इन दिनों फिल्म “ पिपली (लाईव) ” का यह गीत खूब चल पड़ा है ठीक वैसे ही जैसे कि पिछले एक दो वर्षो से “ सास गारी देवे ...... ” वाला गीत चल रहा है । फिल्म “ पिपली (लाईव) ” का भविष्य तो मै नही जानता शायद आक्टोपस पॅाल बाबा ही बता पाएंगे लेकिन इतना तय है कि यह गीत जरूर हीट हो जायेगा । गायक श्री रघुवीर यादव एवं उनकी मंडली को इस गीत से प्रसिध्दि तो मिल ही रही है। ऊपर से स्वर कोकिला लता मंगेश्कर ने इस गीत की तारीफ करके सोने में सुहागा कर दिया है।
छत्तीसगढ़ के लोकगीत यहां की जान है
अपने ब्लॅाग में इस गीत का जिक्र करने के पीछे पहला कारण तो यह है कि यह गीत लोकधुनो पर आधारित है । हमारे देश में लोकगीतो का काफी महत्व है । वास्तव मे लोकधुनो में काफी मिठास होती है । प्रत्येक प्रांत या क्षेत्र में अलग अलग मौसम या तीज त्योहारो में बजाये या गाये जाने वाले लोकगीतो का अपना अलग ही आनंद है । “ महंगाई डायल खाय जात है......... “ भी लोकधुन पर आधारित है । गायक रघुवीर यादव व सहायक कलाकारो ने परम्परागत वाद्य यंत्रो में इस गाने को लय व ताल दिया है। सबसे बडी विशेषता यह है कि इस गीत में कही भी अत्याधुनिक वाद्य यंत्रो का इस्तेमाल नही किया गया है । ऐसे गीत पीढ़ी दर पीढ़ी बजाये जा रहे है, लेकिन उचित अवसर के अभाव में इन गीतो का धुन क्षेत्र से बाहर नही निकल पाता। फिल्म स्टॅार अमीर खान के द्वारा जैसे ही इसे प्लेटफार्म मिला यह हिट हो गया। छत्तीसगढ़ के विभिन्न तीज त्योहारो व संस्कारो में गाये जाने वाले गीतो को बार बार सुनने का जी करता है । छत्तीसगढ़ के लोकगीत यहां की जान है। समस्या यह है कि इन गीतो की मौलिकता कैसे बरकरार रहें । पाश्चात्य व बम्बईयां संगीत की खिचड़ी का दुष्प्रभाव छत्तीसगढ़ी लोक गीतो पर नही पड़ना चाहिए ।
अपने ब्लॅाग में इस गीत का जिक्र करने के पीछे पहला कारण तो यह है कि यह गीत लोकधुनो पर आधारित है । हमारे देश में लोकगीतो का काफी महत्व है । वास्तव मे लोकधुनो में काफी मिठास होती है । प्रत्येक प्रांत या क्षेत्र में अलग अलग मौसम या तीज त्योहारो में बजाये या गाये जाने वाले लोकगीतो का अपना अलग ही आनंद है । “ महंगाई डायल खाय जात है......... “ भी लोकधुन पर आधारित है । गायक रघुवीर यादव व सहायक कलाकारो ने परम्परागत वाद्य यंत्रो में इस गाने को लय व ताल दिया है। सबसे बडी विशेषता यह है कि इस गीत में कही भी अत्याधुनिक वाद्य यंत्रो का इस्तेमाल नही किया गया है । ऐसे गीत पीढ़ी दर पीढ़ी बजाये जा रहे है, लेकिन उचित अवसर के अभाव में इन गीतो का धुन क्षेत्र से बाहर नही निकल पाता। फिल्म स्टॅार अमीर खान के द्वारा जैसे ही इसे प्लेटफार्म मिला यह हिट हो गया। छत्तीसगढ़ के विभिन्न तीज त्योहारो व संस्कारो में गाये जाने वाले गीतो को बार बार सुनने का जी करता है । छत्तीसगढ़ के लोकगीत यहां की जान है। समस्या यह है कि इन गीतो की मौलिकता कैसे बरकरार रहें । पाश्चात्य व बम्बईयां संगीत की खिचड़ी का दुष्प्रभाव छत्तीसगढ़ी लोक गीतो पर नही पड़ना चाहिए ।
आम आदमी की पीड़ा की अभिव्यक्ति
इस चर्चा को ब्लाग में शामिल करने का दूसरा प्रमुख कारण यह है कि इस गीत में “ महंगाई ” जैसे ज्वलंत मुद्दे को शामिल किया गया है । वास्तव में यह गीत आम आदमी की पीड़ा की अभिव्यक्ति है । आज हर व्यक्ति मंहगाई से ग्रस्त है। निम्न व मघ्यम वर्ग के लोगो का तो बड़ा बूरा हाल है । इस गीत में आम आदमी की दशा का चिन्तन बहुत ही खूबसूरत ढंग से किया गया है।“ और आगे का कहूं, कहे नही जात है. महंगाई डायन खाय जात है ........... ”
कार्टून में महंगाई . . .