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07 अगस्त 2010

महंगाई डायन और छत्तीसगढ़




महंगाई डायन और छत्तीसगढ़



इन दिनों फिल्म "पिपली लाईव" की चर्चा जोरों पर है। पत्र-पत्रिकाओं में तो पिपली लाईव पर तरह-तरह के समाचार आ रहे हैं। इलेक्ट्रानिक मिडिया का प्रत्येक चैनल इस पर खबरें बना रहा है। इस फिल्म का गीत "महंगाई डायन खाये जात है............" काफी हिट हो रहा है। मजे की बात तो यह है कि महंगाई डायन और ईधन की महंगाई एक साथ रिलिज हुई। एक तरफ केन्द्र सरकार ने डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ाये तो दूसरी तरफ "पिपली लाईव" का यह गीत मिडिया के माध्यम से प्रचारित हुआ। दोनो बातो का साथ साथ होना महज एक संयोग ही हो सकता है लेकिन इस घटना से हमें दशहरा के अवसर पर गांव में हर वर्ष होने वाले रामलीला की याद हो आई । रामलीला मंडली में दो जोकर होते है जो आम तौर पर रामलीला शुरू होने के पहले मंच पर आते हैं (जोकर के लिए पर्दा उठाने की जरुरत नही पडती) एक जोकर पर्दे के दायी ओर से तथा दूसरा जोकर पर्दे के बायी ओर से निकलता है, दोनों कुछ देर हंसी ठहाका कर दर्शकों का मनोरंजन करते हैं। रामलीला देखने आये दर्शक जोकरों का कार्यक्रम शुरु होते ही व्यवस्थित बैठ जातें है। इस एपिसोड में भी यही हुआ। जोकर की तरह एक तरफ  से डीजल-पेट्रोल की महंगाई वाला समाचार आया तो दूसरी तरफ से महंगाई डायन वाला गाना रिलिज हुआ। लेकिन इस एपिसोड में दर्शक व्यवस्थित नहीं हुए बल्कि पूरे देश में सियासी भूचाल आ गया।इस बार के किरदारों नें दर्शकों को व्यवस्थित करने के बजाय वातावरण को ही अस्त-व्यस्त कर दिया।
महंगाई डायन ने छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजा में कुछ ज्यादा ही बवाल मचा रखा है। प्रदेश के दो प्रमुख दल आमने-सामने आ गये हैं। दरअसल भाजपा के मुखपत्र"दीप कमल" में महंगाई के प्रतीक के रूप में एक डायन वाला कार्टून प्रकाशित हुआ है । जैसे ही कांग्रेस  के मित्रों को पता चला तो वे सड़क पर आ गये। धरना-प्रदर्शन एवं बयानबाजी का सिलसिला शुरू हो गया। कुछ अतिउत्साही कांग्रेसजनों ने ”पत्रिका” की प्रतियां भी जला डाली। उनका आरोप है कि पत्रिका ने उनके नेता का अपमान किया है। यह अपमान क्यों हुआ, कैसे हुआ, किसके द्वारा हुआ यह लम्बे बहस का विषय है।

जब से सावन का महीना लगा है रोज बौछारें पड रही है। नदी-नाले उफान पर है. सावन की बौछारों की तरह राजनीतिक गलियारों में भी आरोपों के बौछारों का दौर चल रहा है। अभी तो फिल्म ”पिपली लाईव” रिलिज ही नहीं हुई है हमें इंतजार है उसके रिलिज होने का। देखते है सिनेमाघरो में जब यह फिल्म प्रदर्शित होगी तो देश व राज्य की राजनीतिक फिजां पर इसका क्या असर होगा? गैर कांग्रेसी दल तो चाहते ही है कि आम चुनाव तक ये दोनो जोकर मंच में जमे रहे ताकि उन्हे इसका राजनैतिक लाभ चुनाव में मिल जायें, छत्तीसगढ के कांग्रेसी इस मामले में अपने विरोधियों को मदद करते दिखाई दे रहे है।
पिपली लाइव के कलाकार  
छत्तीसगढ़ में "पिपली लाईव" का गहरा रिश्ता है। इस फिल्म से जुडे़ अनेक कलाकार छत्तीसगढ के है। छत्तीसगढ के ओंकारदास  मानिकपुरी नें इसमें मुख्य भूमिका अदा की है। "पिपली लाईव"ने एक सामान्य कलाकार को बालीवुड का स्टॉर बना दिया है। इस फिल्म को अभी अभी डर्बन फिल्म एवार्ड प्राप्त हुआ है। पिपली लाईव में भूमिका अदा करने वाले छत्तीसगढ के महान विभूतियों का लोग जगह-जगह स्वागत सम्मान कर रहे हैं। इन महान सपूतों ने छत्तीसगढ़ माटी की शान बढ़ाई है। वास्तव में ये वंदनीय है। 00309

आभार - 2


ग्राम चौपाल में 03-08-२०१० को "अगस्त यानि क्रन्तिकारी महीना"शीर्षक से प्रकाशित पोस्ट को नईदिल्ली से प्रकाशित दैनिक वीर अर्जुन ने दिनांक ५-८-२०१० के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित किया है साथ ही साथ  रायपुर के सांध्य दैनिक हाईवे चैनल ने दिनांक ५-८-२०१०  तथा  दैनिक  तरुण छत्तीसगढ़ ने दिनांक ४-८-२०१० के अंक में  प्रमुखता से प्रकाशित किया है, मैं इन सभी समाचार पत्रों का आभारी हूँ. साथ ही साथ मैं  उन सभी ब्लागर मित्रों एवं ब्लाग के पाठकों  के प्रति पुन: आभार प्रकट करता हूँ   जिन्होंने विभिन्न माध्यमों से प्रसंशा सन्देश भेजे तथा इसे प्रचारित किया. .धन्यवाद..

दैनिक वीर अर्जुन नईदिल्ली दिनांक ०५-०८-२०१०




दैनिक हाईवे चैनल  रायपुर दिनांक ०५-०८-२०१०


दैनिक तरुण छत्तीसगढ़  रायपुर दिनांक ०४-०८-२०१०


 

06 अगस्त 2010

बेमौसम शादी ?





बेमौसम शादी  ?

अभी शादी का कोई मुहूर्त नहीं है, देव-उठनी से पहले तो शादी का सवाल ही नहीं.सावन मास में तो बिलकुल भी नहीं.क्योंकि  इसके पीछे अनेक सारी  किवदंतियां हैं ,लेकिन शहर में इन दिनों बे-मौसम शादी का कार्ड बंट रहा है जो अच्छा खासा    चर्चा का विषय बना हुआ. ईश्वर  का  शुक्र है कि हम-आप इस अमांगलिक कार्य में आमंत्रित नहीं है.कार्ड का नमूना आपकी जानकारी के लिए तथा अपने आसपास के लोगों में प्रचारित करने मात्र के लिए प्रस्तुत है ----


नशा हे ख़राब  : झन  पीहु  शराब    -   अशोक बजाज
Nasha He Kharab : Jhhan Pihu Sharab  -  Ashok Bajaj

चुनाव आयोग और ई. व्ही.एम. की विश्वसनीयता


भारत में निर्वाचन आयोग की हीरक जयंती पर रायपुर के टाउन हाल में एक प्रदर्शनी लगी हैं । प्रदर्शनी में चुनाव आयोग की गतिविधियों को दर्शाने वाले विहंगम चित्र लगे हैं । चित्रो में दिखाया गया है कि मतदान दल को मतदान कराने के लिए दुर्गम रास्तों पहाड़यिों व बर्फीले स्थानो पर जाने के लिए किन किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है । देश में आज भी ऐसे स्थान है जहां पैदल जाना मुश्किल है लेकिन मतदान दल उंट या हाथी जैसे साधन का उपयोग करते है। गुजरात में एक स्थान हैं जहां केवल एक ही मतदाता है,उसी एक मतदाता के लिए मतदान दल को मतदान के एक दिन पूर्व से डयूटी करनी पड़ती हैं ।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक  देश हैं। विभिन्न शासन प्रणालियो में लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली माना जाता है । लोकतांत्रिक व्यवस्था में 18 वर्ष या उससे अधिक के हर व्यक्ति को गुप्त मतदान के माध्यम से अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार हैं । इस व्यवस्था में प्रत्येक मतदाता को केवल एक व्होट देने का अधिकार है । चाहे वह व्यक्ति गरीब से गरीब हो या चाहे देश का राष्ट्रपति हो, सबको केवल एक व्होट का अधिकार हैं। इस मामले में आम मतदाता और सर्वाधिकार सम्पन्न राष्ट्रपति का अधिकार समान हैं।

मतपेटी
देश में पहले राजतांत्रिक व्यवस्था थी। भारत अनेक राजवाड़ो में बंटा था। पूरा शासन तंत्र राजाओं - महाराजाओं एवं सामंतो के इशारे पर चलता था । यदि राजा नही रहा तो शासन की बागडोर उसके उत्तराधिकारी के हांथ में आ जाती थी । इसलिए कहा जाता हैं कि राजा पहले रानी के पेट से निकलता था अब पेटी से निकलता है।पेटी से आशय मतपेटी से है। मतदान के लिए अब इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ई.व्ही.एम.) का उपयोग होने लगा है। बटन दबाओं राजा निकल आता है। राजा चुनना अब जितना आसान हो गया है उतना ही इससे रिस्क बढ गया है। लोग पिछले कुछ वर्षो से ई.व्ही .एम. की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं । संचार क्रांति के इस युग में इलेट्रानिक उपकरणो से छेडछाड़ करके आसानी से परिणाम को बदला जा सकता है। ई.व्ही .एम में वाई-फाई का इस्तेमाल होता है, यदि बैटरी बंद भी हो जाये तो प्रोग्राम को परिवर्तित किया जा सकता हैं ।

इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ई.व्ही.एम.)
विदवानो एंव सॉफ्टवेयर इंजीनियरों नें समय समय पर विभिन्न इलेक्टानिक वोटिंग मशीनो के मॉडलो का प्रयोग करके यह साबित कर दिया है कि इन मशीनो को आसानी से हैक किया जा सकता है केवल बीप की आवाज से ही यह स्पष्ट नही हो सकता कि व्होट दिया जा चुका है।यदि चुनाव अधिकारी निष्पक्ष नही हुआ तो वह नाम व चिन्ह लोड करते समय भी गड़बडी़ कर सकता है । हैकर्स इस बात को प्रमाणित कर चुके है कि मशीन की प्रोग्रामींग को गलत तरीके से सेटिंग करके अन्य उम्मीदवारों के मत को किसी एक खास उम्मीदवार के खाते डाला जा सकता है। पहले पहल तो ई.व्ही.एम. का उपयोग ट्रायल के तौर पर सीमित स्थानो में किया गया था इसलिए ज्यादा हो-हल्ला नही मचा लेकिन अब तो व्यापक रूप से इसका इस्तेमाल होने लगा है। इंजीनियरो की सहायता से भविष्य में इन दोषो को दूर करने का उपाय करना होगा। चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए इसका पूरी तरह निष्पक्ष व पारदर्शी होनी आवश्यक है अन्यथा जनता का लोकतंत्र से विश्वास उठ जायेगा।


प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए जनप्रतिनिधि और अधिकारी



प्रदर्शनी में अटल जी के चित्र के साथ एक पोस्टर
                                                                           
'मतदान ज़रूर करें' विभिन्न पार्टियों के चुनाव चिन्हों से
 मतदान करने का संदेश देते युवक 

       

04 अगस्त 2010

आभार


 ग्राम चौपाल में 03-08-2010 को  "अगस्त यानि क्रन्तिकारी महीना" शीर्षक से प्रकाशित पोस्ट को रायपुर के सांध्य दैनिक तरुण छत्तीसगढ़ ने प्रमुखता से   प्रकाशित किया है, मैं तरुण छत्तीसगढ़ परिवार का आभारी हूँ. साथ ही साथ  मैं आभारी हूँ उन सभी ब्लागर मित्रों का जिन्होंने विभिन्न माध्यमों से  प्रसंशा सन्देश भेजे  तथा इसे प्रचारित किया.  .धन्यवाद........!!!