संचार के विभिन्न माध्यमों से जन्मदिन पर ढेर सारे बधाई सन्देश प्राप्त हुए
है.विज्ञानं का युग है अतः संदेशों के आदान-प्रदान में ना असुविधा होती है
और ना ही विलंब. संचार के अनेक माध्यम हो गए है .एक ज़माना था जब डाकिये का
इंतजार करते करते आँखें थक जाती थी लेकिन अब तो पलक झपकते ही एस.एम.एस.मिल
जाता है. मोबाईल की कनेक्टिविटी बढ़ जाने से एक दूसरे से बराबर संपर्क बना
रहता है. जन्मदिन हो या कोई तीज-त्यौहार बधाई देने की परंपरा आम हो गई है.
सामान्यतया अपने दिन को गुप्त रखता हूँ लेकिन पिछले दो वर्षों से इसकी
जानकारी कई लोगों को हो जाने के कारण इस बार हजारों की तादाद में बधाई
सन्देश प्राप्त हुए है. किसी ने एस.एम.एस.किया तो किसी ने मोबाईल से सन्देश
से सीधे बात की. कुछ मित्रों ने रेडियो,अखबार और टेलीफोन का सहारा लिया.
सोशल नेट्वर्किंग सिस्टम से हजारो बधाई सन्देश प्राप्त हुए है. फेसबुक में
3000 से अधिक मित्र है जिसमें अधिकांश सक्रीय है अतः सभी ने बधाइयाँ दी.
कुछ ने अच्छे अच्छे चित्र भी बनाये.
जन्मदिन की व्यस्तताओं को भांप कर ही मैंने एक दिन पूर्व यानी 4 सितंबर को ही वृद्धाश्रम जाने का प्रोग्राम बना लिया था, सो अपनी माता जी और धर्मपत्नी के साथ माना कैम्प स्थित वृद्धाश्रम पहुंचे. वृद्धाश्रम के संचालक श्री राजेन्द्र निगम जी हमारे पूर्व परिचित है सो फोन करते ही वे भी आ गए. हम अपने साथ कुछ गरम कपड़े और खाद्य सामग्री भी ले गए थे . जैसे ही हम आश्रम पहुंचे तेज बारिस शुरू हो गई. अतः आश्रम में निवासरत सभी वृद्धों से सामूहिक मुलाकात नहीं हो सकी. सबसे अलग अलग शिविर में जाकर उनका कुशलक्षेम पूछा और कपड़े व्वा खाद्य सामग्री देकर हम वापस आ गए.
सुबह उठते ही बधाई देने वालों का ताँता लग गया. बधाई देने वालों में पार्टी
के कार्यकर्ताओं के अलावा कुछ अधिकारी कर्मचारी भी थे परन्तु ग्रामीण
क्षेत्र के लोगों की संख्या ज्यादा थी. सबसे मिलने के पश्चात् अपने दफ्तर
पहुंचा जहाँ के अधिकारी कर्मचारी पूरी तैयारी के साथ इंतजार कर रहे थे. यहं
बाकायदा केक मंगाया गया था. मेरे कक्ष में गुब्बारे भी लटकाए गए थे जैसे
किसी बच्चे का जन्मदिन हो. यह दृश्य देखकर मुझ पर बालपन सवार हो गया लेकिन
कुछ ही देर में जब केक लाया गया तो उसमें 59 का लेबल देखकर बालपन का भूत
उतर गया और चिंता की रेखाएं उभर आईं. आज हम 58 वर्ष के हो गए है यह अहसास
केक काटते समय ही हो गया था.
गलतियाँ हुई है हजार,
भूल हुई है अपार,
फिर भी मिला है प्यार,
मै कैसे करूँ आभार !
कार्यक्रम से विदा लेकर रात लगभग 1030 बजे रायपुर पहुंचा , जहाँ रेडियो श्रोताओं के अलावा अन्य लोग काफी लंबे समय से इंतजार कर रहे थे . उन्होंने सामूहिक रूप से बधाई दी और विदा हो गए . इस प्रकार 58 वीं वर्ष गांठ यादगार लम्हों के साथ गुज़री. घर लौटकर जब फेसबुक खोला तो असंख्य बधाई सन्देश देखकर मन गदगद हो उठा. सरे सन्देश एक सिटिंग में देख माना संभव नहीं था ,दिन भर के दौरे की थकान भी थी अतः धन्यवाद और आभार लिखकर सो गया.