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08 सितंबर, 2010

प्रधानमंत्री की नसीहत : गरीबों की फज़ीहत

सड़ता अनाज और न्यायालय का फैसला 
                       प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने सुप्रीमकोर्ट को नीतिगत मामलो में हस्तक्षेप न करने की नसीहत देकर एक नये विवाद को जन्म दे दिया है । न्यायालय के आदेश, निर्देश या इच्छा को न मानने या उसे लंबित रखने का वाक्या तो पहले भी हुआ है लेकिन यह पहली बार हुआ है कि देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति ने अधिकारिक तौर पर नीतिगत मामलो मे हस्तक्षेप न करने की नसीहत न्यायालय को दी है । इसके पूर्व 8 मई को बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को संविधान से मिले अधिकार क्षेत्र को पार नहीं करना चाहिए और जनहित में तीनों अंगों को सामंजस्य के साथ काम करना चाहिए।
                     न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और दीपक वर्मा की खंडपीठ ने 12 अगस्त को एक फ़ैसले में कहा था कि "अनाज बर्बाद हो इससे बेहतर है कि उसे भूखे गरीबों में बाँट दें।"सबसे पहले कृषि मंत्री शरद् पवार ने न्यायालय के आदेश को सुझाव मानकर टाल दिया । बाद में न्यायालय को पुनः कहना पड़ा कि यह सुझाव नही बल्कि आदेश है।डा. मनमोहन सिंह अब कृषि मंत्री शरद् पवार के बचाव में आ गये है, अपनी सरकार बचाने के लिए शरद् पवार का बचाव करना उनकी राजनैतिक मजबूरी भी है । लेकिन उनके रूख को केवल राजनैतिक मजबूरी कह देने मात्र से काम नही चलेगा ।

                    आमतौर पर वृथा बयान बाजी से बचने वाले प्रधानमंत्री ने यदि यह बयान दिया है तो इसमें कई बातें निहित है । पहला तो यह कि यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मान लिया जाता तो इसमें सरकार की कमजोरी उजागर हो जाती । लोग कहते कि सरकार अनाज को सुरक्षित नही कर पा रही थी इसीलिए गरीबो को बांट रही है । दूसरा इसका कोई राजनैतिक लाभ इन्हें नही मिलता क्योंकि सरकार के बजाय न्यायालय को इसका श्रेय जाता । तीसरी बात जो डा. मनमोहन सिंह के बयान में निहित है वह यह है कि यदि एक बार मुफ्त बांटने की प्रक्रिया शुरू हो गई तो हमेशा के लिए यह परम्परा बन जायेगी । वैसे प्रधानमंत्री ने अपने बयान में जो कारण बताया है उसमें उन्होंने कहा कि गरीबो को मुफ्त अनाज बांटने से अन्न-उत्पादन पर प्रतिकुल असर पड़ेगा । मामला था सड़ रहे अनाज को गरीबों में मुफ्त बांटने का । उचित रख रखाव के अभाव में करोड़ो रूपियो का अनाज सड़ रहा है । जिस देश की कुल आबादी के लगभग 37 प्रतिशत  लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहें हों, उस देश में लाखों टन अनाज सड़ जाय यह कितनी दुर्भाग्य जनक बात है । वास्तव में यह मेहनतकस किसानो के पसीने का अपमान है, यह राष्ट्रीय क्षति है । इसे गरीबों को बांट देने से सरकार की कोई नीति प्रभावित हो रही है, ऐसा कहीं नही लगता । इससे कांग्रेस या उसके सहयोगी दलों का दृष्टिकोण गरीबो के प्रति कितना उदार या कठोर है इसकी परख होती है ।
                     दरअसल  यह मामला अब केवल सड़ते हुये अनाज को बांटने या न बांटने तक सीमित नही है  । बल्कि यह मामला  कार्यपालिका एंव न्यायपालिका के सम्बंधों से जुड़ गया है । जिस देश में संविधान की संप्रभुता है, जिस देश में संविधान के संरक्षण की जिम्मेदारी न्यायपालिका को है उस देश की सरकार सुप्रीम कोर्ट को नसीहत दे या उसके निर्णय को सुझाव मानकर टाल दे ,यह दुर्भाग्य जनक बात है ।केन्द्र सरकार जिस पर देश में शांति, सद्भाव  व  अनुशासन बनाये रखने की जिम्मेदारी है वह स्वयं कितनी अनुशासनहीन है यह प्रधानमंत्री एवं कृषि मंत्री या यों कहे की केन्द्र सरकार के वर्तमान रवैया से जाहिर हो गया है । कार्यपालिका और न्यायपालिका के संमबंध तनावपूर्ण हो गये है । प्रधानमंत्री के शब्द बाण से न्यायपालिका के प्रति जन-श्रद्धा कसौटी पर आ गई है। कोई जरूरी नही कि न्यायालय का फैसला हर बार अपने अनुकूल आये, यदि फैसला अपनी इच्छा के विरूद्ध भी आता है तो न्यायालय के प्रति श्रद्धा व सम्मान बना रहता है, यह इस देश की संस्कृति है । इस संस्कृति को बनाये रखने की जिम्मेदारी जनता, सरकार व स्वयं न्यायपालिका की भी है। आने वाले समय में ऐसे अनेक अवसर आयेंगें जब प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के बयान को लोग  कोर्ट के फैसलों में “कोड” करेगें। इसीलिए यह मामला केवल असुरक्षित अनाज को गरीबो को बांटने या न बांटने तक सीमित न हो कर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव का हो गया है। वर्तमान केन्द्र सरकार के रूख का दुष्परिणाम सदियों तक झेलना पड़  सकता है जो लोकतंत्र के सेहत के लिए ठीक नहीं है इस स्थिति में देश के महामहिम राष्ट्रपति स्वयं हस्तक्षेप कर विवाद को टालें तो उचित होगा।  00205 PHOTO BY GOOGLE

13 टिप्‍पणियां:

  1. प्रधानमंत्री का लीपा-पोती कर शरद पवार का बचाना सही नहीं है।
    जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे दिया है,तो अनाज गरीबों में बाँट देना चाहिए।
    बीच में बात उठी थी कि यह सड़ाया हुआ अनाज शराब लाबी को देने की तैयार की जा रही है औने पौने में।
    जिस देश में मंहगाई के कारण लगभग 60% लोग कंगाली और बदहाली का जीवन जीने को मजबूर हों वहाँ करोड़ों का अनाज बर्बाद हो जाना शर्मनाक स्थिति निर्मित करता है।यह देश की जनता के पैसों का सरासर नुकसान है।

    खरी खरी बात के लिए आपको साधुवाद

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  2. आपका कथन सत्य है .

    त्वरित टिप्पणी के लिए आभार .

    पोला की बधाई भी स्वीकार करें .

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  3. आपको भी पोला की ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं।
    बैला पूजें और दौड़ाएं - धूम धाम से पोला मनाएं।

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  4. ... तनिक देर से ही सही .... सर्वप्रथम आपको व राजकुमार सोनी जी को प्रज्ञा सम्मान के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !!!

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  5. कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र सदैव ही न्यायपालिका के परीक्षण पर रहेगा। यह क्षेत्राधिकार का उल्लंघन नहीं है। कार्यपालिका को उस का कर्तव्य स्मरण कराने का है। निर्णय जनता के हाथ है।

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  6. गरीबों में अनाज बांटने में हीला-हवाला या फिर
    आना-कानी करने वालों को चाहिए कि वो छत्तीसगढ़
    के अमर शहीद ,महान क्रांतिकारी ,सोनाखान के
    वीर नारायण सिंह के संघर्ष और बलिदान को याद करें .
    अगर याद न आए तो इतिहास के पन्ने पलट कर देख लें कि
    सन १८५६ के भयानक अकाल के दिनों में कैसे उन्होंने
    जनता को भूख से बचाने के लिए किसानों को
    संगठित कर जमाखोर व्यापारी के गोदाम
    से अनाज निकलवाया और भूख से बेहाल गरीबों
    में बाँट दिया . अनाज के लिए इस आर्थिक संघर्ष से ही उन्होंने
    अंग्रेजों के खिलाफ छत्तीसगढ़ में आज़ादी की लड़ाई का शंखनाद
    किया और देश के लिए शहीद हो गए. बहरहाल , जरूरतमंद
    लोगों को अनाज देने में सौ प्रकार की बहानेबाजी
    करने वालों पर आपके आलेख से मुझे अमर शहीद की संघर्ष-गाथा
    याद आ गयी . उन्हें शत-शत नमन .
    आ गयी .

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  7. अनाज बंटेगा तो भी गरीब के मुंह तक जाएगा इसमें शक है। बीपीएल कार्ड योजना ही देख लीजिए। गरीबों को बांटने के नाम पर नेताओं और अफसरों के गोदामों में पहुंच जाएगा और अगले साल एफसीआई की खरीद में फिर बेच दिया जाएगा, खासकर पंजाब में ऐसे मामले पहले भी आए हैं।

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  8. प्रिय स्वराज जी
    आपने छतीसगढ़ के अमर शहीद वीर नारायण सिंह की याद दिलाई इसके लिए आपको धन्यवाद . पोला त्योहार की बधाई .

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  9. आपने बिल्कुल सही लिखा है बजाज जी. न्यायपालिका के प्रति इस तरह का हिकारत भाव किसी लोकतांत्रिक देश के शालीन प्रधानमंत्री का नहीं है. यह बयान है अंग्रेजों द्वारा स्थापित पार्टी के इटालियन अध्यक्ष के नौकर-शाह का. इस बयान में नमक 'दांडी' का नहीं बल्कि उस विश्व बैंक का है, जिसकी चाकरी कर प्रधानमंत्री पहले रोजी-रोटी कमाते रहे हैं. न्याय व्यवस्था को धत्ता बता कर जो पार्टी गरीब शाहबानो के मूंह का निवाला छीन सकती है वह अगर आज देश के करोड़ों गरीबों के पेट पर लात मार रही है तो क्या आश्चर्य. बहरहाल....आप शहीद वीर नारायण की धरती के हैं. यहां का जयस्तंभ चौक 'चावल गाथा' का जीता जागता स्तम्भ है. उसे बचा कर रखने में अपना योगदान इसी तरह देते रहे...धन्यवाद.
    - पंकज झा.

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  10. देशवाशियों के लिए ''खुशखबरी''...बहुत बधाई. इस महान लोक कल्याणकारी गणराज्य की सरकार देश के सभी 6 लाख गांवों तक कंडोम पहुचाने की तैयारी कर रही है. चलो अनाज नहीं पहुचा तो क्या, कंडोम है ना.

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  11. भाई जय जी आपने सटीक टिप्पणी की है ,इसके लिए आपको धन्यवाद .

    * पोला त्योहार की बधाई .*

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  12. हमारे प्रधानमंत्री जी कहते हैं, सुप्रीम कोर्ट नीतिगत मामलों में दखलंदाजी न करे. कोई मुझ अज्ञानी को बताये के "वह कैसी नीति है जो करोड़ों टन अनाज को सडा देने का पक्षधर है, बजाय इसके की जरुरतमंदों में वितरित कर दिया जाये?"

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  13. loktantra ki sehat ke liye kya thik hai aur kya nahi ye savidhan nirmatao ne pahle hi soch liya tha.aapko savidhan me sansodhan ke bare me pahal karni chahiye

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