जब मै भारतीय जनता पार्टी के अविभाजित रायपुर जिले का चौंथी बार अध्यक्ष चुना गया तो वरिष्ठ साहित्यकार एवं सांध्य दैनिक हाईवे चैनल के प्रधान संपादक रहें स्व. श्री प्रभाकर चौबे ने 22 जून सन 2000 को मेरे निर्वाचन पर संपादकीय लिखी थी. काफी खोजबीन के बाद यह कतरन आज हाथ लगी तो आपको शेयर कर रहा हूँ. हालाँकि किसी राजनैतिक दल के जिलाध्यक्ष का पद इतना बड़ा नहीं होता कि उसके निर्वाचन को संपादकीय में स्थान मिले लेकिन श्री चौबे जी ने तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों को समायोजित कर यह संपादकीय लिखी थी. मुझे इस बात का फक्र है कि एक महान संपादक ने मुझे संपादकीय में स्थान दिया. उन्होंने छठी बार अध्यक्ष बनने का उल्लेख इसीलिये किया क्योकि इसके पूर्व 2 बार भाजयुमो के जिलाध्यक्ष तथा 3 बार भाजपा के जिलाध्यक्ष के पद का निर्वहन लगातार कर चूका था. 21 जून 2000 को भाजपा के जिलाध्यक्ष के रूप में चौंथी बार निर्वाचित हुआ था. आपको इस संपादकीय के कतरन को पढ़ने में शायद असुविधा हो इसीलिये उसे शब्दशः टाईप करके प्रस्तुत कर रहा हूँ ---
रायपुर ग्रामीण भाजपा - छठी बार अध्यक्ष
"संगठन चलाना आसान काम नहीं है । कुछ लोगों का मानना है कि बुद्धिजीवियों का संगठन चलाना तराजू में रखकर मेढक तौलना है । लेकिन दिगर संगठन चलाने में भी कुशलता की जरूरत पड़ती है । राजनैतिक दलों के संगठन को चलाना तो अब और भी कठिन हो गया है । वैसे आसान कभी रहा नहीं । आजादी के पहले के कांग्रेस संगठन में और आज के कांग्रेस संगठन में 19-20 का ही फर्क होगा, बहुत हुआ तो 17-20 का फर्क हो सकता है, लेकिन तौर तरीके तो वे ही हैं । तब भी टांग खिंचाई थी, आज भी है । पुरानी कहावत है कि संगठन में प्रमुख पद पाना कांटों का ताज पहनना है । बात सही भी है लेकिन कांटों का ताज भी पहनना आना चाहिए । जिसे कांटों का ताज पहनना आ गया वह मजे में संगठन चला लेता है । कुछ लोग एक बार में ही लहू-लुहान होकर दूसरी बार ऐसे ताज की ओर देखते तक नहीं ।
स्व.प्रभाकर चौबे |
बहरहाल हर संगठन की अपनी कुछ विशेषताएं होती है लेकिन लगता है छत्तीसगढ़ में कांगे्रस और भाजपा दोनो संगठनों में रिकार्ड बनाने में होड़ है । दुर्ग में अगर श्री वासुदेव चन्द्राकर लगातार 25 सालों में संगठन के अध्यक्ष निर्वाचित हो रहे हैं तो रायपुर में भाजपा का जिला ग्रामीण के अध्यक्ष का पद उसी तरफ बढ़ रहा है । यहां श्री अशोक बजाज 6 वर्षो से जिला ग्रामीण भाजपा के अध्यक्ष निर्वाचित हो रहे हैं । यानि कि दुर्ग में कांगेस का रिकार्ड बना, रायपुर में भाजपा ने बनाया । आज के दौर में दूसरी बार अध्यक्ष बनना कठिन है । एक पद के लिए कई-कई दावेदार होते हैं । वैसे दावेदार होना बुरी बात नहीं है । लोकतंत्र में हर कोई दावेदार हो सकता है । बहरहाल अब अगर कांगे्रस के लिए कहें कि आजादी के पहले की कांगे्रस अलग थी तो यही बात भाजपा के लिए कही जा सकती है कि पहले की पार्टी की बात अलग थी । यानि कि जब भाजपा नहीं थी, जनसंघ नामक पार्टी थी, वे शायद सुखद दिन थे । कुल लोग कहते हैं कि वे दिन तो सपना हो गए । लेकिन जनसंघ के जमाने में भी संगठन चुनाव में सब ठीक ही ठीक नहीं था । उन दिनों भी जरा-जरा टांग खिंचाई चलती थी । भरोसा न हो तो श्री बलराज मधोक से पूछा जा सकता है । वे अपना दर्द बखान कर सकते हैं । कहने का मतलब यह कि राजनैतिक दलों के संगठन चुनाव कभी भी एकदम आसानी से नहीं निकले । अगर श्री अशोक बजाज निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिये जाते हैं तो यह बड़ी बात है । यह पार्टी की स्वच्छ चाल हो, ऐसा नहीं है । पार्टी में तो तिकडम चलती रहती है । यह निर्विरोध चुने गए व्यक्ति की कुछ खूबियों को दर्शाता है । संगठन में प्रमुख को बड़े धैर्य का परिचय देना होता है । एक तरह से उसके धैर्य, विवेक, कुशलता की परीक्षा होती है । श्री अशोक बजाज 1990 से अध्यक्ष हैं । बीच में 2 साल गैप रहा । क्यों गैप रहा यह भी रहस्य की बात नहीं है । इसके अंदर जाने की मंशा भी नहीं है । लेकिन जब किसी राजनैतिक दल में (विशेषकर आज के माहौल में) कोई व्यक्ति लगातार 4-6 साल तक प्रमुख पद पर चुना जाए तो आश्चर्य होता है । उत्सुकता भी होती है। विधानसभा का चुनाव हार जाने के बाद भी आम कार्यकर्ताओं को उनकी संगठन क्षमता पर भरोसा है तो यह जरूर उनकी खूबी है । बीच में एक बार उनका नाम राज्यसभा के लिए भी चला था । लेकिन पार्टी में जैसा होता है, अपनों ने ही नाम आगे बढ़ने नहीं दिया । यह हर पार्टी में होता है । और एक अच्छे संगठनकर्ता को ऐसे आघात सहने पड़ते हैं ।
श्री अशोक बजाज फिर अध्यक्ष चुने गए हैं । अगले 3 साल तक उस पद पर रहेंगें । अगले तीन साल उनके लिए काफी चुनौतियों भरे होंगें । हो सकता है छत्तीसगढ़ राज्य बने, छत्तीसगढ़ भाजपा का गठन हो । नए राज्य में सरकार बनाने के लिए कौशिशों के साल होेंगें । अगर छत्तीसगढ़ न भी बना, तो भी राज्य विधानसभा के लिए चुनाव को एक वर्ष ही शेष रहेगा । यानि कि श्री अशोक बजाज को अगले तीन साल तक परीक्षा से गुजरना है । पार्टी की नैया खेकर आगे एक मजबूत धरातल तक ले जाना आसान नहीं होगा । ध्यान नहीं पड़ता कि और कोई इस तरह 6 साल तक अध्यक्ष चुना जाता रहा हो । और फिर अब भाजपा भी तो सत्ता की दावेदार है । सत्ता सुख चख चुकी है । ऐसे में संगठन पर कब्जा कर लेने की चाह कई नेताओं की होती है । इस संकट को पार कर अपने पैर जमाए रखना बड़ा कठिन होता है । "
सांध्य दैनिक हाईवे चैनल रायपुर 22.06.2000 |