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12 अगस्त, 2010

अर्जुन सिंह ने राज को और गहरा दिया ?

अर्जुन सिंह  ने राज  को और गहरा दिया ? 


                                      भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी यूनियन कार्बाईड के प्रमुख वारेन एंडरसन को भारत से सुरक्षित व बाईज्जत भगाने के मामले  में  तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन  सिह ने लंबे समय बाद राज्यसभा में जब  चुप्पी तोड़ी तो लगा कि वे राज से पर्दा हटायेंगे लेकिन उन्होंने पर्दा हटाने के बजाय राज को और गहरा कर दिया है. दिसंबर 1984 में यूनियन कार्बाइड से जहरीले गैस के रिसने से लाखों लेाग प्रभावित हुये थे । इसके मुख्य आरोपी एंडरसन को बड़े ही नाटकीय ढंग से रिहा कर भोपाल से दिल्ली रवाना किया गया , जहाँ से वे अमेरिका भागने में सफल हो गए . इस मामले में केंद्र व राज्य सरकार का  रवैय्या संदेहास्पद रहा है। अर्जुनसिह ने कहा कि  एंडरसन को  रिहा करने के लिए गृहमंत्रालय का दबाव था लेकिन उन्होंने  यह प्रश्न अनुत्तरित छोड़ दिया कि गृहमंत्रालय पर किसका दबाव था। एंडरसन को रिहा करने के लिए गृहमंत्रालय को सीधे अमरीका से दबाव तो आया नहीं होगा ?वास्तव में अर्जुनसिंह ने राज खोलते-खोलते राज को और गहरा कर दिया है। क्या  अर्जुन सिंह ने गृहमंत्रालय पर आरोप मढ़कर राजीव गांधी पर ही अप्रत्यक्ष तौर से निशाना तो नहीं  साधा है ?

                                        जब गैस त्रासदी हुई तब केन्द्र व राज्य में कांग्रेस की सरकारें थी स्वाभाविक रूप से राज्य व केन्द्र सरकार के सहयोग के बिना एंडरसन   वतन नहीं छोड़ सकता था। एंडरसन के मामले में मिडिया में जो तस्वीरे दिखाई गई उससे साफ जाहिर होता है कि म.प्र. सरकार ने घटना के बाद पूरी इज्जत के साथ एंडरसन की भोपाल से बिदाई की। भोपाल के तत्कालीन कलेक्टर व एस.पी. उसे प्लेन तक छोड़ने गये थे। यह सामान्य सी बात है कि कोई भी कलेक्टर, एस.पी. या अन्य आला अफसर ऊपर के निर्देश के बिना ऐसी गुस्ताखी नहीं कर सकता। कलेक्टर एस.पी को जरूर ऊपर से निर्देश रहा होगा। ये ऊपर वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री के अलावा और कौन हो सकते हैं ?लेकिन उनका भी क्या दोष क्योंकि उन्होंने अपने ऊपर वाले   का निर्देश माना। इन ऊपर वालों के चक्कर में एंडरसन ऊपर उड़ गया। भोपाल की जनता त्रासदी झेलती रही।

                                         दिनांक ७ जुन २०१० को अदालत का  फैसला आने के बाद यह मुद्दा पुनः सुर्खियों में आ गया  । अदालत का फैसला आने के बाद पूरे देश की नींद खुली। मिडिया ने भी अपने जागृत होने का प्रमाण दिया। खबरों का निचोड़ ये आने लगा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी  के दबाव या  निर्देश पर एंडरसन को भोपाल से सुरक्षित दिल्ली पहुचाया होगा।अर्जुनसिहही मिडिया के  मुख्य निशाने पर थे ।सबको इंतजार था केवल अर्जुनसिह के बयान का ।अर्जुन सिंह राजनीति के बहुत ही मंजे हुये खिलाड़ी है। जब वे मुख्यमंत्री थे तब उन्हें राजनीति के चाणक्य की संज्ञा दी गई थी।किसी जमाने में अर्जन सिंह की कांग्रेस में तूती बोलती थी। परिस्थितियां अभी बदली हुई है वे कांग्रेस की राजनीति में इन दिनों हासिये पर चल रहे हैं। यही वजह है कि दिग्विजय सिंह के अलावा कांग्रेस का और कोई बड़ा नेता उसके बचाव में सामने नहीं आया ।  
  
                                        आखिकार    लंबे इंतजार के बाद  अर्जुन सिंह ने 11 अगस्त को राज्य सभा में  चुप्पी  तोड़ी। लोग कयास लगा रहे थे कि अर्जुन सिंह चुप्पी तोड़ कर धमाका करेंगे। जब रहस्य से पर्दा उठेगा तो देश की राजनीति में भूचाल आ जायेगा,लेकिन अर्जुनसिंह ने बड़ी चतुराई से मामले के रहस्य को रहस्य ही रहने दिया. एक बात उन्होंने जरुर स्वीकार की  कि एंडरसन को भोपाल से सुरक्षित भेजने में राज्य सरकार की पूरी भूमिका थी।  लेकिन उन्होंने इस कृत्य केलिए ऊपरकेनिर्देश  का हवाला देकर  घटना की सम्पूर्ण जवाबदारी से मुख मोड़ लिया lअर्जुनसिंह ने स्वीकार किया कि एंडरसन को छोड़ने के लिए गृह मंत्रालय से दबाव आया था। ऐसा कहकर उन्होंने गृहमंत्री नरसिम्हाराव पर सारा दोष मढ़ दिया। अर्जुन सिंह ने बयान देते समय पूरी सतर्कता बरती। उन्होंने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि  गांधी नेहरू परिवार पर  पर कोई आंच न आये। हो सकता है कि वे वर्तमान आलाकमान को नाराज नहीं करना चाह रहे होंगे। हम तो मानेंगे कि अर्जुन सिंह ने बड़ी चतुराई से एक तीर से दो निशाना लगाया है। एक तो उन्होंने नरसिम्हाराव पर निशाना साध कर अपने आपको आलाकमान का हमदर्द सिद्ध  करने का प्रयास किया तो दूसरी ओर ऊपर से दबाव कहकर अपने दोष को कम करने का प्रयास किया है। दोषी तो हूँ  लेकिन सम्पूर्ण दोषी नहीं।

                                        अर्जुन सिंह के बयान में सबसे आश्चर्यजनक  बात  यह  है  कि  उन्होंने  जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी को गैस त्रासदी तथा एंडरसन की गिरफ्तारी की जानकारी दी तो उन्होंने (राजीव गांधी ने) चुप्पी साध ली। अर्जुनसिंह का यह  कथन इस बात को सिद्ध  करने के लिए पर्याप्त है कि इतनी बड़ी त्रासदी को लेकर देश का तत्कालीन नेतृत्व कितना गंभीर था ? 00295




2 टिप्‍पणियां:

  1. डूबता हुआ सूरज-लाईम लाईट में रहने की चाल
    सोचता है एक बार एन्डरसन के मसले पर फ़िर मचा दूँ बवाल। लेकिन इन तिलों में तेल नही है।

    अच्छी पोस्ट है

    फ़ोंट छोटे हो गए हैं,जूम करके पढना पडा है
    कृपया ठीक कर दें।

    धन्यवाद

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  2. बजाज जी,
    बहुत अच्छा लिखा है आपने. अर्जुनसिंह ने जो बयान राज्यसभा में दिया है उससे मुझे बहुत पुराना यह गाना याद आ रहा है " परदे में रहने दो परदा ना उठाओ, परदा जो उठ गया तो भेद खुल जायेगा ". इस गाने में नायिका की आँखें बस दिखती हैं तथा नाक और मुहं नकाब में ढके रहते हैं. (उनके इस बयान के पीछे नायिका कौन है? सब समझते हैं)
    अर्जुनसिंह ने भी बस यही काम किया है असली अपराधी की नाक एवं चेहरे को तो छिपा दिया पर आँख नजर आ रही है.
    आपने बहुत सही लिखा है एंडरसन को छोड़ने के लिए अर्जुनसिंह पर गृह मंत्रालय का दबाव था लेकिन गृह मंत्रालय पर किसका दबाव था? यह रहस्य अनुत्तरित है.
    ऐसा लगता है 7 जून से 11 अगस्त के बीच अर्जुनसिंह ने कहीं न कहीं कोई सौदेबाजी की है.
    आपका आलेख प्रकाशन योग्य है " क्रांतिरथ छत्तीसगढ़ " के अगले अंक में दे रहा हूँ .नारायण भूषणिया

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