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16 जुलाई 2010

महंगाई डायन खाय जात है.........

इन दिनों फिल्म “ पिपली (लाईव) ” का यह गीत खूब चल पड़ा है ठीक वैसे ही जैसे कि पिछले एक दो वर्षो से “ सास गारी देवे ...... ” वाला गीत चल रहा है । फिल्म “ पिपली (लाईव) ” का भविष्य तो मै नही जानता शायद आक्टोपस पॅाल बाबा ही बता पाएंगे लेकिन इतना तय है कि यह गीत जरूर हीट हो जायेगा । गायक श्री रघुवीर यादव एवं उनकी मंडली को इस गीत से प्रसिध्दि तो मिल ही रही है। ऊपर से स्वर कोकिला लता मंगेश्कर ने इस गीत की तारीफ करके सोने में सुहागा कर दिया है।  

छत्तीसगढ़ के लोकगीत यहां की जान है
अपने ब्लॅाग में इस गीत का जिक्र करने के पीछे पहला कारण तो यह है कि यह गीत लोकधुनो पर आधारित है । हमारे देश में लोकगीतो का काफी महत्व है । वास्तव मे लोकधुनो में काफी मिठास होती है । प्रत्येक प्रांत या क्षेत्र में अलग अलग मौसम या तीज त्योहारो में बजाये या गाये जाने वाले लोकगीतो का अपना अलग ही आनंद है । “ महंगाई डायल खाय जात है......... “ भी लोकधुन पर आधारित है । गायक रघुवीर यादव व सहायक कलाकारो ने परम्परागत वाद्य यंत्रो में इस गाने को लय व ताल दिया है। सबसे बडी विशेषता यह है कि इस गीत में कही भी अत्याधुनिक वाद्य यंत्रो का इस्तेमाल नही किया गया है । ऐसे गीत पीढ़ी दर पीढ़ी बजाये जा रहे है, लेकिन उचित अवसर के अभाव में इन गीतो का धुन क्षेत्र से बाहर नही निकल पाता। फिल्म स्टॅार अमीर खान के द्वारा जैसे ही इसे प्लेटफार्म मिला यह हिट हो गया। छत्तीसगढ़ के विभिन्न तीज त्योहारो व संस्कारो में गाये जाने वाले गीतो को बार बार सुनने का जी करता है । छत्तीसगढ़ के लोकगीत यहां की जान है। समस्या यह है कि इन गीतो की मौलिकता कैसे बरकरार रहें । पाश्चात्य व बम्बईयां संगीत की खिचड़ी का दुष्प्रभाव छत्तीसगढ़ी लोक गीतो पर नही पड़ना चाहिए ।
 
आम आदमी की पीड़ा की अभिव्यक्ति 
इस चर्चा को ब्लाग में शामिल करने का दूसरा प्रमुख कारण यह है कि इस गीत में “ महंगाई ” जैसे ज्वलंत मुद्दे को शामिल किया गया है । वास्तव में यह गीत आम आदमी की पीड़ा की अभिव्यक्ति है । आज हर व्यक्ति मंहगाई से ग्रस्त है। निम्न व मघ्यम वर्ग के लोगो का तो बड़ा बूरा हाल है । इस गीत में आम आदमी की दशा का चिन्तन बहुत ही खूबसूरत ढंग से किया गया है।“ और आगे का कहूं, कहे नही जात है. महंगाई डायन खाय जात है ........... ”

कार्टून में महंगाई . . .

15 जुलाई 2010

रुपए की धाक


अब रुपए को भी मिला उसका चेहरा

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आईआईटी मुंबई के शोध छात्र डी उदय कुमार के डिजाइन को रुपए के प्रतीक के रूप में चुन लिया है. केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने गुरुवार को हुई कैबिनेट की बैठक के बाद इसकी जानकारी दी। रुपए का प्रतीक बनाने के लिए रिज़र्व बैंक आफ़ इंडिया ने लोगों से डिजाइन आमंत्रित किया था.इसके लिए रिज़र्व बैंक ने ढाई लाख रुपए का ईनाम देने की घोषणा की थी.

रुपए की धाक

देश भर से क़रीब तीन हज़ार लोगों ने रुपए के प्रतीक का डिजाइन बनाकर भेजा था.रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर की अध्यक्षता वाली एक ज्यूरी ने इन तीन हज़ार प्रतीकों में से आखिर में पाँच को चुना. इन्ही पांच में एक डिजाइन को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। इसके साथ ही रूपया दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है जिनकी मुद्रा का अपना प्रतीक है। अंबिका सोनी ने बताया कि अब इसे देश और देश के बाहर लोग और संस्थाएँ इसका उपयोग कर सकती हैं. ,डी उदय कुमार ने संवाददाताओं से कहा,''रुपए के लिए मेरा डिजाइन चुना गया है. मैं बहुत खुश हूं लेकिन ख़ुशी जताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.उन्होंने कहा कि यह उनके लिए बड़े सम्मान की बात है.
रुपए के प्रतीक की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि यह देवनागरी लिपि का अक्षर 'र' है। उन्होंने बताया कि रुपए का प्रतीक रोमन लिपि के बड़े 'आर' की तरह भी दिखता है.उन्होंने कहा कि इस डिजाइन में भारत के तिरंगे झंडे को भी देखा जा सकता है.
अभी तक भारतीय रुपये को संक्षिप्त रूप (abbreviated form) में अंग्रेजी में Rs या Re या फिर INR के जरिए दर्शाया जाता है। नेपाल , पाकिस्तान और श्रीलंका में भी मुद्रा का नाम रुपया ही है। लेकिन दुनिया की प्रमुख मुद्राओं का संक्षिप्त रूप के अलावा एक प्रतीक चिन्ह भी है जैसे अमेरिकी डॉलर को USD कहते हैं और इसका प्रतीक चिह्न $ होता है। चि. डी उदय कुमार साधुवाद के पात्र है .रूपीए की पहचान के लिए यह बहुत ज़रूरी था.मुझे बहुत खुशी हुई .पूरे देशवासीयो को भी खुश होना चाहिए.

14 जुलाई 2010

पहले अंडा आया या मुर्गी ?

नवभारत टाइम्स के १४-७-२०१० के अंक पर भी नज़र डालें। शेफील्ड और वारविक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों नें जो दावा किया है वह कितना सच है ?

000पहले अंडा आया या मुर्गी ? यह प्रश्न हजारों वर्षों से लोगों को परेशान करता आया है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस यक्ष प्रश्न का जवाब ढूंढ़ निकालने का दावा किया है। शेफील्ड और वारविक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने दावा किया है कि धरती पर अंडे से पहले मुर्गी का जन्म हुआ था। वैज्ञानिकों ने पाया कि ओवोक्लाइडिन नाम का प्रोटीन अंडे के खोल के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने बताया कि यह प्रोटीन मुर्गी के अंडाशय से पैदा होता है इसलिये पहले अंडा आया या मुर्गी अब यह पहेली सुलझ गई है। वैज्ञानिकों ने कहा कि पहले मुर्गी आई और इसके बाद अंडा पैदा हुआ। डेली एक्सप्रेस के मुताबिक रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि प्रोटीन पैदा करने वाली मुर्गियां पहले कैसे आईं। इस दल ने अंडे के खोल को देखने के लिये अत्याधुनिक कंप्यूटर हेक्टर का इस्तेमाल किया। शोध से जुडे़ प्रमुख वैज्ञानिक डॉण् कोलिन फ्रीमैन ने कहा लम्बे समय से यह संदेह बना हुआ था कि अंडा पहले आया लेकिन अब हमारे पास वैज्ञानिक सबूत है जो हमें बताता है कि मुर्गी पहले आई।

ब्लॉग 4 वार्ता: सावधान! खतरनाक जीवों से,विश्वास का पुल बना ---ब्लाग4वार्ता----ललित शर्मा

ब्लॉग 4 वार्ता: सावधान! खतरनाक जीवों से,विश्वास का पुल बना ---ब्लाग4वार्ता----ललित शर्मा

12 जुलाई 2010

भविष्यवक्ता पॉल बाबा


विश्व कप के भविष्यवक्ता पॉल बाबा का भविष्य 

फूटबाल के विश्व कप फाईनल में स्पेन ने नीदरलैण्ड को एक गोल से हराकर विश्वकप हासिल कर लिया। फाईनल मैच के साथ ही विश्व भर के खेलप्रेमियों पर चढ़ा फूटबाल का फीवर तो शायद उतर गया होगा लेकिन स्पेन के लोग तो एक साथ होली-दीवाली मना रहे हैं। वैसे भी आक्टोपस पॉल ने स्पेन के जीतने की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी। यदि स्पेन हार जाता तो आक्टोपस पॉल की विश्वसनीयता भी खत्म हो जाती। पॉल की भविष्यवाणी को कायम रखने के लिए स्पेन का जीतना बहुत जरूरी हो गया था। दरअसल इस फाईनल मैच में स्पेन से ज्यादा आक्टोपस पॉल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। एक तरफ आक्टोपस पॉल ने स्पेन के जीतने की भविष्यवाणी की थी तो दूसरीरीदूसरी  तरफ मणि नाम के भविष्यवक्ता तोते ने नीदरलैण्ड के शहनशॉह बनने की घोषणा की थी। इन भविष्यवाणियों के चलते विश्व कप फाईनल ‘‘स्पेन बनाम नीदरलैण्ड’’ के बजाय ‘‘पॉल बनाम मणि’’ हो गया था। अनेक लोगों की दिलचस्पी केवल इसी में थी कि किसकी भविष्यवाणी सच हो रही है। लगातार सच भविष्यवाणी करने वाले पॉल की भविष्यवाणी इस बार भी सच होगी अथवा नहीं ? यदि पॉल की भविष्यवाणी सच नहीं निकली तो पॉल का भविष्य क्या होगा ?अंततः स्पेन विश्व चैम्पियन बन ही गया। लेकिन जीता कौन स्पेन या पॉल ? इस जीत का श्रेय स्पेन के खिलाड़ियों की मेहनत को दिया जाय या पॉल को ? दुनिया भर की मीडिया ने पॉल को लेकर जो उत्सुकता पैदा की थी उससे तो यही लगता है कि स्पेन ने अपने खिलाड़ियों के दम पर नहीं बल्कि पॉल की भविष्यवाणी के दम पर विश्वकप जीता है।

अब हमें पॉल के भविष्य की चिन्ता करनी चाहिए क्योंकि स्पेन के जीतते ही उसकी मार्केट वैल्यू बढ़ गई है। भविष्य में कोई भी खिलाड़ी मैच के लिए अभ्यास करने के बजाय पॉल बाबा के शरण में जायेगा। खिलाड़ी की ही क्या बात करें अन्य क्षेत्र का प्रतियोगी भी सफलता के लिए शार्टकट रास्ता ही अपनाएगा। चाहे वह विद्यार्थी हो चाहे राजनेता अथवा कोई आई.ए.एस या आई.पी.एस का परीक्षार्थी क्यों न हो सभी मेहनत करने के बजाय पॉल बाबा की शरण में पड़े रहेगें। भले ही परिणाम स्पेन जैसा मिले अथवा नहीं । उधर जर्मनी में पॉल बाबा के नाम पर काफी आक्रोश देखा जा रहा है, कहीं ऐसा न हो कि आक्टोपस पॉल जर्मनी वालों के आक्रोश का शिकार हो जाय, उसने भविष्यवाणी करके बला मोल ले लिया है। यदि भविष्यवाणी झूठी होती तो कोई पूछता भी नहीं, सच हो गई तो मुसीबतों का जंजाल सामने आ गया है। अब आक्टोपस यानि पाल बाबा तेरा भविष्य कौन बतायेगा ?