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26 दिसंबर, 2012

छत्तीसगढ़: एक अटल-प्रतिज्ञा जो पूरी हुई

पूर्व प्रधानमंत्री मान. अटल बिहारी वाजपेयी के 89 वें जन्मदिवस पर विशेष लेख

    ह दृश्य अभी भी ऑंखो से ओझल नहीं हो पाया है जब 31 अक्टूबर 2000 को घड़ी की सुई ने रात के 12 बजने का संकेत दिया तो चारो तरफ खुशी  और उल्लास का वातावरण बन गया। लोग मस्ती में   झूमते- नाचते एक दूसरे को बधाइयॉं दे रहे थे. प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेयी की चारों तरफ जय-जयकार हो रही थी. घर घर में दीपमल्लिका सजा कर रोशनी की गई थी. आतिश बाजी का नजारा देखते ही बनता था. पहली सरकार कांग्रेस की बननी थी सो कुर्सी के लिए उठापटक का दौर बंद कमरे में चल रहा था. लोग एक तरफ नए राज्य निर्माण की खुशी  मना रहे थे तो दूसरी तरफ कौन बनेगा प्रथम  मुख्यमंत्री इस जिज्ञाषा में अपना ध्यान राजनीतिक गलियारों की ओर लगायें थे.

    राज्य का गठन करना कोई हंसी खेल तो था नहीं। कई वर्षो से लोग आवाज उठा रहे थे अनेक तरह से आंदोलन भी करते रहे लेकिन राज्य का निर्माण नहीं हो पाया था। इस बीच प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सन 1998 में सप्रेशाला रायपुर के मैदान में एक अटल प्रतिज्ञा की, कि यदि आप लोकसभा की 11 में से 11 सीटो में भाजपा को जितायेंगे तो मैं तुम्हे छत्तीसगढ़ राज्य दूंगा। लोकसभा चुनाव का परिणाम आया। भाजपा को 11 में सें 8 सीटे मिली लेकिन केंद्र में अटल सरकार फिर से बनी। प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप राज्य निर्माण के लिए पहले ही दिन से प्रक्रिया प्रारंभ कर दी। मध्यप्रदेश राज्य पुर्निर्माण विधेयक 2000 को 25 जुलाई 2000 में लोकसभा में पेश किया गया। इसी दिन बाकी दोनो राज्यो के विधेयक भी पेश हुए। 31 जुलाई 2000 को लोकसभा में और 9 अगस्त को राज्य सभा में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रस्ताव पर मुहर लगी। 25 अगस्त को राष्ट्रपति ने इसे मंदूरी दे दी। 4 सिंतबर 2000 को भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशन के बाद 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ देश के 26 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया और एक अटल-प्रतिज्ञा पूरी हुई।

    छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पहले हम मध्यप्रदेश में थे। मध्यप्रदेश का निर्माण सन 1956 में  1 नवम्बर को ही हुआ था। हम 1 नवम्बर 1956 से 31 अक्टूबर 2000 तक यानी 44 वर्षो तक मध्यप्रदेश के निवासी थे तब हमारी राजधानी भोपाल थी। इसके पूर्व वर्तमान छत्तीसगढ़ का हिस्सा सेन्ट्रल प्रोविंस एंड बेरार (सी.पी.एंड बेरार) में था तब हमारी राजधानी नागपुर थी। इस प्रकार हमें पहले सी.पी.एंड बेरार, तत्पश्चात  मध्यप्रदेश और अब छत्तीसगढ़ के निवासी है। वर्तमान छत्तीसगढ़ में जिन लोगो का जन्म 1 नवम्बर 1956 को या इससे पूर्व हुआ वे तीन राज्यो में रहने का सुख प्राप्त कर चुके है।

    परंतु छत्तीसगढ़ राज्य में रहने का अपना अलग ही सुख है। अगर हम भौतिक विकास की बात करे तो छत्तीसगढ़ कें संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि हमने 12 वर्षो से लंबी छलांग लगाई है। मै यह बात इसीलिए लिख रहा हू  क्योंकि हम 1 नवम्बर 2000 के पहले देश की मुख्य धारा से काफी अलग थे। गरीबी, बेकारी, भूखमरी, अराजकता और पिछड़ापन हमें विरासत में मिला। छत्तीसगढ़ इन बारह वर्षो मे गरीबी, बेकारी, भुखमरी, अराजकता और पिछड़ापन के खिलाफ संघर्ष करके आज ऐसे मुकाम पर खड़ा है जहा देखकर अन्य विकासशील  राज्यों का ईर्ष्या हो सकती है। इस नवोदित राज्य को पलायन व पिछड़ापन से मुक्ति पाने में 12 वर्ष लग गये। सरकार की जनकल्याणकारी योजनांए से नगर, गांव व कस्बो की तकदीर व तस्वीर तेजी बदल रही है। छत्तीसगढ़ की मूल आत्मा गांव में बसी हुई है, सरकार के लिए गांवो का विकास एक बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन इस  काल - खण्ड में विकास कार्यो के सम्मपन्न हो जाने से गांव की नई तस्वीर उभरी है। गांव के किसानों को सिंचाई, बिजली, सड़क, पेयजल, शिक्षा व स्वास्थ जैसी मूलभूत सेवांए प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराई गई है। हमें याद है कि पहले गॉंवो में ग्राम पंचायते थी लेकिन पंचायत भवन नहीं थे, शालाएं थी लेकिन शाला भवन नही थे, सड़के तो नही के बराबर थी, पेयजल की सुविधा भी नाजुक थी लेकिन आज गांव की तस्वीर बन चुकी है। विकास कार्यो के नाम पर पंचायत भवन, शाला भवन, आंगनबाड़ी भवन, मंगल भवन, सामुदायिक भवन, उपस्वास्थय केन्द्र, निर्मलाघाट, मुक्तिधाम जैसे अधोसरंचना के कार्य गांव-गांव में दृष्टिगोचर हो रहे है। अपवाद स्वरूप ही ऐसे गांव बचें होंगे जहॉं बारहमासी सड़को की सुविधा ना हो, गांवो की सड़को से जोड़ने से गांव व शहर की दूरी कम हुई है। अनेक गंभीर चुनौतियों के बावजूद ग्रामीण विकास के मामले में छत्तीसगढ़ ने उल्लेखनीय प्रगति की है। छत्तीसगढ़ को भूखमरी से मुक्त कराने के लिए डॉ रमन सिंह की सरकार ने बी.पी.एल. परिवारों को 1 रूपये/2 रूपये किलों में प्रतिमाह 35 किलो चावल देने का एतिहासिक निर्णय लिया जो देश भर में अनुकरणीय बन गया है। किसानो को 1 प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण प्राप्त हो रहा है। स्कूली बच्चों को मुफ्त में  पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराई जा रही है। वनोपज संग्रहणकर्ता मजदूरों को चरण - पादुकांए दी जा रही है। अगर यह संभव हो पाया तो केवल इसीलिए कि माननीय अटलबिहारी वाजपेयी ने एक झटके में छत्तीसगढ़ का निर्माण किया, छत्तीसगढ़ की जनता उनका सदैव ऋणी रहेगी।



                                                                                                                            

19 दिसंबर, 2012

सतनाम पंथ के संस्थापक बाबा गुरु घासीदास


बाबा गुरु घासीदास
तनाम पंथ के संस्थापक बाबा गुरु घासीदास की आज 18 दिसंबर को जयन्ती है .पूरे छत्तीसगढ़ में उनके अनुयायी बड़े  धूमधाम से यह पर्व मनाते है. बाबा गुरु घासीदास एक अलौकिक एवं चमत्कारिक पुरुष थे . सत्य के प्रति उनकी अटूट आस्था की वजह से ही उन्होंने बचपन में ही कई चमत्कार दिखाए जिसका लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा . इस प्रभाव के चलते भारी संख्या में लोग उनके अनुयायी हो गए .इस प्रकार छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ की स्थापना हुई .इस संप्रदाय के लोग बाबा गुरु घासीदास को अवतारी पुरुष के रूप में मानते है . बाबा का जन्म 18 दिसम्बर 1756 को रायपुर जिले के कसडोल ब्लाक (अब बलौदाबाजार जिला) के ग्राम गिरौदपुरी में हुआ था . उनकी माता का नाम अमरौतिन तथा पिता का नाम महंगुदास था . पिता महंगुदास भी अपने पुत्र की चमत्कारिक एवं अलौकिक घटनाओं से अचंभित थे . कालांतर में गुरु घासीदास का विवाह सिरपुर की सफुरा माता से हुआ.


          18 वीं सदी में छुआछूत तथा भेदभाव का काफी बोलबाला था, बाबा गुरु घासीदास इसके सख्त  विरोधी थे . वे मानवता के पुजारी तथा सामाजिक समरसता के प्रतीक थे . उनकी मान्यता थी - " मनखे मनखे एक हे ,मनखे के धर्म एक हे ". उन्होंने जीवन मूल्यों पर अधिक ध्यान दिया तथा लोगों को शराब व मांस के सेवन से मुक्ति दिलाई. बाबा गुरू घासीदास ने समाज को सत्य, अहिंसा, समानता, न्याय और भाईचारे के मार्ग पर चलने की सीख दी .बाबा ने असमानता को दूर करने के लिए गिरौदपुरी से कुछ ही दूर स्थित घनघोर जंगल के मध्य छाता पहाड़ पर औरा-धौरा पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या की . उन्हें तपस्या अवधि में ही दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई. फलस्वरूप बाबाजी ने अपने दिव्य शक्ति से समाज में व्याप्त असमानताओं, रूढ़ियों तथा कुरीतियों को दूर कर समाज को एक नई दिशा दी. उन्होंने संपर्क में आने वाले हर जीव की आत्मा को शुद्ध किया. उनके उपदेश से लोग अंधकार से प्रकाश की ओर, दुष्कर्म से सद्कर्म की ओर तथा असत्य से सत्य की ओर जाने के लिए प्रेरित हुए .उन्होंने समाज के प्रचलित कर्मकांडों, आडंबरों तथा जाति प्रथा का विरोध किया. गुरू घासीदासजी ने मद्यपान,मांस-भक्षण,ध्रुम्रपान तथा पशुबलि का विरोध किया . उन्होंने अपने जीवन काल में स्त्रियों की दशा सुधारने और समाज के नैतिक मूल्यों में सुधार लाने का विशेष प्रयास किया. गुरू घासीदास जी के उपदेश से समाज में सत्य, अहिंसा, करूणा,दया,क्षमा,एकता,प्रेम,परोपकार और सम्मान की भावना  विकसित हुई . छत्तीसगढ़ के जनजीवन में आज भी बाबा गुरु घासीदास के विचारों की छाप स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है .


 जय सतनाम !

13 दिसंबर, 2012

सहकारी सदन में संगोष्ठी आयोजित

 

छत्तीसगढ़ में सहकारिता आन्दोलन को मिला व्यापक जनाधार  

- अशोक बजाज



 मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार के नौ वर्ष पूर्ण होने और उनके द्वितीय कार्यकाल के पांचवें वर्ष के शुभारंभ के अवसर पर आज यहां रायपुर जिला सहकारी संघ द्वारा 'छत्तीसगढ़ में नये क्षितिज को छूती सहकारिता' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। चौबे कॉलोनी स्थित सहकारी सदन में मुख्य वक्ता के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य भण्डारगृह निगम के अध्यक्ष श्री अशोक बजाज और प्रदेश के जाने-माने अर्थशास्त्री द्वय डॉ. अशोक पारख तथा डॉ. हनुमंत यादव ने संगोष्ठी को सम्बोधित किया। रायपुर दुग्ध संघ के अध्यक्ष श्री रसिक परमार सहित अनेक प्रबुध्द नागरिक और सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि इस अवसर पर उपस्थित थे।

  श्री अशोक बजाज ने इस अवसर पर कहा कि डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश के विकास की अपनी कार्यसूची में सहकारिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। उनके गतिशील नेतृत्व में सहकारिता आन्दोलन का लगातार विस्तार हो रहा है और इसे व्यापक जनाधार मिला है। इस रचनात्मक आन्दोलन के प्रति सामाजिक चेतना भी बढ़ी है। श्री बजाज ने कहा कि सहकारिता मनुष्य को उन्नति के शिखर पर ले जाती है। रमन सरकार ने  विगत नौ वर्षो में छत्तीसगढ़ में सहकारिता आन्दोलन को सुदृढ़ बनाकर प्रदेश के लाखों किसानों, मजदूरों और वनवासी परिवारों की आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है। छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सुचारू संचालन के फलस्वरूप 34 लाख गरीब परिवारों को हर महीने मात्र एक रूपए और दो रूपए किलो में 35 किलो चावल तथा नि:शुल्क दो किलो नमक नियमित रूप से मिल रहा है। इसके फलस्वरूप राज्य के गरीबों को भूख की पीड़ा से मुक्ति मिली है।

 श्री बजाज ने कहा कि सहकारिता के माध्यम से ही प्रदेश में एक हजार 333 प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों का एक-एक दाना धान समर्थन मूल्य नीति के तहत खरीदने और राशि के भुगतान की समुचित व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा कि सहकारिता पर आधारित छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को देश भर में एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। कृषि ऋणों पर ब्याज दर को तेरह-चौदह-पन्द्रह प्रतिशत से घटाकर मात्र एक प्रतिशत किए जाने का निर्णय किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है।  उन्होंने कहा कि रमन सरकार ने महंगाई के इस दौर में खेती की बढ़ती लागत से किसानों को राहत दिलाने के लिए सहकारी समितियों में कृषि ऋणों पर ब्याज दर को लगातार कम किया है। वर्ष 2001-02 में जब यह ब्याज दर तेरह से पन्द्रह प्रतिशत थी, उस समय केवल तीन लाख 95 हजार किसानों ने 152 करोड़ 42 लाख रूपए का ऋण लिया था, जबकि आज उनके ब्याज दर मात्र एक प्रतिशत करने पर नौ लाख 45 हजार से ज्यादा किसानों ने एक हजार 687 करोड़ रूपए का ऋण इन समितियों से प्राप्त किया है। यह किसानों के हित में रमन सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इससे यह स्पष्ट होता है कि छत्तीसगढ़ में गांव, गरीब और किसानों के लिए सहकारिता के क्षेत्र में रमन सरकार की नीति काफी उपयोगी और सार्थक साबित हो रही है। श्री बजाज ने छत्तीसगढ़ में सहकारी आन्दोलन को बढ़ावा देने और सहकारिता को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया। इस मौके पर छत्तीसगढ़ के सुप्रसिध्द अर्थशास्त्री और छत्तीसगढ़ के द्वितीय राज्य वित्त आयोग के सदस्य डॉ. अशोक पारख ने कहा कि छत्तीसगढ़ में सहकारिता आन्दोलन कई मामलों में देश के अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर स्थिति में है। डॉ. पारख ने कहा कि प्रदेश में कार्यरत महिला स्व-सहायता समूहों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। डॉ. हनुमंत यादव ने कहा कि छत्तीसगढ़ में सहकारिता के क्षेत्र में जहां लघु वनोपज समितियों के माध्यम से लाखों तेन्दूपत्ता संग्राहकों को बेहतर पारिश्रमिक के साथ बोनस भी दिया जा रहा है वहीं सहकारी समितियां धान खरीदी के साथ-साथ दूध के उत्पादन और व्यवसाय में भी अपना योगदान दे रही हैं। उन्होंने कहा कि हम सहकारिता के माध्यम से स्वदेशी वस्तुओं के कारोबार का अभियान चलाकर एफडीआई और विदेशी उत्पादकों का मुकाबला कर सकते हैं।  डॉ. यादव ने कहा कि किसानों, ग्रामीणों और वनवासियों के उत्थान में सहकारिता की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत माता के चित्र पर माल्यार्पन कर तथा दीप प्रज्जवलन के साथ संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। आभार प्रदर्शन श्री लियाकत अली ने किया।

12 दिसंबर, 2012

आपको 12.12.12 की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

आपको 12.12.12 की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
                                                        - अशोक बजाज 






                                                                   जय छत्तीसगढ़ 

05 दिसंबर, 2012

छत्तीसगढ़ के रमणीय नौ साल



 7 दिसंबर को प्रदेश की प्रथम निर्वाचित सरकार का दसवें वर्ष में प्रवेश

नये छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. रमन सिंह इस महीने की सात तारीख को अपने कार्यकाल के नौ वर्ष पूर्ण कर दसवें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। डॉ. सिंह इस अवधि में इसी महीने की 12 तारीख को अपने द्वितीय कार्यकाल के चार साल पूर्ण कर पांचवे वर्ष में प्रवेश करेंगे। गांव, गरीब और किसानों की बेहतरी तथा समाज के सभी वर्गो की तरक्की और खुशहाली के लिए विगत नौ वर्षो में डॉ. सिंह के नेतृत्व में राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं को मिली सफलता ने छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलायी है। रमन सरकार के ये नौ साल छत्तीसगढ़ के नव-निर्माण के नौ साल के रूप में देखे जा रहे हैं।
 स्वयं भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने पिछले महीने की छह तारीख को नया रायपुर में आयोजित राज्योत्सव अलंकरण समारोह में छत्तीसगढ़ को देश का सबसे तेज गतिमान राज्य बताकर अपनी बधाई और शुभकामनाएं दी। साक्षरता, शिक्षा, कृषि, सिंचाई, बिजली, सड़क, पेयजल, स्वास्थ्य आदि हर क्षेत्र में छत्तीसगढ़ ने डॉ.रमन सिंह के नेतृत्व में सफलता का परचम लहराकर वास्तव में तेज गतिमान राज्य होने का प्रमाण दिया है। राज्य निर्माण की बारहवीं वर्षगांठ पर यहां आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय निवेशक सम्मेलन (ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट) में विदेशी राजदूतों सहित देश-विदेश से आए निवेशकों ने छत्तीसगढ़ को विकास की अपार संभावनाओं वाले राज्य के रूप में जाना, पहचाना और उनके माध्यम से यह नया राज्य दुनिया के मानचित्र में नयी उम्मीदों के उदीयमान प्रदेश के रूप में छा गया।
उल्लेखनीय है कि पेशे से आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. सिंह ने छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रथम आम चुनाव में मिले ऐतिहासिक जनादेश के साथ नये राज्य की पहली निर्वाचित सरकार के मुखिया के रूप में सात दिसम्बर 2003 की सुबह राजधानी रायपुर के पुलिस परेड मैदान में हजारों नागरिकों की उपस्थिति में शपथ ग्रहण कर राज्य की विकास यात्रा की कमान सम्हाली थी। छत्तीसगढ़ विधानसभा का दूसरा आम चुनाव 14 नवम्बर 2008 और 20 नवम्बर 2008 को हुआ। इसकी मतगणना आठ दिसम्बर 2008 को हुई, जिसमें डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व को दोबारा ऐतिहासिक जनादेश मिला और उन्होंने अपने द्वितीय कार्यकाल में 12 दिसम्बर 2008 को आम जनता की उपस्थिति में उसी पुलिस परेड मैदान में एक बार फिर प्रदेश के निर्वाचित मुख्यमंत्री के रूप में जनता की सेवा के लिए शपथ ग्रहण किया। कवर्धा उनका गृह नगर जरूर है, लेकिन रायपुर शहर से भी उनका उतना ही पुराना आत्मीय रिश्ता है। इसी शहर में उन्होंने प्रदेश के प्रथम और इकलौते शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय से वर्ष 1975 में बी.ए.एम.एस. की उपाधि हासिल कर कवर्धा के एक गरीब मोहल्ले में डॉक्टर के रूप में जनसेवा की शुरूआत की थी। डॉक्टर होने के नाते मरीजों की नब्ज की जितनी गहरी समझ उनमें हैं, उतनी ही गहराई से वह जनता की भावनाओं और लोगों के दिल की धड़कनों को भी महसूस कर लेते हैं। यही कारण है कि योजनाओं के निर्माण में वह केवल दिमाग से नहीं बल्कि दिल से निर्णय लेते हैं।
मुख्यमंत्री के रूप में उनके नेतृत्व में लगातार लिए जा रहे विभिन्न प्रकार के लोक हितैषी अनोखे निर्णय एक लोकतांत्रिक सरकार की संवेदनशीलता और सामाजिक प्रतिबध्दता की वजह से देश भर में चर्चा का विषय बन गयी है। उनकी सार्वजनिक वितरण प्रणाली में लाखों गरीबों तक सुव्यवस्थित रूप से सस्ते अनाज की नियमित आपूर्ति ने योजना आयोग और केन्द्र सरकार के अनेक मंत्रियों सहित देश के कई राज्यों का ध्यान आकर्षित किया है। यहां तक कि योजना आयोग ने तो कुछ समय पहले अपनी एक बैठक में छत्तीसगढ़ सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अन्य राज्यों में मॉडल के रूप में अपनाने की सलाह दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा था कि जब छत्तीसगढ़ इस प्रणाली को इतने सुचारू रूप से संचालित कर सकता है, तो देश के अन्य राज्य भी ऐसी ही व्यवस्था क्यों नहीं अपनाते ? डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में संचालित ग्राम सुराज और नगर सुराज अभियान गांवों के साथ-साथ शहरी जनता की समस्याओं को हल करने के लिए उनके संवेदनशील चिंतन की झलक पेश करते हैं। ये दोनों ही अभियान सरकारी मशीनरी और जनप्रतिनिधियों को वर्ष में एक बार गांवों और शहरों में जनता के बीच एक समयबध्द कार्यक्रम बनाकर जाने के लिए प्रेरित करते हैं। रमन सरकार ने वर्ष 2007 से 2012 के बीच ग्यारह नये जिलों का गठन कर प्रदेश के पिछड़े इलाकों में शासन-प्रशासन को जनता के नजदीक पहुंचाने में सफलता हासिल की है। नये जिलों के गठन से वहां प्रशासनिक गतिविधियों के साथ विकास प्रक्रिया भी तेज हो गयी है।
 लाखों किसानों की कर्ज मुक्ति, उनके लिए कृषि ऋणों पर ब्याज दर को लगातार कम करते हुए मात्र एक प्रतिशत ब्याज पर ऋण सुविधा दिलाना, छत्तीसगढ़ को देश के प्रथम और इकलौते विद्युत कटौती मुक्त राज्य की श्रेण्ाी में लाना, लगभग 34 लाख गरीब परिवारों के लिए मात्र एक रूपए और दो रूपए किलो में हर महीने 35 किलो अनाज की व्यवस्था, नि:शुल्क दो किलो आयोडिन नमक वितरण, हाई स्कूल स्तर की बालिकाओं को नि:शुल्क सायकल, किसानों के लिए अलग कृषि बजट, आदिवासी क्षेत्रों के त्वरित और समग्र विकास के लिए बस्तर और सरगुजा आदिवासी विकास प्राधिकरण, अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों के लिए अनुसूचित जाति विकास प्राधिकरण और सामान्य विकासखण्डों के लिए ग्रामीण विकास प्राधिकरण का गठन, राज्य में आठ नये विश्वविद्यालयों की स्थापना, कृषि, इंजीनियरिंग और चिकित्सा शिक्षा सुविधाओं का विस्तार सहित छत्तीसगढ़ की रमन सरकार की सफलताओं की एक लम्बी सूची है, जो लगातार बढ़ती जा रही है। उनके नेतृत्व में राज्य सरकार ने आज 95 आदिवासी बहुत विकासखण्डों में 13 लाख परिवारों और 16 लाख 50 हजार स्कूली बच्चों को अंधेरे से बचाव के लिए नि:शुल्क सोलर लालटेन देने की योजना शुरू करने का निर्णय लिया है। इस अवधि में छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मण्डल को वर्ष 2004 में अस्तित्व में लाकर प्रदेश भर में 50 हजार से ज्यादा जरूरतमंद परिवारों को मकान उपलब्ध कराए गए। अटल विहार योजना के तहत प्रदेश में अगले तीन वर्ष में एक लाख परिवारों को मकान बनाकर देने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। कुम्हारों के लिए माटी कला बोर्ड का गठन हो चुका है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित कृषि विभाग की समीक्षा बैठक में मछुआरों के लिए भी मछुआ कल्याण बोर्ड के गठन का निर्णय लिया जा चुका है। गन्ना किसानों की आर्थिक बेहतरी के लिए डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में सहकाारिता के क्षेत्र में प्रदेश में दो नये शक्कर कारखाने बालोद जिले के करकाभाठ और सूरजपुर जिले के ग्राम केरता में शुरू हो चुके हैं। भारतीय वन अधिनियम 1927 के प्रावधानों के आधार पर सामान्य वन अपराधों का सामना कर रहे दो लाख परिवारों को इस मानसिक यातना से मुक्ति दिलायी गयी है। उनके मुकदमों को समाप्त कर दिया गया है। महिलाओं के उत्थान के लिए पंचायतराज संस्थाओं में उनका आरक्षण 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया है। महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से प्रदेश भर में महिला सशक्तिकरण आंदोलन का तेजी से विस्तार हो रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं का दायरा लगातार बढ़ रहा है। हृदय रोग से पीड़ित बच्चों के नि:शुल्क इलाज और नि:शुल्क आपरेशन के लिए मुख्यमंत्री बाल हृदय सुरक्षा योजना अपनी सहृदयता और संवेदनशीलता की वजह से देश भर में प्रशंसा का विषय बन गयी है। लोक सेवा गारंटी अधिनियम रमन सरकार की एक और बड़ी उपलब्धि है। बिजली उत्पादन, कृषि उत्पादन, स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, सिंचाई सुविधा, सड़क निर्माण जैसे हर क्षेत्र में रमन सरकार ने सफलता का परचम लहराया है।

                                                            आलेख - श्री स्वराज दास  


27 नवंबर, 2012

कार्तिक पूर्णिमा तथा पूज्य गुरुनानक जयंती की हार्दिक बधाई

कार्तिक पूर्णिमा तथा पूज्य गुरुनानक जयंती प्रकाश पर्व की आप सबको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ! 
 - अशोक बजाज 


21 अक्टूबर, 2012

महाष्टमी की हार्दिक बधाई

पूरे देश में दुर्गा पूजा की धूम मची है , 22 अक्टूबर को पूर्णाहुति होगी . आप सबको महाष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !  


जय माता दी !

12 अक्टूबर, 2012

शोक सूचना


पूज्यनीय माताजी स्व.श्रीमती सावित्री देवी बजाज को श्रद्धांजलि अर्पित करने दिनांक 15.10.2012 को दोपहर 12 बजे से 4 बजे तक  कृषि उपज मंडी प्रांगन अभनपुर में आयोजित है , यदि किसी कारण वश आप तक सूचना नहीं पहुँच सकी हो तो कृपया इसे ही सूचना मानें.

इंसान तो क्या देवता भी
आँचल में पले तेरे
है स्वर्ग इसी दुनिया में
कदमों के तले तेरे
ममता ही लुटाऐ जिसके नयन 
ऐसी कोई मूरत क्या होगी ?
ऐ माँ ! ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी ? क्या होगी ?
उसको नहीं देखा हमने कभी

08 अक्टूबर, 2012

मेरी दुनियाँ है माँ तेरे आँचल में . . .




पूज्यनीय माताजी स्व . श्रीमती सावित्री देवी बजाज
माँ यानी मेरी प्यारी बीजी 04.10.2012 को गौ-लोक सिधार गई.एक दिन पहले तक वह एकदम सामान्य थी, दूर दूर तक ऐसा कोई संकेत नहीं था वह इतनी जल्दी हमसे बिछड़ जायेंगीं. 3 अक्तूबर को पिताजी का श्राद्ध था उन्होंने पूरे रीती-रिवाज के साथ श्राद्ध किया, रात को भी सोने के पहले सबसे बात करके सोयी. सुबह रक्तचाप कम होने तथा शुगर बढ़ने के कारण उन्हें लगभग 8 बजे अस्पताल में भर्ती किया गया . लगभग 10 बजे डाक्टरों ने जानकारी दी कि उनके हार्ट में समस्या है, पंपिंग करके हार्ट चालू किया गया है . युद्ध स्तर पर रायपुर के रामकृष्ण केयर हास्पिटल के आई.सी.सी.यू. में उनका उपचार चल रहा था. लगभग 12 बजे डाक्टरों की टीम ने हथियार डाल दिए और ह्रदय विदारक सूचना दी. मेरे व मेरे परिवार के लिए यह सूचना किसी वज्रपात से कम नहीं थी. वह हम सबको रोता बिलखता छोड़ कर इस संसार से बिदा हो चुकी थी. लेकिन कहाँ गई कोई नहीं जानता. किसी ने कहा भी है - "दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते है कहाँ ..... ! "  उनकी अभी उम्र मुश्किल से 80 साल की थी. पूरे परिवार को उनका बड़ा सहारा था. आज वह हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी यादें हमें सदैव रुलाती रहेंगी.  
   
वृद्धाश्रम की तस्वीर 
इस घटना के ठीक एक माह पूर्व मेरे जन्मदिन पर वह मुझे वृद्धाश्रम ले गई थी जहाँ उन्होंने वृद्ध-जनों को कपड़े बांटें तथा उनका मुंह मीठा कराया था. वह दीन-हीन व जरुरत मंद लोगों की सदा सुध लेती थी तथा यथा संभव उनकी मदद करती थी. उनका जीवन कठिन तप साधना और त्याग का जीवंत उदाहरण है. पूरा जीवन गाँव में व्यतीत करने के कारण गाँव व ग्रामीण संस्कृति से विशेष लगाव था. जीवन भर उनका ममत्व और वात्सल्य हमें मिला. उनके आशीर्वाद और प्रेरणादायी वचनों ने सफल जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया है .   आज तक हम जिन ऊंचाईयों तक पहुँच पाए है उसमें उनका भरपूर योगदान है . उनके इस योगदान रूपी ऋण से उऋण होना शायद इस जनम में मुमकिन नहीं.

24 सितंबर, 2012

अक्षुण्ण है भारतीय संस्कृति की मौलिकता - पं. दीनदयाल उपाध्याय



      पं. दीनदयाल उपाध्याय की जंयती 25 सितम्बर पर विशेष 
पं. दीनदयाल उपाध्याय एक महान राष्ट्र चिन्तक एवं एकात्ममानव दर्शन के प्रणेता थे. उन्होने मानव के शरीर को आधार बना कर राष्ट्र के समग्र विकास की परिकल्पना की. उन्होने कहा कि मानव के चार प्रत्यय है पहला मानव का शरीर, दूसरा मानव का मन, तीसरा मानव की बुद्धि  और चौंथा मानव की आत्मा. ये चारों पुष्ट होंगे तभी मानव का समग्र विकास माना जायेगा. इनमे से किसी एक में थोड़ी भी गड़बड़ है तो मनुष्य का विकास अधूरा है जैसे यदि किसी के शरीर में कष्ट है और उसे 56 भोग दिया जाये तो उसकी खाने में रूचि नहीं होगी. यदि कोई व्यक्ति बहुत ही स्वादिष्ट भोजन कर रहा है उसी समय यदि कोई अप्रिय समाचार मिल जाय तो उसका मन खिन्न हो जायेगा. भोजन तो समाचार मिलने के पूर्व जैसा स्वादिष्ट था अब भी वैसा ही स्वादिष्ट है लेकिन अप्रिय समाचार से व्यक्ति का मन खिन्न हो गया इसीलिये उसके लिये भोजन क्लिष्ट हो गया. यानी भोजन करते वक्त ‘‘आत्मा’’ को जो सुख मिल रहा था वह मन के दुखी होने से समाप्त हो गया. पं. दीनदयाल जी ने कहा कि मनुष्य का शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा ये चारो ठीक रहेंगे तभी मनुष्य को चरम सुख और वैभव की प्राप्ति हो सकती है. जब किसी मनुष्य के शरीर के किसी अंग में कांटा चुभता है तो मन को कष्ट होता है, बुद्धि हाथ को निर्देषित करती है कि तब हाथ चुभे हुए स्थान पर पल भर में पहॅुंच जाता है और काटे को निकालने की चेष्टा करता है. यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.
                         सामान्यतः मनुष्य शरीर, मन, बुद्धि, और आत्मा  इन चारो की चिंता करता है. हमारा व्यक्तित्व इन चार इकाईयो में होकर ही पूर्ण होता है। व्यक्ति की इन चारो इकाईयो में जितना अधिक सामंजस्य व एकता होगी हमारा  व्यक्तित्व  उतना ही निखरेगा. इसे राष्ट्र के परिपेक्ष्य में परिभाषित करते हुये कहा कि राष्ट्र के भी चार आधारभूत तत्व है (1) देश (2) जनता (3) संस्कृति और (4) चिति. इन चारो में से किसी एक का भी अभाव हो तो काई भी देश समृद्ध व सशक्त नहीं बन सकता। इनमें चिति ही राष्ट्र की आत्मा तथा उसकी मूल चेतना है.
पं. दीनदयाल उपाध्याय की मान्यता थी कि भारत की, आत्मा को समझना है तो उसे राजनीति अथवा अर्थ-नीति के चश्में से न देखकर सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही देखना होगा. भारतीयता की अभिव्यक्ति राजनीति के द्वारा न होकर उसकी संस्कृति के द्वारा ही होगी। विष्व को भी यदि हम कुछ सिखा सकते है तो उसे अपनी सांस्कृतिक सहिष्णुता एवं कर्तव्य-प्रधान जीवन की भावना की ही शिक्षा दे सकते है, राजनीति अथवा अर्थनीति की नहीं उसमें तो शायद हमको ही उल्टे कुछ सीखना पड़े अर्थ, काम और मोक्ष के विपरीत धर्म की प्रमुख भावना ने भोग के स्थान पर त्याग व अधिकार के स्थान पर कर्तव्य तथा संकुचित असहिष्णुता के स्थान पर विशाल एकात्मता प्रकट की है. इनके साथ ही हम विश्व  में गौरव के साथ खड़े हो सकते है.
 
कच्छ करार निषेध आन्दोलन में श्री अटलबिहारी वाजपेयी  के साथ पं. दीनदयाल उपाध्याय (सबसे दाएं)
             भारतीय जीवन का प्रमुख तत्व उसकी संस्कृति अथवा धर्म होने के कारण उसके इतिहास में भी जो संघर्ष हुये है, वे अपनी संस्कृति की सुरक्षा के लिए ही हुए है तथा इसी के द्वारा हमने विश्व में ख्याति भी प्राप्त की है. हमने बड़े-बड़े साम्राज्यो के निर्माण को महत्व न देकर अपने सांस्कृतिक जीवन को पराभूत नहीं होने दिया. यदि हम अपने मध्ययुग का इतिहास देखे तो हमारा वास्तविक युद्ध अपनी संस्कृति के रक्षार्थ  ही हुआ है. उसका राजनीतिक स्वरूप यदि कभी प्रकट भी हुआ तो उस संस्कृति की रक्षा के निमित ही. राणा प्रताप तथा  राजपूतो का युद्व केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए नही था अपितु धार्मिक स्वतंत्रता के लिए ही था. छत्रपति शिवाजी ने अपनी स्वतंत्र राज्य की स्थापना गौ-ब्राम्हण प्रतिपालन के लिए ही की, सिक्ख-गुरूओ ने समस्त युद्ध-कर्म धर्म की रक्षा के लिए ही किए. इन सबका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि राजनीति का कोई महत्व नहीं था अथवा राजनीतिक गुलामी हमने सहर्ष स्वीकार कर ली, बल्कि हमने राजनीति को हमने जीवन में केवल सुख का कारण मात्र माना है, जबकि संस्कृति ही हमारा जीवन है.
                आज भी भारत में प्रमुख समस्या सांस्कृति ही है वह भी आज दो प्रकार से उपस्थित है, प्रथम तो संस्कृति को ही भारतीय जीवन का प्रथम तत्व मानना तथा दूसरा इसे मान लेने पर उस संस्कृति का रूप कौन सा हो विचार के लिए. यघपि यह समस्या दो प्रकार की मालूम होती है, किन्तु वास्तव में है एक ही. क्योकि एक बार संस्कृति को जीवन का प्रमुख एवं आवश्यक  तत्व मान लेने पर उसके स्वरूप के सम्बन्ध में झगड़ा नहीं रहता, न उसके सम्बन्ध में किसी प्रकार का मतभेद ही उत्पन्न होता है, यह मतभेद तो तब उत्पन्न होता है जब अन्य तत्वो को प्रधानता देकर संस्कृति को उसके अनुरूप उन ढाचो में ढंकने का प्रयत्न किया जाता है. पं. दीनदयाल उपाध्याय ने संस्कृति को प्रधानता देते हुये यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि देश  की संस्कृति की देश  की आत्मा है, तथा यह एकात्म होती हे. इसकी मौलिकता सदैव अक्षुण्ण रहती है. 
 

16 सितंबर, 2012

अमर हुए अमृत माटी के हिमायती

मान.श्री मोहन भागवत जी के साथ चंपेश्वर महादेव 


की आराधना करते हुए माननीय सुदर्शन जी .
                   राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक श्रद्धेय के.सी..सुदर्शन का आज सुबह जागृति मंडल रायपुर में निधन हो गया. आज प्रातः जब यह दुखद समाचार मिला तो सहसा विश्वास नहीं हुआ। वे 81 वर्ष के थे . मृत्यु पूर्व उन्होंने प्रतिदिन की तरह आज भी मार्निंग वाक किया तथा वहां से लौटकर प्राणायाम कर रहे थे कि अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ा .
                  यह विचित्र संयोग ही है कि उनका जन्म और अवसान रायपुर में ही हुआ है. उन्हें छत्तीसगढ़ से काफी लगाव रहा है, उन्होंने चंपारण के पिछले प्रवास में सरसंघचालक मान.मोहन भागवत जी एवं संघ की ओर से भाजपा के प्रभारी मान. सुरेश सोनी जी के साथ करीब 1 घंटे तक भगवान चंपेश्वर महादेव में पूजा अर्चना की तथा दुग्धाभिषेक किया.
            उनके इस प्रवास में उन्हें निकट से जानने का अवसर मिला . वे निहायत ही नेक और ज्ञानवान इन्सान थे . जैविक कृषि के वे परम हिमायती थे उन्होंने मुझे घंटों तक अमृत माटी के निर्माण और महत्व के बारे में समझाया था . जलवायु परिवर्तन से भी वे काफी चिंतित थे . उन्होंने जल संवर्धन के उपाय सुझाते हुए कम से कम पानी में अधिक से अधिक पैदावार लेने वाले मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ किसानों के नाम बताये तथा उनसे मिलाने का वादा किया था . उनकी व्यस्तता के चलते यह संभव नहीं हो पाया . मुझे अच्छी तरह याद है , जब वे दोपहर को चंपारण पहुंचें तब काफी थके हुए थे लेकिन आकर उन्होंने तुरंत आराम नहीं किया . उन्होंने आते ही अपने लिए आरक्षित कमरे का मुआयना किया . उनके बाथरूम की टोंटी ख़राब थी पानी रिस रहा था उन्होंने तुरंत प्लंबर बुलाने के लिए कहा . प्लंबर ने आकर जब तक टोंटी ठीक नहीं किया तब तक उन्होंने न कपड़े बदले और ना ही आराम किया . वे पानी के व्यर्थ बहाने से काफी चिंतित हो गए थे . ऐसे थे हमारे अपने सुदर्शन जी . निश्चित रूप से उनके निधन से देश को अपूरणीय क्षति हुई है . मैं ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति की अपील करता हूँ .  
सन 2010 में चंपारण में भगवान चंपेश्वर महादेव की आराधना करते हुए स्व. सुदर्शन जी . साथ में है मान.श्री मोहन भागवत जी, मान. श्री सुरेश सोनी जी,मान.श्री भैय्या जी आदि

14 सितंबर, 2012

हिन्दी बेचारी और मेरी लाचारी

व्यंग लेख  

लेडीज़ एंड जेंटलमेन,
     गुड मार्निंग


पूरे इण्डिया में 14 सितंबर को औपचारिक रूप से हिंदी दिवस मनाया गया. मेरा स्कूल इंगलिश मीडियम है तो क्या हुआ यहाँ भी हिंदी दिवस पर गोष्ठी का प्रोग्राम रखा गया.  हमारे प्रिंसिपाल मि. के. पी. नाथ ने हिंदी की महत्ता पर प्रकाश डाला तथा हिंदी की गरिमा बढ़ाने पर बल दिया. हिंदी के टीचर मि. टी.आर. गर्ग ने हिंदी के प्रचार प्रसार हेतु महत्वपूर्ण टिप्स दिये. प्रोग्राम के अंत में उन्हें हिंदी की उत्कृष्ट सेवा के लिए सम्मानित कर एक मोमेंटो प्रदान किया गया. स्कूल से लौटते वक्त हमें रोड में जगह जगह हिंदी दिवस के पोस्टर दिखाई दिये. घर पहुचते ही मैने थोड़ा ब्रेकफास्ट लिया और रोज की तरह बैट बाल लेकर समीप के क्रिकेट ग्राउंड की तरफ निकल गया. पिंटू को भी साथ लेकर जाना था उसका घर आन द वे है,  उसके घर "ग्रीन हॉउस" में एंट्री करते ही पिंटू के डैडी प्रभाकर अंकल मिले उन्हें नमस्ते किया और पिंटू के साथ क्रिकेट खेलने निकल गया. ग्राउंड में पहले से ही अनेक फ्रेंड्स मौजूद थे. एक-दूसरे को हाय हैलो करने के बाद हम लोग क्रिकेट खेलने लगे, कुछ देर खेलने के बाद हम लोग गप्प मारने बैठ गए. यहाँ भी हिंदी दिवस की चर्चा शुरू हो गई. सभी मित्र अपने अपने स्कूल में हुए प्रोग्राम पर कमेन्ट करने लगे. किसी ने कहा कि हमें हिंदी बोलने की प्रेक्टिस करनी चाहिए क्योकि हिंदी हमारी मातृ भाषा है अतः हमें हिंदी को इंपोर्टेंस देना चाहिए. किसी ने अंगरेजी की वकालत की तो कुछ ने दोनों भाषा को सामान रूप से अपनाने पर बल दिया, इस बीच अचानक तेज बारिस होने लगी और हम सब अपने अपने व्हीकल से घर की ओर भागे. हिंदी दिवस पर हमारी चर्चा अधूरी ही रही, मैंने सोचा घर पहुँच कर मम्मी-डैडी से हिन्दी दिवस पर चर्चा करूँगा. घर पहुंचा तो देखा कि डैडी आफिस से लौटकर सेक्सपियर के उपन्यास में खोये हुए है तथा मम्मी टी.व्ही.सीरियल देखनें में व्यस्त है. मैंने कपड़े चेंज किये और पोर्च में बैठकर बारिस के पानी के तेज प्रवाह में चिथड़े चिथड़े हो कर बहते हुए हिंदी न्यूज पेपर के टुकड़ों को टकटकी लगाये देखता रहा.
आपका - आर.सी.गंग
                             आप सबको हिंदी दिवस की ढेर सारी बधाई

08 सितंबर, 2012

भूल हुई है अपार, फिर भी मिला है प्यार

संचार के विभिन्न माध्यमों से जन्मदिन पर ढेर सारे बधाई सन्देश प्राप्त हुए है.विज्ञानं का युग है अतः संदेशों के आदान-प्रदान में ना असुविधा होती है और ना ही विलंब. संचार के अनेक माध्यम हो गए है .एक ज़माना था जब डाकिये का इंतजार करते करते आँखें थक जाती थी लेकिन अब तो पलक झपकते ही एस.एम.एस.मिल जाता है. मोबाईल की कनेक्टिविटी बढ़ जाने से एक दूसरे से बराबर संपर्क बना रहता है. जन्मदिन हो या कोई तीज-त्यौहार बधाई देने की परंपरा आम हो गई है. सामान्यतया अपने दिन को गुप्त रखता हूँ लेकिन पिछले दो वर्षों से इसकी जानकारी कई लोगों को हो जाने के कारण इस बार हजारों की तादाद में बधाई सन्देश प्राप्त हुए है. किसी ने एस.एम.एस.किया तो किसी ने मोबाईल से सन्देश से सीधे बात की. कुछ मित्रों ने रेडियो,अखबार और टेलीफोन का सहारा लिया. सोशल नेट्वर्किंग सिस्टम से हजारो बधाई सन्देश प्राप्त हुए है. फेसबुक में 3000 से अधिक मित्र है जिसमें अधिकांश सक्रीय है अतः सभी ने बधाइयाँ दी. कुछ ने अच्छे अच्छे चित्र भी बनाये.

जन्मदिन की व्यस्तताओं को भांप कर ही मैंने एक दिन पूर्व यानी 4 सितंबर को ही वृद्धाश्रम जाने का प्रोग्राम बना लिया था, सो अपनी माता जी और धर्मपत्नी के साथ माना कैम्प स्थित वृद्धाश्रम पहुंचे. वृद्धाश्रम के संचालक श्री राजेन्द्र निगम जी हमारे पूर्व परिचित है सो फोन करते ही वे भी आ गए. हम अपने साथ कुछ गरम कपड़े और खाद्य सामग्री भी ले गए थे . जैसे ही हम आश्रम पहुंचे तेज बारिस शुरू हो गई. अतः आश्रम में निवासरत सभी वृद्धों से सामूहिक मुलाकात नहीं हो सकी. सबसे अलग अलग शिविर में जाकर उनका कुशलक्षेम पूछा और कपड़े व्वा खाद्य सामग्री देकर हम वापस आ गए.
सुबह उठते ही बधाई देने वालों का ताँता लग गया. बधाई देने वालों में पार्टी के कार्यकर्ताओं के अलावा कुछ अधिकारी कर्मचारी भी थे परन्तु ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की संख्या ज्यादा थी. सबसे मिलने के पश्चात् अपने दफ्तर पहुंचा जहाँ के अधिकारी कर्मचारी पूरी तैयारी के साथ इंतजार कर रहे थे. यहं बाकायदा केक मंगाया गया था. मेरे कक्ष में गुब्बारे भी लटकाए गए थे जैसे किसी बच्चे का जन्मदिन हो. यह दृश्य देखकर मुझ पर बालपन सवार हो गया लेकिन कुछ ही देर में जब केक लाया गया तो उसमें 59 का लेबल देखकर बालपन का भूत उतर गया और चिंता की रेखाएं उभर आईं. आज हम 58 वर्ष के हो गए है यह अहसास केक काटते समय ही हो गया था.

बहरहाल आज अनेक कार्यक्रमों में शामिल हुआ . अभनपुर में भी केक काटकर वृक्षारोपण किया फिर अपने गृहग्राम खोला में शिक्षक दिवस समारोह में हिस्सा लिया जहाँ अनेक शिक्षकों के सम्मान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. तत्पश्चात फिंगेश्वर में आयोजित साध्वी प्रज्ञा भारती के प्रवचन कार्यक्रम में भाग लेने के लिए रवाना हुआ. रास्ते में नवापारा के भंडार गृह निगम के स्टाफ ने रोककर स्वागत किया तथा बधाइयाँ दी. थोड़ा आगे बढ़े तो भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने रोक लिया और खोलीपारा स्कुल में लेजाकर केक कटवाया तथा वृक्षारोपण कराया. यहाँ भी शिक्षकों का सम्मान करके फिंगेश्वर के लिए बढ़ा. फिंगेश्वर का कार्यक्रम समापन की ओर था, हमने तत्परता से मंच के सामने वाली सीट हासिल की . साध्वी प्रज्ञा भारती ने व्यासगादी से ना केवल हमारे आने की सूचना दी बल्कि उपस्थित जनसमुदाय से हाथ उठाकर जन्मदिन की बधाई देने का आग्रह किया. देखते ही देखते पंडाल में उपस्थित 10 हजार से भी अधिक लोगों ने हाथ उठाकर बधाई दी. मेरे लिए यह  भाव विभोर करने वाला क्षण था. प्रवचन के अंत में उन्होंने व्यासगादी में आमंत्रित किया तथा पुष्पाहार  पहनाकर आशीर्वाद प्रदान किया तथा एक राधाकृष्ण की तस्वीर भेंट की. कार्यक्रम के आयोजक श्री अशोक राजपूत ने बधाई देकर कार्यक्रम में आने के लिए आभार प्रकट किया. मंच के संचालक श्री अशोक गाँधी ने साध्वी को मेरे नशामुक्ति अभियान के बारे में जानकारी दी. फिंगेश्वर में एक-डेढ़ घंटा  बिताने तथा बधाइयाँ बटोरने के बाद मैं नवापारा राजिम के कार्यक्रम के लिए रवाना हुआ . रात हो चुकी थी फिर भी सैकड़ों लोग माँ कर्मा मंदिर में इंतजार कर रहे थे ,मंदिर में पूजा अर्चना के पश्चात्  मुझे चांवल से तौला गया. यहाँ बड़ा ही रोचक कार्यक्रम हुआ .मैं मन ही मन सोंच रहा था कि आज दिन भर इतने सरे प्रशंसक मिले सबने मुझे असीम स्नेह दिया. इस प्यार के बदले इन बेचारों को आखिर हम देतें भी क्या हैं ? कार्यक्रम के अंत में मुझे बोलने का आग्रह किया गया तो मुझसे रहा नहीं गया. मैंने कहा ----

गलतियाँ हुई है हजार,
भूल हुई है अपार,
फिर भी मिला है प्यार,
मै कैसे करूँ आभार !

कार्यक्रम से विदा लेकर रात लगभग 1030 बजे रायपुर पहुंचा , जहाँ रेडियो श्रोताओं के अलावा अन्य लोग काफी लंबे समय से इंतजार कर रहे थे . उन्होंने सामूहिक रूप से बधाई दी और विदा हो गए . इस प्रकार 58 वीं वर्ष गांठ यादगार लम्हों के साथ गुज़री. घर लौटकर जब फेसबुक खोला तो असंख्य बधाई सन्देश देखकर मन गदगद हो उठा. सरे सन्देश एक सिटिंग में देख माना संभव नहीं था ,दिन भर के दौरे की थकान भी थी अतः धन्यवाद और आभार लिखकर सो गया.               

26 अगस्त, 2012

तप-साधना का मौसम



श्रीमती शैलादेवी की कठिन तपस्या को नमन
रसात का मौसम तप, साधना और उपवास के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है . जैन संप्रदाय में पर्यूषण पर्व का बहुत महत्व  है. इस पर्व में समाज कल्याण के लिए तरह तरह से तप किया जाता है. सौभाग्य से 25 अगस्त को मुझे नवापारा नगर की श्रीमती शैलादेवी सांखला से मिलने का अवसर मिला. वह पिछले एक माह से उपवास कर रही है , उपवास भी साधारण उपवास नहीं बल्कि पूरे एक माह तक उसने अन्न का पूरी तरह त्याग किया . इस बीच वह केवल गुनगुना पानी ही पी रही थी वो भी केवल दिन में . ऐसी तपस्या कोई असाधारण मनुष्य ही कर सकता है . श्रीमती शैला देवी ने 21 वी सदी में भी धर्म के प्रति आस्था व समर्पण के भाव को जागृत कर अनुकरणीय काम किया है. आशा है कि उनकी तप व साधना से संपूर्ण चराचर आलोकित होगा. इस पुनीत कार्य के लिए उन्हें साधुवाद तथा सांखला परिवार को हार्दिक बधाई !


श्रीमती शैलादेवी के माता-पिता ने भी आकर उसे शुभकामनाएं दी. साथ में उसका पुत्र भी परिलक्षित हो रहा है
     

24 अगस्त, 2012

हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे . . .


  
तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
  हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे
   हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ ...
 
 
भाव विभोर कर देने वाले इस नगमे को शायद आज काफी अरसे बाद श्रोताओं ने अपने रेडियो सेट पर सुना.शम्मी कपूर और आशापारिख पर फिल्माया गया यह गीत फिल्म "पगला कहीं का" का है जिसे मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर ने गया है.दरअसल आज आकाशवाणी रायपुर की एफ.एम.सेवा के "पहुना" कार्यक्रम में मेरी आधे घंटे की भेंटवार्ता थी.वार्ता के बीच बीच में मेरी पसंद के गीत प्रसारित किये गए.वार्ता में उदघोषक श्री के.परेश जी ने रेडियो और मेरे जीवन से जुड़ी पहलुओं पर अनेक प्रश्न किये.  आडियो उपलब्ध होने पर उसे पुनः प्रस्तुत करूँगा लेकिन फ़िलहाल मै मेरी फरमाइश पर प्रसारित पाँच गीतों को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ शायद आपको भी पसंद भा जायं.
  
1. जिदगी हँसने गाने के लिए है ....  फिल्म जमीर ,         गायक  - किशोर कुमार 
2 .तुम बेसहारा हो तो किसी का . . . फिल्म - अनुरोध ,      गायक  - मन्ना डे
3 . अब के बरस तुझे . . ......   फिल्म - क्रांति ,       गायक  - महेंद्र कपूर 
4 . आईये बहार को हम बांट लें . . . फिल्म - तकदीर ,      गायिका - लता मंगेशकर 
5 . तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे . .. फिल्म - पगला कहीं का,  गायक - मोहम्मद रफ़ी 
    

 

 


                     

21 अगस्त, 2012

वो भूली दांस्ता लो फिर याद आ गई . .

रेडियो श्रोता सम्मेलन

 ऐसा क्या कह दिया कि सब खिलखिला उठे
देश में रेडियो श्रोता दिवस मनाने की परम्परा शुरू करने का श्रेय  छत्तीसगढ़ को है। इस नये राज्य के रेडियो श्रोताओं ने  भारत में 20 अगस्त 1921 को हुए प्रथम रेडियो प्रसारण की याद में हर साल आज ही के दिन श्रोता दिवस मनाने का जो सिलसिला शुरू किया है, वह विगत छह वर्षों से लगातार जारी है। श्रोताओं के विभिन्न संगठनों द्वारा परस्पर सहयोग से इसका आयोजन सफलतापूर्वक किया जा रहा है।

    छत्तीसगढ़ राज्य भंडार गृह निगम के अध्यक्ष श्री अशोक बजाज ने आज यहां भारतीय रेडियो श्रोता दिवस के अवसर पर आयोजित श्रोताओं के एक दिवसीय सम्मेलन में यह बात कही। यह सम्मेलन छत्तीसगढ़ रेडियो श्रोता संघ द्वारा आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता धरसीवां के विधायक और छत्तीसगढ़ ब्रेवरेज कार्पोरेशन के अध्यक्ष श्री देवजी भाई पटेल ने की। प्रदेश के प्रसिध्द गायक और संगीतकार श्री भैयालाल हेडाऊ और वर्ष 1965 में बनी पहली छत्तीसगढ़ी फीचर फिल्म ' कहि देबे संदेस' के निर्माता निदेशक श्री मनु नायक सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। सभी वक्ताओं ने रेडियो श्रोता दिवस के साथ-साथ आज मनाये गए ईद के त्यौहार की शुभकामनाओं का भी आदान-प्रदान किया।

 स्वागत,अभिनन्दन का दौर
     मुख्य अतिथि की आसंदी से रेडियो श्रोताओं को संबोधित करते हुए श्री अशोक बजाज ने कहा कि विगत लगभग एक शताब्दी से रेडियो मानव समाज में मनोरंजन के साथ-साथ सूचना, शिक्षा और संचार का सबसे उपयोगी और ताकतवर माध्यम बना हुआ है। आजादी के बाद खेती-किसानी, स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवा सहित राज्य और केन्द्र सरकारों की विभिन्न योजनाओं के बारे में जनता तक जानकारी पहुंचाने में आकाशवाणी जैसे संचार माध्यम ने अपनी उपयोगिता और सार्थक भूमिका साबित कर दी है।
टेलीविजन, इंटरनेट और मोबाइल फोन के इस युग में और संचार क्रांति के इस आधुनिक दौर में भी रेडियो का महत्व जरा भी कम नहीं हुआ है। श्री बजाज ने कहा कि टेलीविजन देखने के लिए अलग से समय निकालकर बैठने की जरूरत होती है, जबकि रेडियो को हम अपने नियमित काम-काज के साथ-साथ भी सुन सकते हैं। अध्यक्षीय उदबोधन में विधायक श्री देवजी भाई पटेल ने रेडियो श्रोताओं के इस सम्मेलन को काफी महत्वपूर्ण बताया। श्री देवजी भाई पटेल ने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में राज्य में चरणबध्द ढंग से शराब बंदी के लिए जनजागरण का विशेष अभियान चलाया जा रहा है। शराब की सामाजिक बुराई की जानकारी देकर जनता को उससे सावधान करने का कार्य इस अभियान के तहत हो रहा है। इसके लिए गांवों में महिलाओं की भारत माता वाहिनी का भी गठन किया जा रहा है। रेडियो के माध्यम से भी इस रचनात्मक अभियान के लिए सकारात्मक वातावरण बनाया जा सकता है। इस दिशा में भी राज्य सरकार आकाशवाणी के सहयोग से हर संभव प्रयास कर रही है।

सम्मलेन में उमड़े श्रोता व उदघोषक

    कार्यक्रम के विशेष अतिथि फिल्म निर्माता और निदेशक श्री मनु नायक ने रेडियो श्रोताओं से फरमाइशी फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों में अधिक से अधिक संख्या में देशभक्तिपूर्ण गानों की फरमाइश भेजने का आग्रह किया। श्री नायक ने कहा कि वर्तमान परिवेश में हमें राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सद्भावना को बल देने वाले गीतों की जरूरत है, जिनसे मनोरंजन के साथ-साथ समाज में अच्छा संदेश जा सके। सम्मेलन को आकाशवाणी रायपुर के कार्यक्रम अधिकारी श्री गर्जन सिंह वरकड़े और उद्धोषक श्री दीपक हटवार तथा आकाशवाणी बिलासपुर की उदघोषिका श्रीमती पुष्पा यादव सहित लोक गायिका श्रीमती मीरा वैष्णव ने भी संबोधित किया। श्री हटवार ने सम्मेलन में बताया कि अगले वर्ष दो अक्टूबर को रायपुर में आकाशवाणी के माध्यम से छत्तीसगढ़ में रेडियो प्रसारण के 50 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे। यह अवसर आकाशवाणी के रायपुर केन्द्र की स्वर्ण जयंती का होगा। उन्होंने सभी रेडियो श्रोताओं से इसका आयोजन एक साथ मिलकर करने का आव्हान किया। श्रोता दिवस के कार्यक्रम में जगदलपुर के युवा कलाकार श्री वैभव जैन ने अपने मस्तक से केसियो पर विभिन्न गीतों का संगीत बजाकर सबको चकित कर दिया। सम्मेलन में आयोजकों की ओर से फिल्म निर्माता-निदेशक श्री मनु नायक और संगीतकार तथा गायक श्री भैया लाल हेडाऊ सहित अनेक आंचलिक कलाकारों और वरिष्ठ रेडियो श्रोताओं को सम्मानित किया गया।

सम्मलेन में उमड़े श्रोता व उदघोषक
    सम्मेलन में छत्तीसगढ़ रेडियो श्रोता संघ के अध्यक्ष श्री परसराम साहू और सचिव श्री विनोद वंडलकर, ओल्ड लिस्नर्स ग्रुप ऑफ इंडिया की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष श्री मोहन लाल देवांगन तथा प्रदेश के रायपुर, दुर्ग, बलौदाबाजार-भाटापारा, बेमेतरा, कवर्धा, राजनांदगांव, सरगुजा और सूरजपुर सहित कई जिलों के श्रोता प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। इनके अलावा महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के श्रोताओं ने भी सम्मेलन में हिस्सा लिया। कार्यक्रम में राजिम के साहित्यकार श्री तुकाराम कंसारी के संपादन में प्रकाशित साहित्य बुलेटिन 'नई कलम' का भी विमोचन किया गया। सम्मेलन स्थल पर भिलाई नगर के श्री आशीष कुमार दास की ओर से हिन्दी सिनेमा के विगत सौ वर्षों की विकास यात्रा पर आधारित प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें कई पुरानी फिल्मों के बारे में सचित्र जानकारी लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी रही। सम्मेलन में राज्य शासन के जनसम्पर्क विभाग की ओर से रेडियो श्रोताओं को सामुदायिक रेडियो की नवीन अवधारणा और इसे प्रोत्साहित करने के लिए राज्य तथा केन्द्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले मार्गदर्शन और सहयोग की जानकारी दी गई। उन्हें बताया गया कि कम से कम तीन वर्षों से पंजीकृत कोई भी समाजसेवी संस्था या शैक्षणिक संस्था सामुदायिक रेडियो केन्द्रों की स्थापना कर सकती है। इस बारे में उन्हें राजधानी रायपुर स्थित जनसम्पर्क विभाग की सहयोगी संस्था 'छत्तीसगढ़ संवाद' में स्थापित मार्ग दर्शन केन्द्र से अथवा इंटरनेट पर भी जानकारी मिल सकती है।कार्यक्रम के अंत में सभी लोगों ने दो मिनट का मौन धारण कर फिल्म कलाकार स्वर्गीय श्री राजेश खन्ना और स्वर्गीय दारासिंह, आकाशवाणी रायपुर के चैपाल कार्यक्रम के वरिष्ठ उदघोषक स्वर्गीय श्री विष्णु प्रसाद साहू (बिसाहू भैया), लोक गायक स्वर्गीय श्री परसराम यदु और स्वर्गीय श्री शेख हुसैन को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की।

हिंदी सिनेमा के सौ वर्ष पूर्ण होने पर पुराने फिल्मों के चित्र एवं साहित्य की प्रदर्शनी