बैसाखी नए साल के आगमन से जुड़ा है और तो इसका धार्मिक महत्व भी है। दसवें सिख गुरु गुरु गोबिन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना इसी दिन की थी। बैसाखी दरअसल एक लोक पर्व है। फसल तैयार होने के उल्लास में यह पर्व और भी खास बन जाता है। सर्दियों के खत्म होने और गर्मी की शुरुआत के साथ ही लोगों का मन उल्लास से भर जाता है। ऐसे में इसे बदलते मौसम के जश्न के तौर पर भी देखा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, गुरु गोबिन्द सिंह ने वैशाख माह की षष्ठी तिथि को खालसा पंथ की स्थापना की थी। सूर्य मेष राशि में अक्सर 13 या 14 अप्रैल को प्रवेश करता है, बैसाखी इन्हीं दोनों दिनों में से किसी एक दिन मनाई जाती है। सिखों के पहले गुरु बाबा नानक देव ने वैशाख माह को आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण बताया है।
बैसाखी का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी खास स्थान है। रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हजारों लोग इकट्ठा हुए थे। जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर गोलियां बरसाई थीं, जिसमें हजारों लोग शहीद हुए थे। (नभाटा)
बैसाखी का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी खास स्थान है। रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हजारों लोग इकट्ठा हुए थे। जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर गोलियां बरसाई थीं, जिसमें हजारों लोग शहीद हुए थे। (नभाटा)
बैसाखी पर्व की आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !
- अशोक बजाज
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