ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है * * * * नशा हे ख़राब झन पीहू शराब * * * * जल है तो कल है * * * * स्वच्छता, समानता, सदभाव, स्वालंबन एवं समृद्धि की ओर बढ़ता समाज * * * * ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है

30 जुलाई, 2010

छत्तीसगढ़ में राम

छत्तीसगढ़ में राम


 
गवान राम ने अपने 14 वर्ष के बनवास काल में 10 वर्ष छत्तीसगढ़ में गुजारे हैं। यह निष्कर्ष “राम वनगमन मार्ग शोध दल” ने अंचल का दौरा कर तथा भगवान राम से सम्बंधित विभिन्न ग्रंथों यथा महारामायण, संवृत रामायण, नारद रामायण, लोमश रामायण, अगस्त्य रामायण, मंजुल रामायण, सौपद्य रामायण, महामाला रामायण, सौहाद्र् रामायण, मणिरत्न रामायण, सौर्य रामायण, चान्द्र रामायण, मैन्द रामायण, स्वायम्भुव रामायण, सुब्रह्य रामायण, सुवर्च रामायण, देव रामायण, श्रवण रामायण, दुरन्त रामायण, चम्पू रामायण, भावार्थ रामायण, अध्यात्म रामायण, वाल्मीकि रामायण, आनन्द रामायण, अदभुत रामायण, अग्निवेश रामायण, शेष रामायण, कौशिक रामायण, रामचरित मानस, हनुमान नाटक, अग्निपरीक्षा तथा साकेत आदि के अध्ययन के बाद निकाला हैं। वैसे महर्षि बाल्मिकी रचित “रामायण” एवं गोस्वामी तुलसीदास रचित ”श्री रामचरित मानस” बहुप्रचलित तथा सर्वमान्य हैं। यह बात सही है कि भगवान राम ने बनवास का आदेश होते ही दक्षिण की ओर रूख किया । वे अयोध्या से चलकर रामेश्वरम की ओर छत्तीसगढ़ की धरती पर चलकर ही गये और लंका में आक्रमण कियाश्री राम, लक्ष्मण एवं सीता ने यहां की नदियों, नालों, पहाडों एंव जंगलों को अपने आंखो से निहारा है।



 
यदि शोध दल की माने तो भगवान राम ने वर्तमान कोरिया जिले के भरतपुर तहसील स्थित सीतामढी-हरचैंका के समीप बहने वाली मवई नदी को पार कर छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया तथा बस्तर के कोंटा, सुकमा के आगे गोदावरी नदी को पार कर आगे बढे। इसके बाद आंध्रप्रदेश की सीमा लग जाती हैं। बस्तर के घने जंगलो को भगवान राम ने पांव पांव नापा हैं। तत्समय बस्तर की सीमा क्या थी यह बहस का विषय हो सकता हैं लेकिन राम ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति व जनजीवन को नजदीक से परखा हैं। छत्तीसगढ ऋषि मुनियों मांडव ऋषि, लोमस ऋषि, अगस्त ऋषि, श्रृगी ऋषि, कंक ऋषि, मतंगऋषि, शरभंग ऋषि, गौतम ऋषि एवं मर्हिर्ष बाल्मिकी आदि की तपोभूमि हैं। बनवास काल में राम ने इन ऋषियों से ज्ञान प्राप्त किया होगा।
                 वैसे भी छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल माना जाता है। रायपुर से 35 कि.मी. दूर ग्राम चन्दखुरी (आरंग) को कौशल्या की जन्मभूमि माना जाता है। इसीलिए पहले छत्तीसगढ़ को “कोसल प्रदेश” के नाम से जाना जाता था।
             बहरहाल राम वनगमन मार्ग शेाध दल “छत्तीसगढ़ की रामायण”नाम से लगभग 1000 पृष्ठो का ग्रंथ प्रकाशित करने का निर्णय लिया हैं, जिसे सभी वर्गो का सहयोग मिल रहा है। शोध दल ने छत्तीसगढ़ राज्य के नक्शे में राम वन गमन मार्ग को चिन्हित कर प्रकाशित किया हैं। छत्तीसगढ़ में राम तथा बस्तर (दण्डकारण्य) में राम शीर्षक से कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं। शोध दल ने भगवान राम के वनगमन मार्ग तथा उनके पड़ाव से संबंधित स्थलों का अध्ययन कर एक सी.डी.तैयार किया हैं।
जय श्रीराम !

5 टिप्‍पणियां:

  1. रामगमन मार्ग के विषय में जानकारी देकर आपने बहुत अच्छा काम किया है।

    फ़ोंट बहुत छोटे हो गए हैं,इन्हे बढा दिजिए।

    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया..बधाई एवं शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  3. बजाज जी, आपने छत्तीसगढ़ में राम वन गमन मार्ग की जो सारगर्भित जानकारी इंटरनेट में उपलब्ध करा दी है, इससे छत्तीसगढ़ में राम के बारे में पूरे विश्व को जानकारी मिल जाएगी . आपका प्रयास छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित करने वाला है. जानकारी हेतु बधाई. लगे रहें.
    नारायण भूषणिया

    जवाब देंहटाएं