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18 अप्रैल 2011

बढ़ते तापमान से मछलियों को तनाव


 दुनिया के कुछ हिस्सों में तापमान वृद्धि के कारण मछलियों की कुछ प्रजातियों पर गंभीर असर हो रहा है. उनका प्रजनन कम तो हो ही रहा है लेकिन तनाव और उनके मरने की आशंका भी बढ़ती जा रही है.

नेचर क्लाइमेट चेंज नाम की पत्रिका में प्रकाशित ताजा शोध लंबे समय से जिंदा रह रही मछलियों को केंद्र में रखते हुए किया गया है. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच तस्मान सागर में पाई जाने वाली बैंडेड मोरवोंग मछलियों पर वैज्ञानिकों ने यह शोध किया.

ताजा और पुराने आंकड़ों की मदद से वैज्ञानिकों ने पाया कि कुछ हिस्सों में समुद्री स्तर और तापमान में 2 डिग्री की बढ़ोतरी से इन मछलियों की संख्या कम हो गई.

नतीजों से पता चला है कि मछली की दूसरी प्रजातियों पर भी बढ़ते तापमान का असर हो रहा है. इस कारण पानी अम्लीय हो रहा है और और कोरल रीफ पर बुरा असर है. समुद्री पारिस्थितिकी के जानकार रॉन थ्रेशर कहते हैं कि सामान्य तौर पर ठंडे खून वाले प्राणी गर्म तापमान पर प्रतिक्रिया देते हैं और जैसे जैसे तापमान बढ़ता है उनकी संख्या भी बढ़ती है. लेकिन इसकी भी एक सीमा है. थ्रेशर बताते हैं, "कई प्रजातियों की जांच करने के बाद हमने पाया कि इनके बढ़ने की गति कम हुई है और बढ़ते तापमान के कारण शारीरिक तनाव बढ़ा है. व्यवसाय में उपयोग की जाने वाली मछलियां ज्यादा इधर उधर नहीं जातीं. वे पुरानी जगहों या उन्ही कोरल रीफ में लौट आती हैं जहां से चली थीं. इन पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ने वाला है."

बैंडेड मोरवोंग ऐसी मछलियां थीं जो किनारे के पास उथले पानी में रहती हैं और करीब सौ साल तक जिंदा रह सकती हैं. वहीं ट्यूना मछली जैसी प्रजातियां जो घूम सकती हैं वे लगातार दक्षिण के ठंडे पानी में जा रही हैं.

थ्रेशर और उनके साथियों ने 1910 से लेकर अब तक मोरवोंग के आंकड़ों पर शोध किया. इन मछलियों में ओटोलिथ्स नाम की संरचना का अध्ययन किया. यहां सालाना रिंग्स बनती हैं जो पेड़ के तनों में मिलने वाली रिंग्स जैसी होती हैं. इससे पता चला कि ऑस्ट्रेलिया के पानी में तो इस मछली की संख्या में बढ़ोतरी हुई है लेकिन बढ़ते हुए तापमान के साथ न्यूजीलैंड के आस पास बढ़ोतरी कम हो गई.


डायचे वेले के सौजन्य से






8 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत रोचक जानकारी, ऐसी रिंग्स तो पेड़ों में ही बनती है।

Darshan Lal Baweja ने कहा…

रोचक जानकारी




विज्ञान पहेली -११

Swarajya karun ने कहा…

ज्ञानवर्धक आलेख के लिए आभार . मेरा ख्याल है कि बढ़ते तापमान से मछलियों में ही नहीं, इंसानों में भी तनाव बढ़ रहा है. ध्यान दीजिए - गर्मियों में कई आपराधिक वारदात केवल क्षणिक आवेश में हो जाते हैं ! ऐसी घटनाओं की संख्या भी इस मौसम में विशेष रूप से शहरों में अधिक होती है. वैसे आपका आशय अगर ग्लोबल वार्मिंग से है, तो यह भी मछलियों के साथ-साथ मानव-जीवन में तनाव बढ़ने का एक बड़ा कारण है. समस्या है तो समाधान की कोशिश भी जारी रहनी चाहिए . शहरों को रेगिस्तान बनने से रोकने की ज़रूरत है. पेड़-पौधे हों ,तो गर्मियों में भी शहरों में कुछ ठंडक रहे ,लेकिन यहाँ तो पढ़े-लिखे लोग पेड़ कटवाने में लगे हैं ! क्योंकि उन्हें ठंडक के लिए छाँव की नहीं ,बल्कि एयर-कंडीशनर की ज़रूरत होती है, जो उनको आसानी से मिल जाती है. इसलिए हरियाली उनकी आँखों में खटकती रहती है.

bilaspur property market ने कहा…

गहन चिंता का विषय है .जल्द ही इस दिशा में सभी की भागी दरी अगर नहीं हुई तो समस्या विकराल रूप लेने में समय नहीं लगाएगी

इस विषय पर चिंतन करने के लिए आभार

manish jaiswal

Rahul Singh ने कहा…

पर्यावरण सूचक.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

ग्लोबल वार्मिग का असर इन पर भी परिलक्षित हो रहा है।

बेनामी ने कहा…

चिंतनीय जानकारी अभी तो मछलियों पर असर हो रहा है भविष्य में आदमी भी सावधान रहे .
धन्यवाद्

Arunesh c dave ने कहा…

प्रक्रुति के सुपर कमप्यूटर मे डाले जा रहे तमाम आंकड़ो का अंजाम क्या होगा ये तो नही पता पर इस तरह के शोध कार्यो से इशारा अवश्य मिलता है ।