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29 जुलाई, 2011

हरियाली के लिए पानी और पानी के लिए हरियाली जरूरी


हरियाली के लिए पानी और पानी के लिए हरियाली जरूरी है
आज हरियाली का पर्व है, छत्तीसगढ़ में इस पर्व को हरेली कहा जाता है. यह पर्व हमें धरती को हरा भरा कर वायुमंडल को शुद्ध व स्वच्छ बनाये रखने का सन्देश देता है. हमें यदि शुद्ध आक्सीजन चाहिए तो अधिक से  अधिक पेड़ पौधे लगाने होंगे. वनों को विनाश से बचाना होगा. 

छत्तीसगढ़ में इस पर्व की विशेष महत्ता है, एक ओर किसान जहाँ अपने कृषि औजारों की पूजा करते है तो दूसरी ओर बच्चे बांस की गेड़ी में चढ़कर घूमते व मस्ती करते है. आज से ही त्योहारों का सिलसिला भी शुरू हो जाता है, इसीलिये हरेली त्यौहार को इस सीजन का प्रथम त्यौहार माना जाता है. आगे एक के बाद एक पर्व आयेंगें जैसे रक्षा बंधन, पोला, तीज, श्री गणेशोत्सव आदि आदि. उसके बाद नव-रात्रि, दशहरा और दिवाली भी तो सामने है. परन्तु किसानों के लिए तो खरीफ पर्व चल रहा है, इसके लिए पर्याप्त वर्षा जरुरी है. इस बार मानसून की बेरूखी के कारण वर्षा कम हुई है. सावन के महीने में भी गर्मी सता रही है. तालाब, कुएं व बांध अभी तक भरे नहीं है जबकि सावन में इन्हें ओवर फ्लो हो जाना था. हरियाली के लिए पानी और पानी के लिए हरियाली जरूरी है, शायद इसीलिये बुजुर्गों ने सावन की अमावस्या को हरियाली पर्व के रूप में मनाने की परंपरा डाली होगी.

आप सबको हरियाली अमावस्या की ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं .   

मेरी नेपाल यात्रा ( आठवीं किश्त )

हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की आठवीं किश्त......


विमान से स्वर्ग यानी सागरमाथा का दर्शन 
 
अंतरिक्ष से ली गई हिमालय की तस्वीर ( गूगल )
 एवरेस्ट यानी सागरमाथा हिमालय की सबसे ऊँची चोटी है . नेपाल - चीन सीमा पर स्थित इस चोटी की ऊंचाई 8848 मीटर यानी 29029 फीट है .हिमालय को प्राचीन काल में स्वर्ग भूमि कहा जाता था . माना जाता है कि  महाराजा इन्द्र भी इसी हिमालय के भू-भाग में निवास करते थे . भगवान  शिव के जीवन के अनेक वृतांत इसी स्वर्ग भूमि हिमालय के साथ जुड़े हैं.गांडीवधारी अर्जुन का इसी हिमालय से विशेष लगाव था . वास्तव में हिमालय ऋषियों-मुनियों व राजाओं की जन्म एवं कर्म भूमि रही  है . अंग्रेजों ने ना जाने कब इस स्वर्ग रूपी सागरमाथा का नाम बदल कर Mt. Averest  कर दिया .


जीवन का अत्यंत ही  अदभूत छन था  जब हम हिमालय के सर्वोच्च शिखर को अपनी आँखों से निहार रहे थे . सहसा विश्वास भी नहीं होता था कि हम प्रकृति के इस अनुपम उपहार को अपनी आँखों से  देख रहे है . सुबह के करीब 8 बजे थे , हिमालय की गोद पूरी तरह बर्फ से आच्छादित है . सूरज की चमकीली किरणें हिमालय की वादियों में आनंद बिखेर रहीं  है . हम सब दुविधा में थे कि इस दृश्य को जी भर कर देंखें या कैमरे में कैद करें . इस अदभूत नज़ारे को देखने और कैमरे में कैद करने के लिए  इस सीट से उस सीट में भागने लगे . एक अवसर ऐसा आया जब हम पायलट की सीट के पास  पहुँच गए और वही से 4-6 शाट लिया . केवल 45  मिनट का वक्त था अतः पल पल कीमती था . पायलट ने बताया कि ये एवरेस्ट है , ये गौरीशंकर है ये मकालू है आदि आदि .हमारा हवाई जहाज चोटी ठीक ऊपर विचरण कर रहा था , मन करता था कि एवरेस्ट को छू लें .सर्वाधिक श्रद्धा का केंद्र था गौरीशंकर एयर होस्टेज  ने बारी बारी  से सबको गौरीशंकर दिखाया , एक सहयात्री ने गौरीशंकर की तस्वीर ली तो उसमें चोटी के साथ ॐ ऊभर आया . क्रमशः 


सुरक्षा जाँच के उपरांत फ्लाईटतक जाने हेतु बस का इंतजार करते हुए
प्लेन के अन्दर की फोटो

प्लेन की खिड़की से एवरेस्ट का नजारा हम यूं देख रहे थे

प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर
प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर, प्लेन के धुंएँ  का प्रदुषण भी फ़ैल रहा है
प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर
प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर
प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर
पुनः प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
पुनः प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
 लगभग 45 मिनट की सैर के पश्चात् नीचे उतरते हुए ली गई काठमांडू की तस्वीर . 
 लगभग 45 मिनट की सैर के बाद प्लेन से  नीचे उतरते हुए
प्लेन से उतरते ही मिल गया अखबार का बण्डल




28 जुलाई, 2011

मेरी नेपाल यात्रा ( सातवीं किस्त )

हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की  सातवीं  किश्त...... 

पल पल बदलते प्रकृति के नज़ारे

 काठमांडू से प्लेन द्वारा एवरेस्ट घूमने की व्यवस्था है . अतः  12 जुलाई को एवरेस्ट जाने का प्रोग्राम बना . प्लेन 17 सीटर थी सो उतने ही  प्रतिनिधियों की बुकिंग हो गई . सुबह 6 बजे निकलना था सो चार बजे नींद खुल गई . होटल की खिड़की से झाँका तो देखा कि सामने पहाड़ का कुछ हिस्सा बादलों से ढका हुआ है . मैंने कैमरा निकाल कर उस दृश्य को कैमरे में कैद कर लिया . सुबह सुबह भौर में काठमांडू शहर , पहाड़ ,बादल व आसमान का दृश्य देखते ही बन रहा था . आधे घंटे बाद नजारा कुछ बदला हुआ था अतः पुनः तस्वीर ली , जैसे जैसे वक्त गुजर रहा था तथा जैसे जैसे उषाकिरण की रोशनी धरती पर पड़ रही थी वैसे वैसे नई  तस्वीर बनाती जा रही थी . जल्दी जाने की आपाधापी में भी हमने कुछ तस्वीरे ली और जैसे तैसे तैयार हुए . क्रमशः 

दृश्य  - 1
दृश्य  -2
दृश्य  -3
दृश्य  - 4
दृश्य  - 5
                                                                                         
अगली किश्त में हम आपको ले चलेंगे हिमालय के शिखर पर ...........

27 जुलाई, 2011

मेरी नेपाल यात्रा ( छठवीं किस्त )

हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की  छठवीं  किश्त......


खेत,पहाड़,नदी,केबल कार और " मेरे देश की धरती सोना उगले........"  के साथ पूरी  हुई मनकामना
 
चाय की  दूकान में दारू का भंडार


11 जुलाई  2011 को मनोकामना देवी के दर्शन का कार्यक्रम बना. आचार्य एकादशी होने के कारण कुछ लोगों का उपवास था . सारे प्रतिनिधि सुबह 8 बजे दो बसों में रवाना हुये. काठमांडू से कुछ दूर जाने के बाद बागमती नदी दिखाई दी. नदी के किनारे-किनारे मार्ग बना है. काफी घुमावदार रास्ता है, मनकामना की दूरी काठमांडू से लगभग  125 कि.मी. है लेकिन वहां पहुंचने में हमें चार-साढ़े चार  घंटे लग गये. रास्ते भर हरे-भरे पेड़ पौधों से घिरे पहाड़ियों को निहारते  रहे.  ऐसा लग रहा था मानो  पूरा नेपाल देश  पहाड़ों में बसा है. हमें कहीं भी सघन बस्ती दृष्टिगोचर नही हुई. पहाड़ी की ऊंचाइयों में दूर-दूर तक एक एक, दो-दो घर दृष्टिगोचर हुये. पहाड़ी के बीच बीच में छोटे छोटे खेत बनाये गये है, 100-200 वर्ग फीट के भी खेत दिखाई दिये. जहां जगह मिली लोगों ने थोड़ा  समतल कर खेत बना लिया  है. वहां के किसान कहीं कहीं धान की कटाई कर रहे थे  तो कहीं धान की रोपाई . यानी धान की कटाई और रोपाई का काम साथ-साथ चल रहा था. कुछ खेतों में भुट्टे के पौधे भी दिखाई दिये.  भुट्टे के पौधों की ऊंचाई 4-5 फीट की हो गई थी.पहाड़ी की ऊपरी सतह से निकलने वाले झरने के  पानी को छोटी-छोटी नालियां बनाकर खेतों में सिचाई की व्यवस्था  की गई  है.  बाघमती नदी में अच्छा खासा पानी था लगता है, पिछले 24 घंटे में इस इलाके में बारिश हुई होगी .

बस यात्रा बड़ी अविस्मरनीय  रही  . मै जिस बस में बैठा था उसमें मध्यप्रदेश , पंजाब , गोवा और महाराष्ट्र के लोग बैठे थे . महाराष्ट्र और गोवा के महिला पुरुष सदस्यों की संख्या लगभग 20  रही होगी . सबने गीत संगीत शुरू कर दिया . अंताक्षरी भी हुई ," तुतक तुतक तुतियां .........." से लेकर " मेरे देश की धरती सोना उगले .........." जैसे गीत सुनने को मिला . कुछ कलाकार भी थे जिन्होंने अनेक पुराने नगमें सुनाये .रास्ता कटता गया ,  लगभग  10 बजे एक पड़ाव आया अतः चाय पीने के लिए रुके . ताईवानी टूरिस्ट वहां पहले से मौजूद थे , यहाँ पर ताईवानी टूरिस्टों के साथ संयुक्त फोटोग्राफी भी हुई . इन्डियन भी खुश ,ताईवानी भी खुश . लगभग 12.30  बजे मनकामना मंदिर के पास पहुंचे . बस से उतरने के बाद बताया गया कि लगभग 2000मीटर की उचाई चढ़ने के बाद ही मनकामना देवी के दर्शन हो पायेगा . ऊपर जाने के लिए रोपवे की सुविधा है , अतः ट्राली यानी केबल कार की टिकिट लेकर बारी बारी से हम सब ऊपर गए . एक ही रोपवे में 50 से अधिक ट्रालियां चलते देख कर मन आनंदित हो उठा . यहाँ का रोपवे अत्यंत ही आधुनिक तकनीक से बना है . ट्राली में बैठ कर नदी , पहाड़ और बस्ती का दृश्य बड़ा सुहावना लग रहा था . कुछ मिनट में हम पहाडी के ऊपर पहुँच गए . वहां मनकामना देवी का दर्शन कर हमने एक मारवाड़ी भोजनालय में भोजन किया सो नीचे आने में हमें कुछ विलंब हो गया . लगभग दोपहर 2 बजे नीचे उतरे तो  भूख और धूप से व्याकुल बाकी सहयात्री हमारी प्रतिक्छा   कर रहे थे ,  विलंब से  पहुँचने की काफी प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई . दरअसल लंच का आर्डर कहीं और दिया गया था जो वहां से करीबन 10 कि.मी. दूर था . वहां सबने भोजन किया . फिर चल पड़े काठमांडू की ओर .   

लगभग  शाम 5 बजे थाकरे नामक छोटी सी जगह में चाय पीने के लिए रुके . यहाँ पर दो छोटे छोटे चाय के दूकान थे . दूकानों में चाय नाश्ते के आलावा शराब की बोतलें भी सजी थी . हम तो आश्चर्य में पड़ गए . वहां पर दो स्थानीय व्यक्ति मिले जिनसे काफी देर तक हिंदी में बातचीत हुई , एक ने अपना  नाम बद्रीप्रसाद अधिकारी तो दूसरे ने चिंतामणि नेवपाने बताया .  दोनों से खेतीबाड़ी , रहन-सहन , शिक्षा-दीक्षा से लेकर पंचायत प्रणाली पर खूब देर तक चर्चा हुई .    क्रमशः ..



                                                                              


25 जुलाई, 2011

मेरी नेपाल यात्रा ( पांचवी किस्त )



स्वयंभूनाथ
हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की पांचवी  किश्त......





स्वयंभूनाथ


स्वयंभूनाथ और काठ के राजमहल का दर्शन 
नेपाल कृषि प्रधान देश  ; यहां 22646 प्राथमिक सहकारी समितियां 


स्वयंभूनाथ
 ब स्वयंभूनाथ  के  दर्शन की बारी थी , अतः सभी ने होटल पहुँच कर जल्दी जल्दी भोजन किया फिर निकल पड़े स्वयंभू नाथ का दर्शन करने . वैसे तो काठमांडू शहर पहाड़ में बसा है लेकिन स्वयंभूनाथ काठमांडू से और ऊपर पहाडी पर स्थित है . मंदिर से एक फर्लांग पहले बस खड़ी हुई , आगे चढाई थी तथा पैदल ही जा सकते थे सो पैदल चलते चलते पूरा काठमांडू शहर देख रहे थे . मौसम भी हल्की बदली छाये होने के कारण सुहावना हो गया था . एक पहाडी में हम थे  सामने अन्य पहाड़िया थी . पहाड़ियों के बीच में पूरा काठमांडू शहर और वहां  की हरियाली दृष्टिगोचर हो रही थी . स्वयंभूनाथ परिसर के एक कमरे में भजन कीर्तन की आवाज सुनाई दी , सभी बारी बारी से अन्दर गए वहां अनेक बौद्ध संप्रदाय के भक्तजन कतारबद्ध बैठकर पाठ कर रहे थे , सबको प्रणाम कर  तथा मंदिर का दर्शन कर हम सब नीचे उतारे और पुनः बस में बैठ कर पुराने राजमहल में  पहुँच गए .

 राजमहल का नजारा तो और भी अदभूत था.इसे  देखकर मन काफी प्रसन्नचित् हो गया. दीवारों को छोड़कर पूरा राजमहल काठ (लकड़ी) से बना है. अब समझ आया कि इस शहर का नाम काठमांडू क्यों पड़ा . छत के छज्जे के सहयोग (सपोर्ट) के लिए जो लकड़ियॉं लगी है, उसे भी देवी-देवताओं का स्वरूप दिया गया है .  वहॉं पर बजरंग बली, गणेश जी की मूर्तियां भी स्थापित है. कृष्ण भगवान का मंदिर अलग से है. सभी ने घूम-घूम कर अपने अपने कैमरे में इस दृश्य को कैद किया .  लगभग सभी के हाथ में कैमरा था, जिसके पास कैमरा नही था उन्होने मोबाईल से फोटो खींचा. यहाँ पर फोटो  ग्रुपिंग भी हुई.

यहॉं से सबको हैण्डी क्राफ्ट जाना था, बस एक बाजार के पास घूमकर आई. बस का इंतजार करते एक बाजार में रूके जहां फल-सब्जियां बिक रही थी. सब्जियों का  प्रकार और भाव जानकर भारत की तुलना करने लगे. ककड़ियों का आकार बहुत ही बड़ा था. कुछ ही देर में अपनी बस आ गई , वहां से बस में बैठ कर हम सब हैंडी क्राफ्ट की बाजार में पहुँच गए एकाध दूकान खुली थी  जहाँ
कालीन, ऊनी कपड़े तथा महिलाओं के श्रृंगार का सामान बिक रहा था .स्वभाविक रूप से महिला प्रतिनिधियों ने  अपने श्रृंगार के सामान खरीदे . हम लोग तो केवल बाजार - भाव की जानकारी लेते रहे . एक कालीन का भाव हमने पूछा तो सेल्समेन ने नेपाली करेंसी में 1 लाख 60 हजार रूपये बताया तो सब आश्चर्यचकित हो गए . कालीन का साईंज मुश्किल से 4‘×4‘ रहा होगा.

वहॉं से वापस होटल  एवरेस्ट के कांफ्रेंस हॉल में पहुंचे  जहां नेशनल कोआपरेटिव्ह फेडरेशन नेपाल के चेयरमेन और  वाईस चेयरमैन ने नेपाल की सहकारिता पर प्रेजेन्टेशन प्रस्तुत किया. सेमीनार में जानकारी दी गई कि  नेपाल कृषि प्रधान देश है तथा यहां 22646 प्राथमिक समितियां, 204 सेकेण्डरी यानी जिला स्तर की समितियां , 1 कोआपरेटिव्ह बैंक तथा 1 नेशनल फेडरेशन है. नेपाल में सहकारिता का जन्म 1956 में हुआ तथा 1963 में बैंक अस्तित्व में आया.1967 में एग्रीकल्चर डेवलपमेंट बैंक (ए.डी.बी.) प्रारंभ हुआ. सभा सोसाइटी एक्ट 1984 में बना तथा 1992 में नया एक्ट बना जिसके अन्तर्गत सहकारिता का कामकाज संचालित हो रहा है.नेपाल में सहकारिता विभाग के अलावा राष्ट्रीय सहकारी बोर्ड (National Cooperative Development  Board ) भी है. नेशनल को-आपरेटिव्ह फेडरेशन नेपाल भारत के इफको और राष्ट्रीय सहकारी संघ दिल्ली के अलावा जापान, मलेशिया एवं श्रीलंका की अनेक संस्थाओं का भी मेम्बर है.
 हमने देखा कि नेपाल की राजधानी काठमांडू में सहकारी बैंकों का जाल बिछा हुआ है. सड़कों पर घूमते हुये जगह जगह हमें सहकारी बचत व ऋण समितियों के सैकड़ों बोर्ड दिखाई दिये.हमारे होटल के ठीक बांयी ओर एक तीन मंजिले भवन में कृषि विकास बैंक स्थित था.राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष ने बताया कि नेपाल के लगभग 3 मिलियन लोग सहकारी क्षेत्र से सीधे जुड़े है. क्रमशः 
 

पहाड़ से काठमांडू शहर की  हरियाली और आसमान पर मंडराते  बादल
भजन करते बौद्ध धर्मवावंबी  
विदिशा मध्यप्रदेश के मित्रों के साथ




राजमहल के नज़ारे........