महंगाई व नक्सलवाद मुद्दे पर उलझी लोकसभा व विधानसभा
देश की दो बड़़ी राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी,दो बड़ी पंचायते लोकसभा व छत्तीसगढ़ की विधानसभा देश के दो बड़े मुद्दे महंगाई और नक्सलवाद पर गरम हैं। एक ओर जहां देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने महंगाई को लेकर काम रोको प्रस्ताव लाया है तो दूसरी ओर छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने नक्सलवाद के खिलाफ स्थगन प्रस्ताव लाकर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई है। मजे की बात तो यह है कि एक जगह भारतीय जनता पार्टी की सरकार है तो दूसरी जगह कांग्रेस गठबंधन की सरकार है। इन दो ज्वलंत मुद्दों में एक दूसरे को घेरने के लिए दोनों पक्ष मैदान में कूद पड़े है।
दोनों स्थानों पर बहस चरम सीमा पर है। बहस को धारदार बनाने के लिए एक से एक दृष्टांत दिये जा रहे हैं। मैं आज छत्तीसगढ़ की विधानसभा में पक्ष विपक्ष के तेवर देख रहा था। आरोप प्रत्यारोप के दौर चल रहे थे। भाजपा वाले कह रहे थे कि नक्सलवाद केवल छत्तीसगढ़ की समस्या नहीं बल्कि यह राष्ट्रीय समस्या है,जब केन्द्र व राज्य दोनों जगह कांगे्रस की सरकार थी तब से इस समस्या ने विकराल रूप ले लिया है,इस समस्या के लिए केवल छत्तीसगढ़ की वर्तमान सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। दूसरी ओर कांग्रेस वाले सरकार पर अकर्मण्यता का आरोप जड़ रहे थे। उनका कहना था कि नक्सलवाद से बस्तर में कारगिल से ज्यादा लोग शहीद हुये हैं। कुछ विपक्षी सदस्यों ने सरकार पर नक्सलवादियों से मिली भगत का भी आरोप लगाया। एक जिम्मेदार विपक्षी नेता ने तो यहां तक कह दिया कि सरकार में बैठे जिम्मेदार लोगों की नक्सलियों से सांठगांठ है। भाजपा ने बस्तर की 12 विधानससभा सीटों में से 11 सीटों पर विजय पाई है, यह भी एक मुद्दा था। विपक्ष का कहना था कि भारतीय जनता पार्टी ने नक्सलियों से सांठगांठ कर 11 सीटे हासिल की है।
इस बीच लंच ब्रेक हो गया। स्पीकर द्वारा लंच के लिए कार्यवाही स्थगित करते ही लगा कि विपक्ष का स्थगन प्रस्ताव ठंडा पर गया है। क्योंकि स्थगन प्र्रस्ताव का अर्थ होता है सब काम छोड़ कर (या ठप्प कर) जो सूचना दी गई है उस पर चर्चा कराना लेकिन पक्ष के साथ विपक्ष लंच पर चला गया।
जहां तक लोकसभा का सवाल है। यह देश की सबसे बड़ी पंचायत है। यहां प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने महंगाई के खिलाफ ”काम रोको प्रस्ताव ”लाया है। महंगाई एक ज्वलंत मुद्दा है। इससे सभी वर्ग के लोग त्रस्त है। मध्यम एवं निम्न आय वर्ग के लोगों की परेशानी बढ़ गई है। ” आमदानी अठन्नी खर्चा रूपैय्या ” वाली कहावत जगह चरितार्थ हो रही है। पेट्रोल डीजल व रसोई गैस के दाम बढ़ाकर सरकार ने लोगों को आफत में डाल दिया तथा स्वयं आफत मोल ले लिया। इ्र्रधन के दाम बढ़ने का असर दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर पड़ रहा है। लोकसभा में महंगाई के खिलाफ ” काम रोको प्रस्ताव ” पर सारा विपक्ष एक जुट दिखाई दे रहा है। संयुक्त विपक्ष के हंगामें के चलते स्पीकर को बार-बार कार्यवाही स्थगित करनी पड़ रही है। इस ”काम रोको प्रस्ताव ”का सरकार की सेहत पर क्या असर पडे़गा यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन आम आदमी की मुसीबतों का अंत होगा इसमे संदेह है।
भैया चाहे ये सरकार और 5 साल चला लो पर सिलेंडर की व्यवस्था एनडीए सरकार जैसी करवा दो।
जवाब देंहटाएंसैंया तो खुब ही कमात हैं,मंहगाई डायन खाए जात है।
Mahagayee aur Naxalwaad ye dono aaj ki badhi samsya hai . is par charcha honee chahiye, lekin charcha ka ulajhana durbhagyapurn hai ..
जवाब देंहटाएंमैं सोचता हूँ हर छोटी-बडी पंचायतों में बहस का उद्देश्य हार-जीत या फ़िर एक-दूसरे को पटखनी देना न होकर ,सीधे-सीधे आम आदमी को राहत पहुंचाने का ही होना चाहिए । पर यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हमारे यहाँ ऐसा कुछ होता हुआ नहीं दिखता ।
जवाब देंहटाएंराजनीति के मायने और इसमें आने वाले लोग बदल गए हैं । देखिए और कब तक ऐसा ही चलता है ?
-आशुतोष मिश्र
... इन गंभीर समस्याओं पर गंभीर चिंतन-मनन के बाद सार्थक रणनीति बनाकर कार्य संपादन किया जाना चाहिये ... चिल्ल-पौं करने से कोई हल नहीं निकलने वाला है !!!!
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