहीं है, सन 1900 में मारकोनी ने इंग्लैण्ड से अमरीका बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश की शुरूआत की. उसके बाद कनाडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेंसडेन ने 24 दिसम्बर 1906 को रेडियो प्रसारण की शुरूआत की, उन्होंने जब वायलिन बजाया तो अटलांटिक महासागर में विचरण कर रहे जहाजों के रेडियो आपरेटरों ने अपने-अपने रेडियो सेट से सुना. उस समय वायलिन का धुन भी सैकड़ों किलोमीटर दूर चल रहे जल यात्रियों के लिए आश्चर्यचकित करने वाला था. संचार युग में प्रवेश का यह प्रथम पड़ाव था. प्रसिध्द साहित्यकार मधुकर लेले ने अपनी पुस्तक ‘‘भारत में जनसंचार और प्रसारण मीडिया’’ में लिखा है कि भारत जैसे विशाल और पारम्परिक सभ्यता के देश में बीसवीं सदी के आरंभ में जब आधुनिक विकास का दौर शुरू हुआ तो नये युग की चेतना के उन्मेष को देश के
विशाल जनसमूह में फैलाना एक गंभीर चुनौती थी. ऐसे समय में जनसंचार के प्रभावी माध्यम के रूप में रेडियो ने भारत में प्रवेश किया. कालांतर में टेलीविजन भी उससे जुड़ गए. दोनों माध्यमों ने हमारे देश में अब तक अपनी यात्रा में कई मंजिलें पार की है. आकाशवाणी और दूरदर्शन ने भारत में प्रसारण मीडिया के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है. भारत जैसे भाषा-संस्कृति-बाहुल्य और विविधता भरे देश में राष्ट्रीय प्रसारक की भूमिका और जिम्मेदारियां बड़ी चुनौती भरी रही हैं.
माना जाता है कि 20 अगस्त 1921 को भारत में रेडियो का पहला प्रसारण हुआ था, टाइम्स ऑफ इण्डिया के रिकार्ड के अनुसार 20 अगस्त 1921 को शौकिया रेडियो ऑपरेटरों ने कलकत्ता, बम्बई, मद्रास और लाहौर में स्वतंत्रता आन्दोलन के समय अवैधानिक रूप से प्रसारण शुरू किया तथा इसे संचार का माध्यम बनाया. छत्तीसगढ़ के रेडियो श्रोताओ ने इसी दिन की याद में 20 अगस्त का चयन रेडियो श्रोता दिवस के रूप में किया. समूचे देश के रेडियो श्रोता संघ विभिन्न स्थानों पर 20 अगस्त को कार्यक्रम आयोजित करते हैं । रेडियो की महत्ता को बरकरार रखने में रेडियो श्रोता महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं । रेडियो के क्षेत्र में क्रांति तब आई जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जन-संवाद के लिए रेडियो का माध्यम बनाया, वे 3 अक्टूबर 2014 से प्रत्येक माह के किसी एक रविवार को सुबह 11 बजे ‘‘मन की बात’’ कार्यक्रम में आकाशवाणी के माध्यम से ज्वलंत मुद्दों की चर्चा करते हैं । ‘‘मन की बात’’ कार्यक्रम का असर ये हुआ कि बरसों से बंद पड़े रेडियो दुकानों के शटर पुनः खुल गये । वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी ने आधुनिक दौर में रेडियो के महत्व को बढ़ाया है । इसी क्रम में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डाॅ. रमन सिंह ने 13 सितम्बर 2015 से आकाशवाणी के माध्यम से ‘‘रमन के गोठ’’ का प्रसारण शुरू किया । इस कार्यक्रम का प्रसारण भी प्रत्येक माह के द्वितीय रविवार को सुबह 10.45 बजे किया जाता है । रेडियो के माध्यम से मुख्यमंत्री डाॅ. रमन सिंह प्रदेश के चहुमुखी विकास के साथ-साथ शिक्षा, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य से जुड़ी बातों पर ना केवल चर्चा करते हैं, बल्कि जनता के सुझावों पर अमल भी करते हैं । यह कार्यक्रम पूरे प्रदेश में लोकप्रिय है ।
अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डाॅ. रमन सिंह ने रेडियो की महत्ता को पुर्नस्थापित किया है। - अशोक बजाज
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