वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड के ताजे रिपोर्ट के अनुसार यदि रहन सहन का तरीका स्वस्थ हो और अच्छा खाना खाया जाए तो दुनिया भर में हर साल 28 लाख लोगों को कैंसर का शिकार होने से रोका जा सकता है.दूसरी ओर इंग्लैंड के वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने एक स्थानीय फूल से
निकाले गए तत्वों के इस्तेमाल का एक तरीका खोज निकाला है, जिससे कैंसर की
कोशिकाओं को खत्म करने में मदद मिलती है.
पूरी दुनिया में पिछले एक दशक के भीतर ही कैंसर के मरीजों की तादाद हर साल करीब 20 फीसदी बढ़ने लगी है. हर साल 1 करोड 20 लाख नए लोग कैंसर के शिकार हो रहे हैं. दिल, फेफड़े और मधुमेह जैसी बीमारियों की तरह ही ये भी दुनिया के लिए स्वास्थ्य की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक बन गई है.
दो हफ्ते पहले संयुक्त राष्ट्र के गैर संक्रामक रोगों पर बुलाए गए सम्मेलन में इस बारे में एक रिपोर्ट जारी की गई. कैंसर रिसर्च फंड ने इस मौके पर कहा कि राजनेताओं के सामने यह एक बड़ा मौका है जब वो कैंसर और खराब जीवनशैली के कारण होने वाली दूसरी बीमारियों को रोकने के लिए कदम उठा सकते हैं. दुनिया भर के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी रखने वालों की मानें तो गैर संक्रामक रोगों से होने वाली मौतों में करीब एक तिहाई की वजह कैंसर है और उसे रोका जा सकता है. जानकारों के मुताबिक शराब पीने में कमी, अच्छा भोजन, धूम्रपान पर रोक और शारीरिक गतिविधियों में इजाफा कर के इस पर लगाम लगाई जा सकती है.
कैंसर के उपचार के लिए लगातार शोध हो रहे है , लंबे शोध के बाद लंदन के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने एक स्थानीय फूल से
निकाले गए तत्वों के इस्तेमाल का एक तरीका खोज निकाला है, जिससे कैंसर की
कोशिकाओं को खत्म करने में मदद मिलती है. क्रॉकस फूल से उपचार की बात
सदियों से कही जाती है और प्राचीन मिश्र के कई मेडिकल रिकॉर्ड्स में भी
इसका जिक्र है . अब ब्रिटेन के एक शोध दल ने इस फूल का स्त्रोत के रूप में
इस्तेमाल करके एक दवा बनाई है. ये दवा कैंसर वाले ट्यूमर से निकलने वाले एक
रसायन से ही सक्रिय होती है. एक लैब में चूहों पर हुए प्रयोग के दौरान आधे
से ज्यादा चूहों पर दवा की एक ही ख़ुराक का प्रभावशाली असर पडा. वैज्ञानिकों
का कहना है कि ये कोई चमत्कारिक दवा नहीं है और वे इसका परीक्षण दो साल के
अंदर शुरू करेंगे. ब्रैडफर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का मानना है कि
उन्होंने क्रॉकस फूल के जहरीलेपन को इस रूप में विकसित किया है, जिससे वे
कैंसर की कोशिकाओं का खात्मा कर सकें. ब्रैडफर्ड में कैंसर चिकित्साशास्त्र
संस्थान के निदेशक प्रोफेसर लॉरेंस पैटरसन का ये कहना है कि ये नई दवा
स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुँचाती.
भारत में एक विशेष प्रकार के क्रॉकस की पंखुड़ियों से केशर बनता है जो बहुत ही कीमती होता है तथा प्राचीन काल से अनेक रोगों के उपचार में इसका प्रयोग किया जाता है . कहीं केशर ही तो नहीं है कैंसर की दवा ? इसे जानने के लिए अभी हमें और इंतजार करना पड़ेगा . वैज्ञानिकों से अनुरोध है कि अब ज्यादा और ना इंतजार ना कराएँ क्योकि कैंसर के मरीजों की तादाद हर साल करीब 20 फीसदी बढ़ने लगी है.