सम-सामयिक कविता
यह कोरोना काल है, दुनिया में भूचाल है,
घर से बाहर ना निकलें, जी का जंजाल है।
पर किसने किसकी मानी है, घर में रहने की ठानी है,
जब फैल गया कोरोना तो, हर बस्ती में वीरानी है।
चारों ओर हाहाकार है, मरीजों की चीत्कार है,
दवा नहीं बनेगी, तब तक डॉक्टर भी लाचार हैं।
सूना सूना बाज़ार है, ऑनलाइन व्यापार है,
काम-धंधा कब करें, चिंतित हर परिवार है।
टूट रहे अरमान हैं, बिदक रहे मेहमान हैं,
लग जाये यदि रोग तो, मर कर भी अपमान है।
मंदिर में बंद भगवान हैं, भटक रहे जजमान हैं,
त्योहारों के मौसम में, ना राशन ना पकवान है।
फ़ेस मास्क जरूरी है, रखना दो गज की दूरी है,
कितने भी हों काम पड़े, घर पर रहना मजबूरी है।
जिंदगी बेहाल है, बहुत बुरा हाल है,
कोरोना से बच गए तो जीवन निहाल है।
ऊपर वाले से गुहार है, सुखी रहे संसार है,
हाथ जोड़ विनती करे, बजाज बारम्बार है।
- अशोक बजाज रायपुर