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10 नवंबर 2025

छत्तीसगढ़ राज्य का गठन सहकारिता के लिए बना वरदान

 राज्य स्थापना के रजत जयंती पर विशेष आलेख

    
त्मनिर्भर भारत के लिए सहकारिता सबसे महत्वपूर्ण विधा है। इसके माध्यम से समाज के कमजोर वर्ग के लोगों का आर्थिक उत्थान होता है। सहकारिता से जुड़ कर लोग सामूहिक प्रयास एवं परस्पर सह‌योग से अपनी आर्थिक गतिविधियों का संचालन करते हैं तथा उचित लाभार्जन करते हैं। ग्रामीण भारत के लिए सह‌कारिता वरदान से कम नहीं है। सह‌कारिता के माध्यम से ना केवल वित्तीय प्रबन्धन बल्कि उत्पादन, उत्खनन, प्रसंस्करण, परिवहन एवं विपणन के कार्य भली भांति संपादित हो रहे हैं। सहकारी समितियाँ अपने सदस्यों को किफायती एवं प्रमाणित वस्तुयें उपलब्ध कराती है। सहकारी संगठनों एवं संस्थाओं  के कार्यों में पूरी तरह पारदर्शिता होती है। सहकारी संस्थायें रोजगार सृजन भी करती है। छत्तीसगढ़ जैसे कृषि प्रधान राज्य में किसानों के उत्थान के लिए सहकारी संस्थाओं की उप‌योगिता काफी महत्वपूर्ण है।

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पूर्व यानी सन् 2000 से पूर्व अविभाजित मध्यप्रदेश का यह भू-भाग आर्थिक रूप से पिछड़ा माना जाता था। लगातार अकाल व दुर्भिक्ष के कारण लाखों परिवारों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी । फलस्वरूप हर साल पलायन की स्थिति निर्मित होती थी । छत्तीसगढ़ में सहकारी क्षेत्र भी उस दौर में उपेक्षित था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी की दृढ़ इच्छा शक्ति का परिणाम है कि वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया। उसके बाद ही कृषि एवं सहकारी क्षेत्र के नए दौर की शुरुवात हुई l जबकि राज्य गठन के समय छत्तीसगढ़ में सहकारी आंदोलन की स्थिति बहुत ही कमजोर थी । सहकारी संस्थायें एवं सहकारी समितियां बीमारू हालत में थी। अनुसूचित क्षेत्र की अधिकांश सहकारी समितियाँ एन.पी.ए. बढ़ने के कारण कालातीत (डिफाल्टर) हो चुकी थी । उस वक्त सहकारी आदोलन के प्रति लोगों की रूचि कम हो चुकी थी. 
छत्तीसगढ़ महतारी
छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के समय कृषि वित्त के क्षेत्र में एक शीर्ष बैंक के अलावा 7 केन्द्रीय बैंक थे जो कि 1333 सहकारी समितियों (पैक्स एवं लैम्प) के माध्यम से वित्त पोषण करते थे । समूचे छतीसगढ़ में सहकारी बैंकों की मात्र 213 शाखायें थी जो बढ़कर अब 345 हो गई है । यह सन् 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद कृषि सहकारिता के उन्नयन के लिए गंभीरता से हुये प्रयास का परिणाम है । इसी प्रकार लगातार  सुविधाओं व सेवाओं का विस्तार हुआ जिससे लघु व सीमांत कृषक भी सहकारी संस्थाओं की तरफ आकर्षित हुये । यहाँ पर यह उल्लेख करना लाजिमी होगा की राज्य गठन के प्रथम तीन वर्ष में केन्द्रीय सहकारी बैंक रायगढ़ के डिफाल्टर हो जाने से रिजर्व बैंक ने उसका लाइसेंस निरस्त कर दिया । फलस्वरूप राज्य में केन्द्रीय सहकारी बैंकों की संख्या 7 से घट कर 6 हो गई । यह सहकारी आंदोलन से  जुड़े लोगों के लिए बहुत बड़ा सदमा था । अविभाजित मध्यप्रदेश में सहकारी आन्दोलन को एक बड़ा झटका पहले भी लग चुका था जब दिग्विजय सिंह सरकार ने पी.डी.एस. का काम सहकारी समितियों से छीन कर निजी हाथों में सौंप दिया था, जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ गरीबों को सही रूप से नहीं मिल रहा था l डॉ रमन सिंह सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत खाद्यान्न एवं अन्य वस्तुओं के वितरण का काम सहकारी समितियो को पुनः सौंपा । जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली दुरुस्त हुई साथ ही साथ आम लोगों की सहकारी समितियों के वितरण केन्द्र में आवाजाही शुरु हुई। डॉ. रमन सरकार ने सहकारी संस्थाओं के उन्नयन के लिए केन्द्र सरकार द्वारा बनाई गई प्रो. वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू किया। सितम्बर 2007 में राज्य सरकार, नाबार्ड एवं क्रियान्वयन एजेन्सियों के मध्य एम.ओ.यू. हुआ। इसके तहत सह‌कारी समितियों को कुल 225 करोड रुपये की सहायता राशि प्रदान की गई जिससे मृतप्राय सहकारी समितियों को जीवन दान मिल गया।

किसानों के बारे में कहा जाता है कि किसान ऋण में पैदा होता है, ऋण लेकर जीता है तथा ऋण छोड़कर मर जाता है। इसकी मूल वजह यह थी कि कृषि ऋण पर भारी भरकम ब्याज वसूला जाता था। साहूकारी प्रथा के समय तीन प्रतिशत मासिक यानी 36 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर भी मुश्किल से ऋण उपलब्ध हो पाता था। खेती कोई इतना लाभकारी धंधा तो था नहीं कि इतना भारी-भरकम ब्याज लोग अदा कर सके । अत: किसान कर्ज के बोझ तले साहूकारों की गुलामी करने पर मजबूर हो जाते थे। कालांतर में सहकारी आंदोलन का विस्तार हुआ। किसानों की वित्तीय आवश्यकताओं की आपूर्ति एवं किफायती दर पर खाद-बीज उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों का गठन हुआ। जिसे सामान्य क्षेत्र में पैक्स तथा अनुसूचित क्षेत्र में लैम्स कहा जाता है। सहकारी समितियां अपने सदस्य कृषकों को ऋण सुविधा प्रदान कराने लगी परन्तु इस पर ब्याज दर 16 प्रतिशत से कम नहीं था। समितियां भी समय सीमा पर ऋण अदायगी नहीं करने वाले सदस्यों से चक्रवृद्धि ब्याज वसूल कर रही थी। समय पर किसानों द्वारा ऋण अदा ना करने के अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन उसमें से एक प्रमुख कारण मौसम की अनिश्चिता भी है । चाहे अतिवृष्टि हो, चाहे अनावृर्ष्टि अथवा समय पर वृष्टि ना हो तो कृषि-उत्पाद पर प्रतिकूल असर पड़ता ही है, फसल खराब होने के बाद किसान ऋण अदा करने में अक्षम हो जाते है। ऐसे किसान समितियों के डिफाल्फर की श्रेणी में आ जाते हैं । इनकी कृषि भूमि नीलाम हो जाती है। डॉ. रमन सरकार ने किसानों की इस दशा पर चिन्ता करते हुये कृषि ऋण पर ब्याज दर शून्य प्रतिशत कर दिया, जो किसानों के लिए वरदान सिद्ध हुआl  यानी किसानों को अब केवल मूलधन ही अदा करना होता है, ब्याज की राशि समितियों को ब्याज अनुदान के रुप में सरकार अदा करती है। साल दर साल अकाल से जुझ रहे किसानों के लिए यह बहुत ही राहत भरा फैसला था। इसका परिणाम यह हुआ कि छत्तीसगढ़ निर्माण के प्रथम वर्ष में सहकारी संस्थाओं के माध्यम से 152 करोड़ रूपये का कृषि ऋण वितरित किया था जो वर्ष 2024-25 में बढ़कर लगभग 6800  करोड़ रूपये तक पहुँच गया है l ऋण लेने वाले किसानों की संख्या भी 4 लाख से बढ़कर साढ़े पंद्रह लाख हो गई है l  इस बीच राष्ट्रीय फमल बीमा योजना लागू हुई, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में किसानों के लिए आर्थिक रक्षा कवच बन गई है। डॉ. रमन सरकार ने छत्तीसगढ़ में कृषि के मानसून पर निर्भरता को कम करने के लिए एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया उन्होंने सिंचाई की सुविधा बढ़ाई । जल श्रोतों की उपलब्धता के आधार पर नाला बंधान, चेक डैम एवं एनीकट का निर्माण किया जिससे छत्तीसगढ़ में सिंचित रकबा में अप्रत्याशित बढ़ौतरी हुई। इसके अलावा शाकम्भरी योजना, किसान समृ‌द्धि योजना एवं सौर सुजला योजना लागू किया । इससे किसान सिंचाई जल के मामले में आत्मनिर्भर होने लगे। फलस्वरूप कृषि उत्पाद में अपेक्षाकृत बढ़ौतरी हुई, साथ ही साथ किसानों की आय भी बढ़ने लगी।

छत्तीसगढ़ में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी सहकारी समितियों के माध्यम से होती है। छत्तीसगढ राज्य निर्माण के प्रथम वर्ष सन् 2000-2001 में न्यूनतम् समर्थन मूल्य पर मात्र 4.63 लाख मेट्रिक टन धान की खरीदी की गई थी । जो 2024-25 में बढ़कर लगभग 150 लाख मेट्रिक टन हो गई है। वर्तमान में 2058 सहकारी समितियां द्वारा 2739 उपार्जन केन्द्रों के माध्यम से धान खरीदी की व्यवस्था की गई है। सभी उपार्जन केंद्रों में धान की खरीदी एवं भुगतान की व्यवस्था ऑनलाइन है । सभी समितियों में माइक्रो ए.टी.एम. की भी व्यवस्था की गई है तथा किसानों को रुपे के.सी.सी. कार्ड भी उपलब्ध कराया गया है । इसीलिए छत्तीसगढ़ की धान खरीदी व्यवस्था को पूरे देश में एक आदर्श व्यवस्था के रूप में माना जाता है.

केन्द्र की मोदी सरकार भी सहकारी आन्दोलन के लिए प्रति काफी गंभीर है। इसीलिए केन्द्र में सहकारिता मंत्रालय की स्थाप‌ना कर कद्दावर मंत्री श्री अमित शाह जी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। श्री शाह दृढ़ निश्चयी है तथा इरादे के पक्के हैं, सह‌कारिता के क्षेत्र में नई सोच के साथ नित्य नये कदम उठा रहें है। पैक्स के लिए आदर्श बायलॉज एवं सहकारी समितियों के विस्तार की उनकी योजना का लाभ देश के साथ साथ छत्तीसगढ़ को भी मिल रहा है । प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की कल्पना के अनुरूप किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय जी सहकारी आन्दोलन को लगातार गति प्रदान कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद 25 वर्षों का सफर सहकारिता के क्षेत्र में काफी उत्साह जनक रहा है । फलस्वरूप छत्तीसगढ़ की सह‌कारिता आज ऐसे मुकाम तक पहुंच गई है जिसे देखकर विकसित राज्य भी आश्चर्य करते है। परन्तु सहकारिता को परस्पर सहयोग एवं समन्वय के साथ आगे और भी लम्बा सफर तय करना है.

छत्तीसगढ़ निर्माण के रजत जयंती वर्ष में यह उम्मीद जागी है  कि मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय जी कृषि सह‌कारिता के विकास तथा सहकारी आन्दोलन के विस्तार के लिए अपने इरादें और संकल्प के अनुरूप नई आधारशीला रखेंगे.

रायपुर 01/11/2025                                                                                      अशोक बजाज

14 जुलाई 2025

मोदी-शाह की जोड़ी ने साकार किया डा. श्यामप्रसाद मुखर्जी का अखंड सपना

 डा. श्यामप्रसाद मुखर्जी की जयंती पर विशेष आलेख       

ज़ादी के साथ कश्मीर समस्या हमें विरासत में मिली थी जो भारत के लिए नासूर बन गई थी. आज़ादी के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में  बनी सरकार ने तुष्टीकरण की नीति के चलते जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 370 लगा कर उसे विशेष दर्जा प्रदान कर दिया था. धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद है, जिसके चलते जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार मिल गया था. भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग 21 का अनुच्छेद 370 तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था. धारा 370 के प्रावधानों के मुताबिक राज्य में संसद को रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का तो अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी होती है. इसी विशेष दर्जे के चलते जम्मू-कश्मीर राज्य में संविधान की धारा 356 लागू नहीं हो पाती थी. राष्ट्रपति के पास राज्य सरकार को बर्खास्त करने का अधिकार ही नहीं था. यहाँ तक कि 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं हो पाया. भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे, जबकि भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार है. भारतीय संविधान की धारा 360 यानी देश में वित्तीय आपातकाल लगाने वाला प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था. जम्मू-कश्मीर में धारा 370 लगाते समय ये दलील दी गई थी कि यह एक अस्थाई व्यवस्था है लेकिन वास्तव में वह स्थाई रूप ले चुकी थी. पं नेहरू एवं कालांतर में बनी सरकारों की ढुलमूल एवं तुष्टीकरण की नीतियों के चलते धारा 370 का प्रावधान भी स्थाई हो गया है और कश्मीर की समस्या भी स्थाई हो गई है. तथाकथित बुद्धिजीवियों ने कश्मीर की आज़ादी या जनमतसंग्रह जैसे मुद्दे उठाकर इस समस्या को सुलझाने के बजाय उलझाने का ही काम किया है.  देश की एकता और अखंडता की बात करने वाले कथित बुद्धिजीवी कभी संविधान के अनुच्छेद 370 को कायम रखने की बात करते थे तो कभी जनमत संग्रह की वकालत करते रहे. 

डा. श्यामप्रसाद मुखर्जी
जब नेहरू सरकार ने जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 370 लगाई तो डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने इसका पुरजोर विरोध करते हुये मंत्रीमंडल से स्तीफ़ा दे दिया था. डा. मुखर्जी भारत की अखंडता के प्रबल हिमायती थे तथा अखंड भारत के स्वप्न दृष्टा थे. उन्होने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 लगाए जाने की कार्यवाही को भारत की अखंडता के विरुद्ध मानते हुये अपनी असहमति प्रकट करते हुये कहा था कि "एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान − नहीं चलेंगे', लेकिन तुष्टीकरण की नीति के कारण नेहरू जी ने उनकी एक न सुनी. अंततः डा. मुखर्जी ने विरोध स्वरुप अपने पद से स्तीफ़ा दे दिया. संसद में भी डॉ. मुखर्जी ने धारा 370 को समाप्त करने की जोरदार वकालत की. उन्होंने अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा. अपने संकल्प को पूरा करने के लिये उन्होने 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने की चेष्टा की, सीमा में ही उन्हें गिरफ्तार कर नजरबन्द कर लिया गया. 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी. डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ऐसे राष्ट्र भक्त थे जिंहोने देश की एकता और अखंडता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया. उन्हें आज़ाद भारत का प्रथम शहीद कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी. 

देश में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो देशवासियों के मन में नई आशा की किरण जागी. केंद्र में आज एक दृढ़ इच्छा शक्ति वाली सरकार है. श्री मोदी ने जब गृह मंत्री के रूप में अमित शाह को चुना तो लोगों को यह विश्वास हो गया था कि जम्मू-कश्मीर की समस्या मोदी सरकार की प्राथमिकता में है. लोगों का विश्वास तब और दृढ़ हो गया जब श्री शाह ने गृह मंत्री के रूप में अपना दौरा कश्मीर से शुरू किया. इस दौरे में जो परिवर्तन देखने को मिला वो सबके सामने है. गृह मंत्री के दौरे के दौरान कश्मीर में पूरी तरह शांति थी, ना श्रीनगर के बाज़ार बंद हुये और ना ही गोला बारूद चला जैसा कि पहले देखने सुनने को मिलता था. पत्थरबाजी करने वाले भी अपने अपने घरों में दुबक गए थे. श्री शाह ने प्रदेश में कानून व्यवस्था की समीक्षा की तथा अमरनाथ यात्रा निर्विध्न सम्पन्न करने की योजना बनाई. 

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के सिद्धांत पर चलते हुए इस समस्या को हल करने का प्रयास किया था लेकिन बहुमत के अभाव में उनकी इच्छा अधूरी रह गई थी. अब मोदी और शाह की जोड़ी ने डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के सपने को साकार कर दिया है. कुल मिलाकर देश बदल रहा है तो कश्मीर को बदलना ही था. भारत में आज एक दृढ़ इच्छा शक्ति वाली सरकार है जो देश की एकता और अखंडता तथा देश की सीमा की सुरक्षा के लिए संकल्पित है.

अशोक बजाज रायपुर 

30 मई 2025

अहिल्याबाई होल्कर: इतिहास की विलक्षण दीपशिखा

 

01 अक्टूबर 2024

सेवा पखवाड़ा में सार्थक हो रहा प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान

 सेवा पखवाड़ा पर विशेष आलेख 

भारत में 1 लाख 71 हजार से अधिक निक्षय मित्र 20 लाख से अधिक टीबी रोगियों के मददगार बने  
                                                                                                                      - अशोक बजाज 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक चल रहे सेवा पखवाड़ा के तहत स्वच्छता, सफाई, रक्तदान एवं निशुल्क स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से देश भर में सेवा कार्य में लोग तल्लीन है. सेवा पखवाड़ा में नगर, गांव, गली, मोहल्लों, मजरों, चौपालों समेत सार्वजनिक व धार्मिक स्थानों पर सेवा कार्य के साथ साथ "प्रधानमंत्री टी. बी. मुक्त भारत अभियान" के अंतर्गत निक्षय मित्र योजना को भी अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है. इन दिनों काफी संख्या में लोग निक्षय मित्र बनकर टी.बी. मरीजों की भौतिक रूप से मदद कर रहें हैं. हम यह जानते हैं कि दुनिया में सबसे ज़्यादा टीबी यानी तपेदिक के मरीज़ भारत में हैं. दुनिया भर में प्रति वर्ष एक करोड़ से ज्यादा लोग टीबी की चपेट में आते है इनमें से एक चौथाई से ज्यादा भारतीय है. अमूमन हर साल भारत में 26 लाख लोग इस बीमारी से पीड़ित होते हैं तथा लगभग 4 लाख लोग इस बीमारी से मरते हैं. टीबी के मरीजों के समक्ष उपचार के दौरान होने वाले खर्च के अलावा पौष्टिक आहार की भी आवश्यकता होती है. सबसे ज्यादा समस्या आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तिओं को होती है क्योंकि काम करने में सक्षम ना होने के कारण उन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती. ऐसे में उनके समक्ष उपचार और जीवन यापन एक चुनौती बन जाती है. 

टीबी को लेकर विश्व के तमाम देश चिंतित है, इसीलिये सन 2030 तक विश्व को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है. इससे एक कदम आगे बढ़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक लक्ष्य से 5 साल पहले यानी 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इस कठिन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सरकार के साथ साथ समाज की भागीदारी आवश्यक है. प्रधानमंत्री ने जन जन को इस अभियान से जोड़ने के लिए सन 2022 में "निक्षय मित्र योजना" की शुरुवात की है. ‘निक्षय मित्र योजना' के तहत कोई भी व्यक्ति, समूह या संस्थायें मरीजों को पोषण, उपचार व आजीविका में मददगार बनकर प्रधानमंत्री टी.बी. मुक्त भारत अभियान में अपना योगदान दे सकते हैं. यह पूर्णतः स्वेच्छिक योजना है, जिसके तहत व्यक्ति या संस्था द्वारा एक मरीज के लिए प्रतिमाह 500 रुपये का योगदान देना होता है. इस राशि से विभाग द्वारा मरीजों के उपचार के दौरान अस्पताल अथवा घर पहुंचा कर पोषण आहार की टोकरियाँ प्रदान की जाती है. कोई भी व्यक्ति अथवा संस्था कम से कम 6 माह तथा अधिकतम 3 साल के लिए एक अथवा एक से अधिक मरीजों को सहयोग प्रदान कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें स्वास्थ विभाग से पंजीयन कराना होता है, ऑनलाइन पंजीयन की भी व्यवस्था है. 

योजना प्रारंभ होने के बाद विगत दो वर्षों के भीतर भारत में अब तक 1 लाख 71 हजार से अधिक निक्षय मित्रों का पंजीयन हो चुका है. इनके योगदान से 20 लाख से अधिक टीबी रोगियों को 20 लाख से अधिक पोषण आहार की टोकरियाँ प्रदान की जा रही है. जहाँ तक छत्तीसगढ़ का सवाल है यहाँ लगभग 9000 लोगों ने निक्षय मित्र के रूप में पंजीयन करा लिया है इनमें मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय एवं छग के स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल भी शामिल हैं. छत्तीसगढ़ में एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में लगभग 23000 टीबी रोगी हैं उनमें से 13646 रोगियों को पोषण आहार का पैकेट प्रति माह प्रदान किया जा रहा है. इसके अलावा राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन योजना के तहत सभी रोगियों को टीबी रोधी दवाओं के अलावा नि:शुल्क उपचार की सुविधा भी प्रदान की जा रही है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश तथा स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री जयप्रकाश नड्डा के मार्गदर्शन में यह योजना अब व्यापक जन आंदोलन का रूप ले चुकी है. 'निक्षय मित्र योजना' का प्रतिफल यह हुआ कि जन स्वास्थ्य एवं जन सरोकार से जुड़े इस अभियान में लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहें हैं. आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति, कारोबारी, स्वयंसेवी संस्थाएं एवं अर्द्ध सरकारी संस्थाएं 'निक्षय मित्र' बनने के लिए आगे आ रहें है. टी.बी. उन्मूलन की दिशा में जन भागीदारी बढ़ने से इस योजना को अच्छा प्रतिसाद मिल रहा हैं. इस योजना से केवल रोगियों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति ही नहीं होती बल्कि निक्षय मित्र और इलाज करा रहे व्यक्ति के बीच एक आत्मीय संबंध भी स्थापित होता है. समाज में परस्पर सहयोग और सहानुभूति की भावना को विकसित कर टीबी के कलंक को जड़ से ख़त्म करने में यह योजना महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. कुल मिलाकर सेवा पखवाड़ा में "प्रधानमंत्री टी. बी. मुक्त भारत अभियान" सार्थक सिद्ध हो रहा है.



टीबी हारेगा - देश जीतेगा

23 सितंबर 2024

प्रधानमंत्री आवास : अंत्योदय की उपज

 अंत्योदय के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती (25 सितंबर) पर विशेष आलेख  


 हान विचारक एवं राजनीतिक चिंतक पं. दीनदयाल उपाध्याय ने समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए 20 वी सदी में अंत्योदय के सिद्धांत का  प्रतिपादन किया था. उन्होंने जब महसूस किया कि देश में अमीरी व गरीबी के बीच की खाई दिनों दिन गहरी होती जा रही है. एक ओर जहां समाज में ऐसे लोग हैं जिसके पास बेशुमार धन संपदा है वहीं दूसरी ओर एक बड़ा तबका ऐसा भी है जिसकी कमाई सीमित है, उनके लिए अपनी दैनंदिनी की आवश्यकता की आपूर्ति करना कठिन और दुष्कर है. यह तबका आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है । इन्हें अपनी आजीविका के लिए दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है. इनका अपना कोई आशियाना भी नहीं है. अंग्रेजी हुकूमत ने इस वर्ग का काफी आर्थिक शोषण किया. उस दौर में इन्हें ना ही अपने श्रम का उचित मूल्य मिलता था और ना ही सम्मानजनक जीने का अवसर. अतः ये जमीदारों व साहूकारों के चंगुल में फंस कर गरीबी, बेकारी व भुखमरी के शिकार हो गये. उन्हें अपने जीवन यापन के लिए बंधुआ मजदूरी भी करनी पड़ी. अमीरी व गरीबी की खाई के साये में सन् 1947 में आजाद भारत का जन्म हुआ लेकिन आज़ादी के बाद भी यह समस्या नासूर बनी रही. इस व्यवस्था से व्यथित पं. दीनदयाल ने कहा कि आर्थिक असमानता की खाई को पाटने के लिए आवश्यक है कि हमें आर्थिक रूप से कमजोर लोंगों के उत्थान की चिन्ता करनी चाहिए क्योंकि "अर्थ का अभाव और अर्थ का प्रभाव " दोनों समाज के लिए घातक है. पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कहा कि "हमारे प्रयास और हमारी विकास की योजनाएं ऐसी हों कि समाज के अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति का विकास पहले हो. समाज के उपेक्षित व शोषित व्यक्ति को समाज की मुख्य धारा से जोड़कर आर्थिक समानता स्थापित करने का काम अन्त्योदय के सिद्धांत से ही हो सकता है. 

पं. दीनदयाल जी ने इस आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए ‘‘अंत्योदय’’ के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए कहा कि ‘‘हमारी भावना और सिद्धांत है कि वह मैले कुचैले, अनपढ़ लोग हमारे नारायण हैं, हमें इनकी पूजा करनी है, यह हमारा सामाजिक व मानव धर्म है. जिस दिन हम इनको पक्के सुंदर, स्वच्छ घर बनाकर देंगें, जिस दिन इनके बच्चों और स्त्रियों को शिक्षा और जीवन दर्शन का ज्ञान देंगें, जिस दिन हम इनके हाथ और पांव की बिवाईयों को भरेंगें और जिस दिन इनको उद्योंगों और धर्मो की शिक्षा देकर इनकी आय को ऊंचा उठा देंगें, उस दिन हमारा मातृभाव व्यक्त होगा।’’ उनका मत था कि हमारी नीतियां, योजनाएं व आर्थिक कार्यक्रम कमजोर लोगों को ऊपर लाने की होनी चाहिए ताकि वे भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें और उन्हें भी समाज के अन्य वर्ग के साथ बराबरी में खड़े होने का अवसर मिल सके.     


आज़ादी के बाद बनी विभिन्न सरकारों ने अंत्योदय के सिद्धांत की अनदेखी की, परिणाम यह हुआ कि भारत में गरीबी बढ़ती ही गई. एक बार गरीबी हटाओ का नारा भी दिया गया लेकिन वह भी केवल नारा बन कर ही रह गया. लेकिन जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से "अंत्योदय" के सिद्धांत का पूरी तरह पालन किया जा रहा है. देश में आज "अंत्योदय" के सिद्धांत से प्रेरित होकर अनेक जनकल्याणकारी योजनाएँ संचालित हो रही है. ‘‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास एवं सबका प्रयास’’ के मूलमंत्र के साथ सरकारी योजनाओं के माध्यम से गरीबों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने का लगातार प्रयास हो रहा है. मोदी सरकार ने सामान्य लोगों के आत्मगौरव और आत्मविश्वास को बढ़ाने तथा उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाली अंत्योदय प्रेरित योजनाओं पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है. इन दिनों शिक्षा, स्वास्थ्य व आर्थिक विकास की असंख्य योजनाएं देश भर में चल रही है. इन योजनाओं के माध्यम से भारत के आम आदमी के जीवन-स्तर को सुधारने तथा उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के तेजी से प्रयास हो रहे हैं.

इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुवात की थी. यह अंत्योदय प्रेरित योजना है जिसमें गरीब और बेघर लोगों को अपना खुद का घर बनाने के लिए सरकारी सहायता का प्रावधान है. इस योजना के तहत पिछले 10 सालों में पात्र गरीब परिवारों के लिए लगभग 4 करोड़ घर बनाए जा चुकें हैं. पी.एम.ए.वाई. के तहत, लाभार्थियों का चयन सामाजिक-आर्थिक एवं जाति जनगणना (SECC) 2011 के आंकड़ों के आधार पर किया जाता है. भारत सरकार ने अभी अभी इस योजना में बदलाव कर इसका दायरा बढ़ा दिया है. नए नियम के अनुसार जिन नागरिकों के पास टू व्हीलर, मछली पकड़ने की नाव, रेफ्रीजरेटर, लैंडलाइन फोन है या जिनकी आय 15,000 रुपए प्रतिमाह तक है उन्हें भी प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत पात्र माना जाएगा. इसके साथ साथ ही जिनके पास ढाई एकड़ सिंचित या पांच एकड़ असिंचित भूमि है, वे भी इस योजना का लाभ उठा सकेंगें. यह मोदी सरकार की बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना है जिसका क्रियान्वयन उन व्यक्तियों को लक्ष्य करके किया गया है जिन्हें पं. दीनदयाल उपाध्याय ने ‘‘समाज के अंतिम व्यक्ति’’ की संज्ञा देकर सबसे पहले उनके उदय (विकास) की बात रखते हुये अंत्योदय का सिद्धांत प्रतिपादित किया था. मोदी सरकार लक्ष्य अन्त्योदय, प्रण अन्त्योदय व पथ अन्त्योदय के ध्येय के साथ निरंतर आगे बढ़ रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं - " घर की चाबी सम्मान, आत्मविश्वास, सुनिश्चित भविष्य, नई पहचान और बढ़ती संभावनाओ के द्वार खोलती है." वास्तव में हर व्यक्ति का एक सपना होता है कि उसका स्वयं का एक पक्का आशियाना हो. मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना प्रारंभ कर गरीबों के इस सपने को साकार करने का काम किया है. पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का अंत्योदय प्रधानमंत्री आवास के रुप में फलीभूत हो रहा है.  वास्तव में  उनका यह सिद्धांत 21 वी सदी में विकसित भारत का आधार बन चुका है. 

अशोक बजाज 

पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत रायपुर  

मोबाईल नंबर - 9425205969 

ईमेल - ashokbajaj99@gmail.com


19 अगस्त 2023

स्वतंत्रता दिवस 2023 के कार्यक्रम की झलकियाँ

स्वतंत्रता दिवस 2023 के कार्यक्रम की झलकियाँ


 नगर पंचायत अभनपुर में ध्वजारोहण एवं स्वतंत्रता दिवस समारोह





स्वतंत्रता दिवस पर सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में ध्वजारोहण कर सभी को बधाई दी




स्वतंत्रता दिवस पर सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में भारत माँ की आरती में सम्मिलित हुआ.



सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में संबोधित करते हुए.




भाजपा कार्यालय अभनपुर में स्वतंत्रता दिवस समारोह धूमधाम से मनाया गया.

10 अगस्त 2023

'हमर सियान हमर अभिमान'

महाराष्ट्र के राज्यपाल माननीय रमेश बैस जी का नागरिक अभिनन्दन 



सरल, सहज, मिलनसार एवं कर्मठ राजनीतिज्ञ एवं महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री रमेश बैस हर वर्ग में लोकप्रिय हैं. उन्होंने 1978 में पार्षद से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुवात की तत्पश्चात 1980 में मंदिरहसौद विधानसभा से चुनाव जीत कर मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए।  वे 1989 में रायपुर से 9वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में पहली बार निवाचित हुए तत्पश्चात 1996 में 11वीं, फिर  12वीं, 13वीं, 14वीं, 15वीं और 16वीं लोकसभा में लगातार चुने गए. उन्होंने श्री अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में इस्पात एवं खान, रसायन और उर्वरक, सूचना और प्रसारण जैसे विभिन्न विभागों को संभाला और पर्यावरण व वन तथा खनन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में भी कार्य किया। 15वे लोकसभा में वे भाजपा संसदीय दल के मुख्य सचेतक बनाये गए. इसके अतिरिक्त उन्होंने सन 1992 में मध्यप्रदेश कृषि एवं बीज विकास निगम के अध्यक्ष के रूप में तथा संगठनात्मक रूप से मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेश मंत्री एवं प्रदेश उपाध्यक्ष के रूप में संगठन में काम किया तथा छत्तीसगढ़ में भाजपा के विस्तार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 


छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. सप्रे स्कूल मैदान से आमसभा में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी ने छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का संकल्प लिया तब तालियों से पूरा मैदान गूंज उठा था. इस संकल्प के पूर्व श्री बैस ने ही श्री वाजपेयी जी को छत्तीसगढ़वासियों की छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की बहुप्रतीक्षित मांग से अवगत कराया था. संसद में जब राज्य पुनर्गठन विधेयक पेश हुआ तब श्री रमेश बैस वाजपेयी सरकार में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) थे, स्वाभाविक रूप से राज्य पुनर्गठन विधेयक के निर्माण से लेकर उसे पारित कराने तक आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. 

केंद्रीय मंत्री के रूप में छत्तीसगढ़ के सर्वांगीण विकास में श्री बैस जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. केंद्र की अनेक महती योजनाओं को उन्होंने धरातल पर उतारा। राज्य की जनता को बेहतर स्वास्थ सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से श्री बैस जी के पहल पर ही रायपुर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना हुई, जिससे छत्तीसगढ़ के निवासियों को कम दर पर बेहतरीन  इलाज की सुविधाएं मिल रही है. हम सब वाकिफ है कि कोरोना काल में रायपुर का एम्स पीड़ितों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है.
  

अत्यंत सरल, सहज एवं मृदुभाषी श्री रमेश बैस की कृषि व काष्ठकला में काफी रूचि है. कृषि एवं कृषक कल्याण तथा ग्रामीण विकास में आपका महत्वपूर्ण योगदान है, इनकी लोकप्रियता का एक मुख्य कारण ये भी रहा कि सांसद के रूप में रायपुर लोकसभा क्षेत्र का कोई ऐसा गांव नही जहां श्री बैस जी ने प्रवास ना किया हो. आज भी वे क्षेत्र के हर गांव के 50-100 बुजुर्गों, युवाओं एवं महिलाओं को उनके नाम से संबोधित करते है. इनके चार दशक से भी लंबे राजनीतिक कार्यकाल में रायपुर लोकसभा क्षेत्र में ऐसा कोई ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका या नगर निगम क्षेत्र नही है जहां आपने सांसद निधि से कोई काम ना कराया हो. अपने संसदीय क्षेत्र में उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ एवं सिचाई सुविधाओं के विस्तार पर सदैव ध्यान दिया है और आधारभूत संरचना को विकसित किया है.  श्री रमेश बैस जी की कर्मठता, लगनशीलता एवं लंबे प्रशासनिक अनुभव को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें जुलाई 2019 में त्रिपुरा का राज्यपाल नियुक्त किया वे जुलाई 2021 तक वे त्रिपुरा के राज्यपाल रहे. तत्पश्चात जुलाई 2021 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया, वे 17 फरवरी 2023 तक झारखंड के राज्यपाल के रूप में कार्यरत थे. वर्तमान में वे 18 फरवरी 2023 से महाराष्ट्र के राज्यपाल है. 
महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में राज्यपाल की जिम्मेदारी का निर्वहन करने के बावजूद छत्तीसगढ़ से उनका निरंतर संपर्क बना हुआ है. बुधवार 2 अगस्त 2023 को उनके रायपुर आगमन पर 'हमर सियान हमर अभिमान' आयोजन समिति रायपुर के तत्वावधान में सर्व समाज द्वारा उनका नागरिक अभिनन्दन किया गया. यह संयोग ही है कि 2 अगस्त को उनका जन्मदिन भी है. 










24 मई 2023

'सेंगोल' सम्मुख होगा राष्ट्रबोध

अमृतकाल में हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को 

आधुनिकता से जोड़ने का सुंदर प्रयास



सें
गोल एक राजदंड है जो भारत का ऐतिहासिक धरोहर है. यह आजादी के जुड़ा एक प्रतीक है. 75 साल पूर्व 14 अगस्त 1947 को पं. जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से इस सेंगोल को स्वीकार किया था। यह अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था. पीएम नरेंद्र मोदी 28 मई 2023 को नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर तमिलनाडु की जनता से इस सेंगोल को प्राप्त करेंगे जिसे नए संसद भवन में आसंदी के पास स्थापित किया जायेगा. आजादी के अमृतकाल में हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का सुंदर प्रयास है। इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है. सेंगोल
देश भर के चुने हुए प्रतिनिधि इस राजदंड सेंगोल के सम्मुख होकर जब कोई चर्चा करेंगे तब यह राजदंड उन्हें राष्ट्रबोध का आभाष कराएगा।
तमिल भाषा के शब्द ‘सेम्मई’ से निकला हुआ शब्द है। इसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा। किसी ज़माने में सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था. इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था अब यह नए संसद भवन में शोभायमान होगा. संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत है. जहाँ इस विशाल भारत की जनता की समृद्धि व खुशहाली तथा राष्ट्रहित के मुद्दों पर नीतिगत फैसले लिए जाते है. देश भर के चुने हुए प्रतिनिधि इस राजदंड सेंगोल के सम्मुख होकर जब कोई चर्चा करेंगे तब यह राजदंड उन्हें राष्ट्रबोध का आभाष कराएगा, यानी 'सेंगोल' सम्मुख होगा राष्ट्रबोध.  google.co.in

16 मई 2023

कोरोना के बाद अब टीबी के खिलाफ निर्णायक जंग

टीबी मुक्त भारत अभियान में 'निक्षय मित्र योजना' की प्रभावी भूमिका   


टीबी एक गंभीर जानलेवा बीमारी है. यह अन्य संक्रामक बिमारियों से ज्यादा घातक भी है. बैक्टीरिया से होने वाली यह बीमारी हवा के जरिए एक इंसान से दूसरे इंसान के शरीर में फैलती है। यह आमतौर पर फेफड़ों से शुरू होती है। परन्तु यह ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी, गला, हड्डी आदि शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वाली सूक्ष्म बूंदों से यह इन्फेक्शन फैलता है। सन 1882 में वैज्ञानिक रॉबर्ट कॉक ने टीबी रोग के कारक जीवाणु माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज करके टीबी रोग उन्मूलन की राह आसान की. आज पूरी दुनिया इस बीमारी से चिंतित है. जानकारों के अनुसार दुनिया में प्रतिदिन  5,200 लोगों की मौत टीबी से होती है जबकि अकेले भारत में हर दिन लगभग 1,400 लोग टीबी से मरते हैं। दुनिया के कुल टीबी मरीजों में 25 प्रतिशत मरीज अकेले भारत में हैं. इसीलिए भारत में टीबी उन्मूलन हेतु युद्ध स्तर पर प्रयास जारी है. सन 2030 तक विश्व को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक लक्ष्य से 5 साल पहले यानी 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. स्वास्थ व परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार का पूरा अमला इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जी-जान से जुटा हैं। देशभर में टी.बी मरीजों की पहचान करके उनके उपचार की उचित व्यवस्था करना तथा उनका समुचित देखभाल करने का कार्य तीव्र गति से हो रहा है। उपचार अवधि में रोगियों को पोषण युक्त आहार नितांत आवश्यक है. शासन द्वारा डीबीटी के तहत मरीजों के खाते में प्रतिमाह 500 रु हस्तांतरित किये जा रहे हैं। इसके अलावा RNTCP के तहत सभी रोगियों को टीबी रोधी दवाओं सहित नि:शुल्क निदान और उपचार की सुविधा भी प्रदान की गई है। 

शासन ने इस अभियान को जन आंदोलन बनाने की नीयत से एक अभिनव योजना प्रारंभ की है, इस योजना को ‘निक्षय मित्र’ योजना नाम दिया गया है. इस योजना के तहत जनभागीदारी सुनिश्चित की गई है यानी टीबी के खिलाफ चल रहे जंग में जनता जनार्दन को भी शामिल कर लिया गया है. ‘निक्षय मित्र योजना' के तहत कोई भी व्यक्ति, समूह या संस्थायें मरीजों को पोषण, उपचार व आजीविका में मददगार बनकर प्रधानमंत्री टी.बी. मुक्त भारत अभियान में अपना योगदान दे सकते हैं। इन्हें निक्षय मित्र नाम दिया गया है. निक्षय मित्र को कम से कम एक साल और अधिकतम तीन वर्षों तक रोगियों को गोद लेना होता हैं। परन्तु इसमें टी.बी रोगियो की सहमति आवश्यक हैं। 'निक्षय मित्र योजना' का प्रतिफल यह हुआ कि जन स्वास्थ्य एवं जन सरोकार से जुड़े इस अभियान में लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहें हैं। 'निक्षय मित्र' बनने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति, कारोबारी, स्वयंसेवी संस्थाएं एवं अर्द्ध सरकारी संस्थाएं आगे आ रही है. टी.बी. उन्मूलन की दिशा में जन भागीदारी बढ़ गई है तथा इस योजना को अच्छा प्रतिसाद मिल रहा हैं। इस अभियान से जुड़ने के लिए आप निक्षय पोर्टल www.nikshay.in पर रजिस्टर कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए निक्षय हेल्पलाईन नंबर 1800-11-6666 पर भी सम्पर्क किया जा सकता हैं। 

कोरोना महामारी के दौर में भारत ने जो महती भूमिका निभाई थी, अब टीबी उन्मूलन की दिशा में भी वही भूमिका दृष्टिगोचर हो रही हैं। देश के वैज्ञानिक भी इसके उन्मूलन के लिए नित नई नई दवाइयां व टीके की खोज कर रहे हैं। इस बिमारी को जड़ से खत्म करना हमारा सबका सामाजिक एवं राष्ट्रीय दायित्व है. निक्षय मित्र योजना सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई हैं। आइये हम सब निक्षय मित्र योजना में शामिल होकर 2025 तक टीबी मुक्त भारत के संकल्प को पूरा करें।
- अशोक बजाज


 

11 मई 2023

छत्तीसगढ़ के अनेक प्रसंग 'मन की बात' से चर्चित हुए और प्रेरणा बने

   रेडियो और खादी को पीएम मोदी ने पुनः चलन में ला दिया


रेडियो से प्रसारित 'मन की बात' कार्यक्रम के अब तक 100 एपिसोड पूरे हो चुके है. शतकीय एपिसोड का प्रसारण 30 अप्रेल 2023 को हुआ. मन की बात में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी सदैव सम-सामयिक एवं जन उपयोगी विषयों पर संवाद करते हुए नई ऊर्जा भर देतें है. शायद ही कोई विषय ऐसा हो जो उनसे अछूता हो. यह 'मन की बात' का ही प्रभाव है कि स्वच्छता, कुपोषण मुक्ति एवं जल सरंक्षण जैसे अभियानों ने अब जन आंदोलन का स्वरुप ले लिया है. रेडियो और खादी को उन्होंने पुनः चलन में ला दिया. अपने संवाद में वे सभी वर्गों व क्षेत्रों को समेट लेते हैं. मजे की बात तो यह है कि मन की बात में जिस व्यक्ति, क्षेत्र या विषय की चर्चा होती है वह तुरंत दुनिया भर में ट्रेंड हो जाता है.

मन की बात हो और छत्तीसगढ़ का जिक्र ना हो यह कैसे हो सकता है. श्री मोदी ने इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ का उल्लेख अनेकों बार किया. उन्होंने 26 जुलाई 2015 को 10 वे एपिसोड में राजनांदगाव जिले के केसला गांव का उल्लेख किया तो पूरे छत्तीसगढ़ वासियों का सीना चौड़ा हो गया. हर जगह केसला गांव के लोगों की सोच और समझदारी की चर्चा होने लगी. उन्होनें कहा था - "अभी एक समाचार मेरे कान पे आये थे, कभी-कभी ये छोटी-छोटी चीज़ें बहुत मेरे मन को आनंद देती हैं। इसलिए मैं आपसे शेयर कर रहा हूँ। छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव में केसला करके एक छोटा सा गाँव है। उस गाँव के लोगों ने पिछले कुछ महीनों से कोशिश करके टायलेट बनाने का अभियान चलाया और अब उस गाँव में किसी भी व्यक्ति को खुले में शौच नहीं जाना पड़ता है। ये तो उन्होंने किया लेकिन जब पूरा काम पूरा हुआ तो पूरे गाँव ने जैसे कोई बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है वैसा उत्सव मनाया। गाँव ने ये सिद्धि प्राप्त की। केसला गाँव समस्त ने मिल कर के एक बहुत बड़ा आनंदोत्सव मनाया। समाज जीवन में मूल्य कैसे बदल रहे हैं, जन-मन कैसे बदल रहा है और देश का नागरिक देश को कैसे आगे ले जा रहा है इसके ये उत्तम उदाहरण मेरे सामने आ रहे हैं।"


इसी प्रकार उन्होंने 27 दिसंबर 2015 को 15 वी कड़ी में स्वामी विवेकानंद जी की जन्म-जयंती पर रायपुर में प्रस्तावित राष्ट्रीय युवा महोत्सव के संबंध में कहा था - "प्यारे नौजवान साथियो, 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद जी की जन्म-जयंती है। मेरे जैसे इस देश के कोटि-कोटि लोग हैं जिनको स्वामी विवेकानंद जी से प्रेरणा मिलती रही है। 1995 से 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद जयंती को एक राष्ट्रीय युवा उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष ये 12 जनवरी से 16 जनवरी तक छत्तीसगढ़ के रायपुर में होने वाला है और मुझे जानकारी मिली कि इस बार की उनकी जो थीम है, क्योंकि उनका ये इवेंट थीम बेस्ड होता है, थीम बहुत बढ़िया है ‘इण्डिया यूथ ऑन डेवलपमेंट स्किल एन्ड हार्मोनी’. मुझे बताया गया कि सभी राज्यों से, हिंदुस्तान के कोने-कोने से 10 हज़ार से ज़्यादा युवा इकट्ठे होने वाले हैं। एक लघु भारत का दृश्य वहाँ पैदा होने वाला है। युवा भारत का दृश्य पैदा होने वाला है। एक प्रकार से सपनों की बाढ़ नज़र आने वाली है। संकल्प का एहसास होने वाला है। इस यूथ फेस्टिवल के संबंध में क्या आप मुझे अपने सुझाव दे सकते हैं ? मैं ख़ास कर के युवा दोस्तों से आग्रह करता हूँ कि मेरी जो ‘नरेंद्र मोदी एप’ है उस पर आप डायरेक्टली मुझे अपने विचार भेजिए। मैं आपके मन को जानना-समझना चाहता हूँ और जो ये नेशनल यूथ फेस्टिवल में रिफ्लेक्ट हो, मैं सरकार में उसके लिए उचित सुझाव भी दूँगा, सूचनाएँ भी दूँगा। तो मैं इंतज़ार करूँगा दोस्तो, ‘नरेंद्र मोदी एप’ पर यूथ फेस्टिवल के संबंध में आपके विचार जानने के लिए।"

श्री मोदी ने 28 अगस्त 2016 को 23 वे एपिसोड में कबीरधाम जिले के स्कूली बच्चों से जुड़े एक प्रसंग का जिक्र बड़े ही आदर व सम्मान के साथ किया। अचरज भी हुआ क्योकिं जिस प्रसंग की जानकारी अच्छों अच्छों को नहीं थी लेकिन प्रधानमंत्री की पैनी निगाह ने खोज कर ली. यही तो चमत्कार है. उन्होंने कहा था- "मेरे प्यारे देशवासियों, कुछ बातें मुझे कभी-कभी बहुत छू जाती हैं और जिनको इसकी कल्पना आती हो, उन लोगों के प्रति मेरे मन में एक विशेष आदर भी होता है। 15 जुलाई को छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में करीब सत्रह-सौ से ज्यादा स्कूलों के सवा-लाख से ज़्यादा विद्यार्थियों ने सामूहिक रूप से अपने-अपने माता-पिता को चिट्ठी लिखी। किसी ने अंग्रेज़ी में लिख दिया, किसी ने हिंदी में लिखा, किसी ने छत्तीसगढ़ी में लिखा, उन्होंने अपने माँ-बाप से चिट्ठी लिख कर के कहा कि हमारे घर में टायलेट होना चाहिए। टायलेट बनाने की उन्होंने माँग की, कुछ बालकों ने तो ये भी लिख दिया कि इस साल मेरा जन्मदिन नहीं मनाओगे तो चलेगा, लेकिन टायलेट ज़रूर बनाओ। सात से सत्रह साल की उम्र के इन बच्चों ने इस काम को किया और इसका इतना प्रभाव हुआ, इतना इमोशनल इंपैक्ट हुआ कि चिट्ठी पाने के बाद जब दूसरे दिन स्कूल आया, तो माँ-बाप ने उसको एक चिट्ठी पकड़ा दी टीचर को देने के लिये और उसमें माँ-बाप ने वादा किया था कि फ़लानी तारीख तक वह टायलेट बनवा देंगे। जिसको ये कल्पना आई उनको भी अभिनन्दन, जिन्होंने ये प्रयास किया उन विद्यार्थियों को भी अभिनन्दन और उन माता-पिता को विशेष अभिनन्दन कि जिन्होंने अपने बच्चे की चिट्ठी को गंभीर ले करके टायलेट बनाने का काम करने का निर्णय कर लिया। यही तो है, जो हमें प्रेरणा देता है।"

देश और समाज में हो रहे सकारात्मक बदलाव में देश की नारी-शक्ति की भूमिका पर चर्चा करते हुए 28 जनवरी 2018 को 40 वे एपिसोड में उन्होंने ई-रिक्शा चलाने वाली दंतेवाड़ा की आदिवासी महिलाओं का जिक्र करते हुए कहा कि "छत्तीसगढ़ की हमारी आदिवासी महिलाओं ने भी कमाल कर दिया है। उन्होंने एक नई मिसाल पेश की है। आदिवासी महिलाओं का जब ज़िक्र आता है तो सभी के मन में एक निश्चित तस्वीर उभर कर आती है। जिसमें जंगल होता है,पगडंडियां होती हैं, उन पर लकड़ियों का बोझ सिर पर उठाये चल रही महिलाएँ। लेकिन छत्तीसगढ़ की हमारी आदिवासी नारी, हमारी इस नारी-शक्ति ने देश के सामने एक नई तस्वीर बनाई है। छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा इलाक़ा, जो माओवाद-प्रभावित क्षेत्र है। हिंसा, अत्याचार, बम, बन्दूक, पिस्तौल - माओवादियों ने इसी का एक भयानक वातावरण पैदा किया हुआ है। ऐसे ख़तरनाक इलाक़े में आदिवासी महिलाएँ  ई-रिक्शा  चला कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। बहुत ही थोड़े कालखंड में कई सारी महिलाएँ इससे जुड़ गयी हैं। और इससे तीन लाभ हो रहे हैं, एक तरफ जहाँ स्वरोजगार ने उन्हें सशक्त बनाने का काम किया है वहीँ इससे माओवाद-प्रभावित इलाक़े की तस्वीर भी बदल रही है और इन सबके साथ इससे पर्यावरण-संरक्षण के काम को भी बल मिल रहा है।" 

रायपुर नगर निगम के कचरा महोत्सव के श्री मोदी भी मुरीद हुए थे, उन्होंने 41 वे एपिसोड में दिनांक 25 फरवरी 2018 को इसे स्वच्छता के लिए अनूठा प्रयास निरूपित करते हुए कहा था - " मेरे प्यारे देशवासियो, आज तक हम म्यूजिक फेस्टिवल, फ़ूड फेस्टिवल फिल्म फेस्टिवल  न जाने कितने-कितने प्रकार के फेस्टिवल  के बारे में सुनते आए हैं । लेकिन छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक अनूठा प्रयास करते हुए राज्य का पहला ‘कचरा महोत्सव’ आयोजित किया गया। रायपुर नगर निगम द्वारा आयोजित इस महोत्सव के पीछे जो उद्देश्य था वह था स्वच्छता को लेकर जागरूकता। शहर के वेस्ट का क्रिएटिवेली यूज करना और गार्बेज को रि-यूज करने के विभिन्न तरीकों के बारे में जागरूकता पैदा करना। इस महोत्सव के दौरान तरह-तरह की एक्टिविटी हुई जिसमें छात्रों से लेकर बड़ों तक, हर कोई शामिल हुआ। कचरे का उपयोग करके अलग-अलग तरह की कलाकृतियाँ बनाई गईं। वेस्ट मैनेजमेंट के सभी पहलूओं पर लोगों को शिक्षित करने के लिए वर्कशॉप आयोजित किये गए। स्वच्छता के थीम पर म्यूजिक परफॉर्मेंस हुई। आर्ट वर्क बनाए गए। रायपुर से प्रेरित होकर अन्य ज़िलों में भी अलग-अलग तरह के कचरा उत्सव हुए। हर किसी ने अपनी-अपनी तरफ से पहल करते हुए स्वच्छता को लेकर इंनोवेटिव आइडियाज शेयर किये, चर्चाएं की, कविता पाठ हुए। स्वच्छता को लेकर एक उत्सव-सा माहौल तैयार हो गया। खासकर स्कूली बच्चों ने जिस तरह बढ़-चढ़ करके भाग लिया, वह अद्भुत था। वेस्ट मैनेजमेंट और स्वच्छता के महत्व को जिस  अभिनव तरीक़े से इस महोत्सव में प्रदर्शित किया गया, इसके लिए रायपुर नगर निगम, पूरे छत्तीसगढ़ की जनता और वहां की सरकार और प्रशासन को मैं ढ़ेरों बधाइयाँ देता हूँ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बस्तर के बीजापुर में आई ई डी ब्लास्ट में शहीद सीआरपीएफ के स्निफर डॉग 'क्रेकर' की दिनांक 30 अगस्त 2020 को मन की बात के 68 वे एपिसोड में चर्चा करते हुए अपने मन के भाव को यूँ प्रकट किया - "एक डॉग बलराम ने 2006 में अमरनाथ यात्रा के रास्ते में, बड़ी मात्रा में, गोला-बारूद खोज निकाला था | 2002 में डॉग भावना ने आई ई डी खोजा था, आई ई डी निकालने के दौरान आंतकियों ने विस्फोट कर दिया और श्वान शहीद हो गये | दो-तीन वर्ष पहले छत्तीसगढ़ के बीजापुर में सीआरपीएफ का स्निफर डॉग 'क्रेकर' भी आई ई डी ब्लास्ट में शहीद हो गया था | अगली बार, जब भी आपडॉग पालने की सोचें, आप जरुर इनमें से ही किसी इंडियन बीड के डॉग को घर लाएँ | आत्मनिर्भर भारत, जब जन-मन का मन्त्र बन ही रहा है, तो कोई भी क्षेत्र इससे पीछे कैसे छूट सकता है |"

कोरोना महामारी के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता की जिस प्रकार हौसला अफजाई की वह किसी से छुपी नहीं है. उन्होंने कोरोना वारियर्स का हौसला भी डिगने नहीं दिया। मन की बात में दिनांक 25 अप्रेल 2021 को उन्होंने रायपुर के डॉक्टर बी.आर. अम्बेडकर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में कार्यरत एक नर्स भावना ध्रुव से सीधे बात की थी। मुश्किल दौर में इस मोदी मन्त्र से देश भर के कोरोना वारियर्स को एक प्रकार से संजीवनी मिल गई.  इसी प्रकार उन्होंने 24 अक्टूबर 2021 को छत्तीसगढ़ के देऊर गाँव की महिलाओं द्वारा गाँव के चौक-चौराहों, सड़कों और मंदिरों की सफाई कार्य का जिक्र करते हुए सराहना की थी. शतकीय कड़ी में उन्होंने पुनः इसका जिक्र किया। 91 वे एपिसोड में दिनांक 31 जुलाई 2022 को श्री मोदी ने नारायणपुर बस्तर के ‘मावली मेले’ का उल्लेख किया था. मन की बात के 97 वे तथा वर्ष 2023 के पहले एपिसोड में दिनांक 29 जनवरी को प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष का जिक्र करते हुए कहा था - "अगर आपको छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जाने का मौका मिले तो यहाँ के 'मिलेटस कैफे' जरुर जाइएगा। कुछ ही महीने पहले शुरू हुए इस 'मिलेटस कैफे' में चीला, डोसा, मोमोस, पिज़्ज़ा और मंचूरियन जैसे आईटम खूब पॉपुलर हो रहे हैं।" इसी एपिसोड में उन्होंने बिलासपुर में आठ प्रकार के मिलेट्स का आटा और उसके व्यंजन बनाने के काम में लगे के एफपीओ की जानकारी दी   इसी एपिसोड में आगे उन्होंने कहा कि जनजातीय समुदाय हमारी धरती, हमारी विरासत का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। देश और समाज के विकास में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। उनके लिए काम करने वाले व्यक्तित्वों का सम्मान, नई पीढ़ी को भी प्रेरित करेगा। इस वर्ष पद्म पुरस्कारों की गूँज उन इलाकों में भी सुनाई दे रही है, जो नक्सल प्रभावित हुआ करते थे। अपने प्रयासों से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में गुमराह युवकों को सही राह दिखाने वालों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इसके लिए कांकेर में लकड़ी पर नक्काशी करने वाले अजय कुमार मंडावी और गढ़चिरौली के प्रसिद्द झाडीपट्टी रंगभूमि से जुड़े परशुराम कोमाजी खुणे को भी ये सम्मान मिला है। इसी प्रकार नॉर्थ-ईस्ट में अपनी संस्कृति के संरक्षण में जुटे रामकुईवांगबे निउमे, बिक्रम बहादुर जमातिया और करमा वांगचु को भी सम्मानित किया गया है।

यह छत्तीसगढ़ के लिए गौरव करने वाली बात है कि 'मन की बात' के माध्यम से छत्तीसगढ़ के अनेक प्रसंग पूरे देश में चर्चित भी हुए और प्रेरणा भी बने.   

लेखक- अशोक बजाज
 पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत रायपुर 
पी-3, सेल्स टैक्स कालोनी खम्हारडीह, शंकरनगर रायपुर 492007 

09 मई 2023

आलेख 'स्वर्णिम भारत की शुरुवात : मन की बात' के प्रकाशन के लिए संपादकों का आभार

प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी द्वारा प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को आकाशवाणी से प्रसारित #मन_की_बात के ऐतिहासिक 100 वे एपिसोड { शतकीय कड़ी } के अवसर पर 'स्वर्णिम भारत की शुरुवात : मन की बात' शीर्षक से देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचना प्रकाशित हुई. दैनिक एक्शन इंडिया नई दिल्ली, दैनिक आज वाराणसी, दैनिक त्रिनेत्र रेवाड़ी, दैनिक हरिभूमि रायपुर, दैनिक तरुण छत्तीसगढ़ रायपुर, दैनिक स्वतंत्र स्वर रायपुर, दैनिक अमन पथ रायपुर, दैनिक लोकशक्ति रायपुर, दैनिक अमर छत्तीसगढ़ राजनांदगांव, दैनिक ट्रू सोल्जर रायपुर, दैनिक श्रम बिंदु भिलाई, दैनिक लोककिरण रायपुर एवं दैनिक अग्रदूत रायपुर आदि समस्त पत्र-पत्रिकाओं के माननीय संपादकों का मैं आभारी हूँ.


action india new delhi 29.04.2023


amanpath 26.04.2023 

aaj varanasi 26.04.2023 


 amar chhattisgarh rjn 25.04.2023

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