छत्तीसगढ़ में तेजी से बढ़ते राजनीतिक घटनाक्रम में एक नया मोड़ तब आ गया जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीत जोगी ने कांग्रेस से नाता तोड़कर नई पार्टी बनाने का एलान कर दिया । असम व केरल की सत्ता गंवाने के गम में डूबी कांग्रेस के लिए जोगी का पार्टी छोड़ना किसी चक्रवात से कम नहीं है । वैसे भी देश में कांग्रेस की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है । लोकसभा तथा विभिन्न राज्यों में लगातार पस्त होने के बाद कांग्रेस के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा चल रही है । यह अलग बात है कि नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी कांग्रेस संगठन की कमान गांधी परिवार के हाथ में ही होगी । बहरहाल नेतृत्व परिवर्तन के सुगबुगाहट के बीच अजीत जोगी का कांग्रेस से नाता तोड़ने का निर्णय पार्टी की मुसीबज ही बढ़ायेगा ।

छत्तीसगढ़ में पिछले 12 वर्षो में डा. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने विकास के दम पर अपना गहरा पैठ बना लिया है । लोंगों को वो सुविधायें भी मिल रही है जो उन्हें कभी कांग्रेस सरकार में संभव भी नहीं थी । इस स्थिति में कांग्रेस के अन्तर्द्वंद ने डा. रमन सरकार की चौथी पारी का मार्ग प्रशस्त कर दिया है । मगर इस घटनाक्रम को महज दलगत राजनैतिक नफा नुकसान के दृष्टिकोण से देखना उचित नहीं होगा क्योंकि अन्य राज्यों की तरह यदि तीसरी शक्ति का उदय होगा तो छत्तीसगढ़ की राजनैतिक संस्कृति पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा । किसी नेता को अपने दल में अपेक्षाकृत महत्व नहीं मिलेगा तो अन्य दल में जाने का रास्ता तलाश करेगा, उसके पास विकल्प भी रहेगा। आयाराम गयाराम की संस्कृति विकसित होगी तथा विभिन्न दलों में कार्य करने वाले निष्ठावान व मर्यादित कार्यकर्ताओं के बजाय अवसरवादी व मौकापरस्त कार्यकर्ताओं का वजन बढ़ जायेगा । देश के अधिकांश राज्यों में यह देखने को भी मिल रहा है । कहने का तात्पर्य यह है कि राजनैतिक मूल्यों का पतन हो जायेगा । यह स्थिति लोकतंत्र व विकास दोनों के लिए खतरनाक है ।
अशोक बजाज
अध्यक्ष
छ.ग. राज्य सहकारी बैंक मर्या.
(अपेक्स बैंक) रायपुर