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24 जून, 2010

नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति समाज के लिए घातक


नई पीढ़ी को नशाखोरी से बचाएं

समा में बढ़ती नशाखोरी की प्रवृत्ति के अनेक घातक परिणाम सामने आ रहे हैं। इससे समाज में अनुशासनहीनता बढ़ रही है, गांव की न्याय व्यवस्था चरमरा रही है तथा परिवार उजड़ रहे हैं। नशाखोरी के कारण लोगों की मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक हालत बिगड़ रही है । नई पीढ़ी में भी नशाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यदि समय रहते इस प्रवाह को नहीं रोका गया तो इसके घातक परिणाम होंगे । व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, युवा हो या वृद्ध, महिला हो या पुरूष कोई भी वर्ग इस रोग से अछुता नहीं है । आज हमें घर हो या दफ्तर, स्कूल हो या कालेज, गांव हो या ‘शहर सभी स्थानों पर नशाखोर व्यक्ति या व्यक्तियों की जमात दिखाई देती है । नशाखोरी केवल एक रोग नहीं बल्कि यह अनेक रोगों की जननी भी है, इसी प्रवृत्ति के चलते मनुष्य का मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक पतन तेजी से हो रहा है। सामाजिक मर्यादाए भंग हो रही है । नैतिक मूल्यों का तेजी से हृास हो रहा है । समाज में बढ़ रही आपराधिक प्रवृति के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार किसी को माना जा सकता है तो वह नशाखोरी ही है । ‘शराब के नशे मे चूर व्यक्ति असामान्य हालात में क्या क्या हरकतेंं नहीं करता । आये दिनों नशाखोरों की नित्य नई करतबें देखने सुनने व पढ़नेको मिलती है। नशाखोरी से न केवल अपराध बढ़ रहें है बल्कि इससे दुघर्टनाएं भी तेजी से बढ़ रही है । आधे से अधिक सड़क दुर्घटनाओं के लिए नशाखोरी को ही जिम्मेदार माना गया है । कभी यात्री बस पलट जाती है तो कभी बारातियों से भरा वाहन दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है । अनेको लोग इसकी वजह से अकाल मृत्यु के शिकार हो रहें है अथवा निःशक्त हो रहे है । ‘शराब पीना केवल मजबूरी नहीं बल्कि यह ऐश्वर्य प्रदर्शन का एक माध्यम बन गया है । अनेक लोग इसे विलासिता की वस्तु मान कर इस्तेमाल करते है । अपनी तथाकथित प्रतिष्ठा में चार चांद लगाने के लिए महंगी से महंगी शराब पीना आज फैशन हो गया है । यह समझ से परे है कि खुद तमाशबीन बनकर कोई कैसे अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाता होगा । तीज त्योहार हो या मांगलिक कार्य पीनेवालों को तो केवल बहाना ही चाहिए । आज के युग में महफिल सजे बिना कोई जश्न संभव ही नहीं है। यह अलग बात है कि महफिल सजते सजते किसी को लग गई तो पूरे रंग में भंग पड़ जाता है । नशा खोरी के कारण धार्मिक सामाजिक या राजनैतिक आयोजनों का निर्विध्न सम्पन्न हो जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं. नशाखोरी के कारण व्यक्ति सब कुछ खोता जा रहा है। नशे के लिए वह क्या कुछ त्याग नहीं करता । घर परिवार एवं जमीन जायदाद को भी त्याग देता है यह कैसी खतरनाक त्याग की भावना है ? क्या कोई शराबी देश, समाज व प्रकृति के लिए यह सब त्याग कर सकेगा । इन तथाकथित त्यागियों के कारण समाज में अनैतिकता एवं अनुशासनहीनता बढ़ रही है, । सामाजिक व्यवस्थायें चकनाचूर हो रही है । आपस के रिश्तें टुट रहंे है एवं परिवार उजड़ रहे है।मेहनत कश लोग पी-पी कर सूख रहें है और शराब के निर्माता व वितरक हरे हो रहें है । चंद लोगो के जीवन की हरियाली के लिए समूचे समाज को बंजर बनाया जा रहा है । हमें यह भी सोचना होगा कि लाखों - करोड़ों जिन्दगियों को तबाह करने का लाइसेंस क्या मुटृठी़भर लोगों के दे दिया जाय । देश में भौतिक विकास के नाम पर प्रति वर्ष अरबों रूपिये खर्च हो रहे है लेकिन यह विकास किसके लिए ?भौतिक विकास के साथ साथ नैतिक विकास भी जरूरी है। देश में मौजूद मानव संसाधन कितना स्वस्थ, पुष्ट एवं मर्यादित है हमें यह देखना होगा । मानव संसाधन के समुचित दोहन से ही राष्ट्र विकसित हो सकता । देश मे मौजूद मानव संसाधन को रचनात्मक विकास की दिशा मे लगाना होगा । कोई भी देश या समाज अपने मानव संसाधन को निरीह, निःशक्त या निर्बल बनाकर खुद कैसे शक्तिशाली हो सकता है ? यह नशाखोरी का ही दुष्परिणाम है कि मानव कमजोर, आलसी व लापरवाह होता जा रहा है । हमें नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति को रोकना होगा । लोगों के हाथों में दारू की बोतल नहीं बल्कि काम करने वाले औजार होने चाहिए । कौन देगा उन्हें ऐसी प्रेरणा ? इस बुरी लत को सरकार के किसी कानून से खत्म नहीं किया जा सकता । इसके लिए समाज में जागरूकता लानी होगी । नई पीढ़ी को इस दुव्र्यसन के दुष्परिणामों का बोध कराना होगा । समाजसेवियों एवं समाज के कर्णधारों को बिना वक्त गवायें अब इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है क्योकि हमें शांति ,सदभाव व भाईचारे का वातावरण निर्मित कर स्वस्थ समाज का निर्माण करना है । नशाखोरी के खिलाफ “नशा हे खराब :झन पीहू शराब" का नारा खूब चल पड़ा है इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे है । ग्रामीण क्षेत्रों में एक नई चेतना का संचार हुआ है । इस छत्तीसगढ़ी नारे के कारण समाज में नई उर्जा का संचार हुआ है । मैं समझता हूँ कि नशा मुक्ति के क्षेत्र में यह नारा मील का पत्थर सिद्ध होगा ।

नशा हे खराबःझन पीहू शराब

6 टिप्‍पणियां:

  1. sahee baat kahat haabas lekin ye baare me sarkaar la bhi kuchhu kare bar laagahi ..
    saraab dukaan khole ke sab jaga pradarshan hothe lekin sarkaar ha chuchaap baithe rathe ..
    sarkaar la sharaab dukaan ke kam se kam parmit dena chahiye auv jihan bhi aapatti he uhan dukaan khole ke license nai dena chahiye , tab kuchhu kaam ha hohi ..

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  2. नशा हे खराब :झन पीहू शराब के नारे को सरकार नें दिखावटी तौर पर प्रोजेक्‍ट किया है. नशाखोरी व शराब के परिणामों के विरूद्ध जैसे अन्‍य राज्‍यों नें दृढ़तापूर्वक निर्णय लिया है वैसे ही छत्‍तीसगढ़ शासन ले सकती है पर उसे अपना आबकारी राजस्‍व आय कम नहीं करना है, भले जनता दुबली होती रहे.

    सहज उपलब्‍ध सस्‍ता चांवल और गांव गांव गली गली कोचियों के सहयोग से अतिसुलभ उपलब्‍ध दारू दोनों छत्‍तीसगढ़ की बहुसंख्‍यक जनता को 'कोढिहा' (अकर्मण्‍य) बनाने में बहुत बढा योगदान कर रही है. यह लम्‍बी राजनीति है कृषि श्रमिक इससे अकर्मण्‍य होंगें जिससे कृषकों को कृषि कार्य में दिक्‍कतें आनी शुरू होगी, कम रकबे के किसान श्रम के साथ साथ अन्‍य समस्‍याओं से जूझने के रोज रोज के दिक्‍कतों के कारण अपनी भूमि बेंचने में ज्‍यादा सहजता अनुभव करेगा और औद्योगीकरण के राह प्रशस्‍त होंगें.

    अशोक भाई आप राजनैतिज्ञ होते हुए भी जनता के प्रति अपनी चिंता और नशाखोरी पर बेबाक राय इस ब्‍लाग में प्रस्‍तुत किया इसके लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद.

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  3. ... प्रश्न यह है कि कौन शराब बंदी चाहता है, सरकार - प्रशासन - पुलिस या फ़िर आप-हम ... या फ़िर सभी दिखावा है ... संभवत: अंतर्मन से सभी चहते हों कि शराब गांव-गांव में चलती रहे, शायद इसलिये ही तो यह धंधा फ़ल\फ़ूल रहा है ?!?

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  4. नारों की भीड़ में एक नारा और.....
    बापू के देश में दारू बिकती चहुँ ओर.....
    नशा बंदी करने के लिए दृढ राजनैतिक इच्छा शक्ति एवं नैतिक मूल्यों की आवश्यकता है.
    जोकि अब दिखाई नहीं देती.
    हरियाणा का तमाशा हमने देख लिया. वहां शराब बंदी का जो हश्र हुआ.
    इस लिए सरकार और राजनैतिक दल कोई खतरा नहीं उठाना चाहते.
    बढ़िया आलेख है.

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  5. आपका नारा -
    नशा है ख़राब , झंन पिहू सराब.

    जनता का नारा -
    राम राज में दूध मिले,कृष्ण राज में घी.
    रमण राज में "दारू" मिले, घोलंड-घोलंड के पी .

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